< اَلتَّثْنِيَة 22 >

«لَا تَنْظُرْ ثَوْرَ أَخِيكَ أَوْ شَاتَهُ شَارِدًا وَتَتَغَاضَى عَنْهُ، بَلْ تَرُدُّهُ إِلَى أَخِيكَ لَا مَحَالَةَ. ١ 1
“तू अपने भाई के गाय-बैल या भेड़-बकरी को भटकी हुई देखकर अनदेखी न करना, उसको अवश्य उसके पास पहुँचा देना।
وَإِنْ لَمْ يَكُنْ أَخُوكَ قَرِيبًا مِنْكَ أَوْ لَمْ تَعْرِفْهُ، فَضُمَّهُ إِلَى دَاخِلِ بَيْتِكَ. وَيَكُونُ عِنْدَكَ حَتَّى يَطْلُبَهُ أَخُوكَ، حِينَئِذٍ تَرُدُّهُ إِلَيْهِ. ٢ 2
परन्तु यदि तेरा वह भाई निकट न रहता हो, या तू उसे न जानता हो, तो उस पशु को अपने घर के भीतर ले आना, और जब तक तेरा वह भाई उसको न ढूँढ़े तब तक वह तेरे पास रहे; और जब वह उसे ढूँढ़े तब उसको दे देना।
وَهَكَذَا تَفْعَلُ بِحِمَارِهِ، وَهَكَذَا تَفْعَلُ بِثِيَابِهِ، وَهَكَذَا تَفْعَلُ بِكُلِّ مَفْقُودٍ لِأَخِيكَ يُفْقَدُ مِنْهُ وَتَجِدُهُ. لَا يَحِلُّ لَكَ أَنْ تَتَغَاضَى. ٣ 3
और उसके गदहे या वस्त्र के विषय, वरन् उसकी कोई वस्तु क्यों न हो, जो उससे खो गई हो और तुझको मिले, उसके विषय में भी ऐसा ही करना; तू देखी-अनदेखी न करना।
لَا تَنْظُرْ حِمَارَ أَخِيكَ أَوْ ثَوْرَهُ وَاقِعًا فِي ٱلطَّرِيقِ وَتَتَغَافَلُ عَنْهُ بَلْ تُقِيمُهُ مَعَهُ لَا مَحَالَةَ. ٤ 4
“तू अपने भाई के गदहे या बैल को मार्ग पर गिरा हुआ देखकर अनदेखी न करना; उसके उठाने में अवश्य उसकी सहायता करना।
«لَا يَكُنْ مَتَاعُ رَجُلٍ عَلَى ٱمْرَأَةٍ، وَلَا يَلْبَسْ رَجُلٌ ثَوْبَ ٱمْرَأَةٍ، لِأَنَّ كُلَّ مَنْ يَعْمَلُ ذَلِكَ مَكْرُوهٌ لَدَى ٱلرَّبِّ إِلَهِكَ. ٥ 5
“कोई स्त्री पुरुष का पहरावा न पहने, और न कोई पुरुष स्त्री का पहरावा पहने; क्योंकि ऐसे कामों के सब करनेवाले तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।
«إِذَا ٱتَّفَقَ قُدَّامَكَ عُشُّ طَائِرٍ فِي ٱلطَّرِيقِ فِي شَجَرَةٍ مَّا أَوْ عَلَى ٱلْأَرْضِ، فِيهِ فِرَاخٌ أَوْ بَيْضٌ، وَٱلْأُمُّ حَاضِنَةٌ ٱلْفِرَاخَ أَوِ ٱلْبَيْضَ، فَلَا تَأْخُذِ ٱلْأُمَّ مَعَ ٱلْأَوْلَادِ. ٦ 6
“यदि वृक्ष या भूमि पर तेरे सामने मार्ग में किसी चिड़िया का घोंसला मिले, चाहे उसमें बच्चे हों चाहे अण्डे, और उन बच्चों या अण्डों पर उनकी माँ बैठी हुई हो, तो बच्चों समेत माँ को न लेना;
أَطْلِقِ ٱلْأُمَّ وَخُذْ لِنَفْسِكَ ٱلْأَوْلَادَ، لِكَيْ يَكُونَ لَكَ خَيْرٌ وَتُطِيلَ ٱلْأَيَّامَ. ٧ 7
बच्चों को अपने लिये ले तो ले, परन्तु माँ को अवश्य छोड़ देना; इसलिए कि तेरा भला हो, और तेरी आयु के दिन बहुत हों।
«إِذَا بَنَيْتَ بَيْتًا جَدِيدًا، فَٱعْمَلْ حَائِطًا لِسَطْحِكَ لِئَلَّا تَجْلِبَ دَمًا عَلَى بَيْتِكَ إِذَا سَقَطَ عَنْهُ سَاقِطٌ. ٨ 8
“जब तू नया घर बनाए तब उसकी छत पर आड़ के लिये मुण्डेर बनाना, ऐसा न हो कि कोई छत पर से गिर पड़े, और तू अपने घराने पर खून का दोष लगाए।
«لَا تَزْرَعْ حَقْلَكَ صِنْفَيْنِ، لِئَلَّا يَتَقَدَّسَ ٱلْمِلْءُ: ٱلزَّرْعُ ٱلَّذِي تَزْرَعُ وَمَحْصُولُ ٱلْحَقْلِ. ٩ 9
“अपनी दाख की बारी में दो प्रकार के बीज न बोना, ऐसा न हो कि उसकी सारी उपज, अर्थात् तेरा बोया हुआ बीज और दाख की बारी की उपज दोनों अपवित्र ठहरें।
لَا تَحْرُثْ عَلَى ثَوْرٍ وَحِمَارٍ مَعًا. ١٠ 10
१०बैल और गदहा दोनों संग जोतकर हल न चलाना।
لَا تَلْبَسْ ثَوْبًا مُخْتَلَطًا صُوفًا وَكَتَّانًا مَعًا. ١١ 11
११ऊन और सनी की मिलावट से बना हुआ वस्त्र न पहनना।
«اِعْمَلْ لِنَفْسِكَ جَدَائِلَ عَلَى أَرْبَعَةِ أَطْرَافِ ثَوْبِكَ ٱلَّذِي تَتَغَطَّى بِهِ. ١٢ 12
१२“अपने ओढ़ने के चारों ओर की कोर पर झालर लगाया करना।
«إِذَا ٱتَّخَذَ رَجُلٌ ٱمْرَأَةً وَحِينَ دَخَلَ عَلَيْهَا أَبْغَضَهَا، ١٣ 13
१३“यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को ब्याहे, और उसके पास जाने के समय वह उसको अप्रिय लगे,
وَنَسَبَ إِلَيْهَا أَسْبَابَ كَلَامٍ، وَأَشَاعَ عَنْهَا ٱسْمًا رَدِيًّا، وَقَالَ: هَذِهِ ٱلْمَرْأَةُ ٱتَّخَذْتُهَا وَلَمَّا دَنَوْتُ مِنْهَا لَمْ أَجِدْ لَهَا عُذْرَةً. ١٤ 14
१४और वह उस स्त्री की नामधराई करे, और यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाए, ‘इस स्त्री को मैंने ब्याहा, और जब उससे संगति की तब उसमें कुँवारी अवस्था के लक्षण न पाए,’
يَأْخُذُ ٱلْفَتَاةَ أَبُوهَا وَأُمُّهَا وَيُخْرِجَانِ عَلَامَةَ عُذْرَتِهَا إِلَى شُيُوخِ ٱلْمَدِينَةِ إِلَى ٱلْبَابِ، ١٥ 15
१५तो उस कन्या के माता-पिता उसके कुँवारीपन के चिन्ह लेकर नगर के वृद्ध लोगों के पास फाटक के बाहर जाएँ;
وَيَقُولُ أَبُو ٱلْفَتَاةِ لِلشُّيُوخِ: أَعْطَيْتُ هَذَا ٱلرَّجُلَ ٱبْنَتِي زَوْجَةً فَأَبْغَضَهَا. ١٦ 16
१६और उस कन्या का पिता वृद्ध लोगों से कहे, ‘मैंने अपनी बेटी इस पुरुष को ब्याह दी, और वह उसको अप्रिय लगती है;
وَهَا هُوَ قَدْ جَعَلَ أَسْبَابَ كَلَامٍ قَائِلًا: لَمْ أَجِدْ لِبِنْتِكَ عُذْرَةً. وَهَذِهِ عَلَامَةُ عُذْرَةِ ٱبْنَتِي. وَيَبْسُطَانِ ٱلثَّوْبَ أَمَامَ شُيُوخِ ٱلْمَدِينَةِ. ١٧ 17
१७और वह तो यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाता है, कि मैंने तेरी बेटी में कुँवारीपन के लक्षण नहीं पाए। परन्तु मेरी बेटी के कुँवारीपन के चिन्ह ये हैं।’ तब उसके माता-पिता नगर के वृद्ध लोगों के सामने उस चद्दर को फैलाएँ।
فَيَأْخُذُ شُيُوخُ تِلْكَ ٱلْمَدِينَةِ ٱلرَّجُلَ وَيُؤَدِّبُونَهُ ١٨ 18
१८तब नगर के पुरनिये उस पुरुष को पकड़कर ताड़ना दें;
وَيُغْرِمُونَهُ بِمِئَةٍ مِنَ ٱلْفِضَّةِ، وَيُعْطُونَهَا لِأَبِي ٱلْفَتَاةِ، لِأَنَّهُ أَشَاعَ ٱسْمًا رَدِيًّا عَنْ عَذْرَاءَ مِنْ إِسْرَائِيلَ. فَتَكُونُ لَهُ زَوْجَةً. لَا يَقْدِرُ أَنْ يُطَلِّقَهَا كُلَّ أَيَّامِهِ. ١٩ 19
१९और उस पर सौ शेकेल चाँदी का दण्ड भी लगाकर उस कन्या के पिता को दें, इसलिए कि उसने एक इस्राएली कन्या की नामधराई की है; और वह उसी की पत्नी बनी रहे, और वह जीवन भर उस स्त्री को त्यागने न पाए।
«وَلَكِنْ إِنْ كَانَ هَذَا ٱلْأَمْرُ صَحِيحًا، لَمْ تُوجَدْ عُذْرَةٌ لِلْفَتَاةِ. ٢٠ 20
२०परन्तु यदि उस कन्या के कुँवारीपन के चिन्ह पाए न जाएँ, और उस पुरुष की बात सच ठहरे,
يُخْرِجُونَ ٱلْفَتَاةَ إِلَى بَابِ بَيْتِ أَبِيهَا، وَيَرْجُمُهَا رِجَالُ مَدِينَتِهَا بِٱلْحِجَارَةِ حَتَّى تَمُوتَ، لِأَنَّهَا عَمِلَتْ قَبَاحَةً فِي إِسْرَائِيلَ بِزِنَاهَا فِي بَيْتِ أَبِيهَا. فَتَنْزِعُ ٱلشَّرَّ مِنْ وَسَطِكَ. ٢١ 21
२१तो वे उस कन्या को उसके पिता के घर के द्वार पर ले जाएँ, और उस नगर के पुरुष उसको पथराव करके मार डालें; उसने तो अपने पिता के घर में वेश्या का काम करके बुराई की है; इस प्रकार तू अपने मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना।
«إِذَا وُجِدَ رَجُلٌ مُضْطَجِعًا مَعَ ٱمْرَأَةٍ زَوْجَةِ بَعْلٍ، يُقْتَلُ ٱلِٱثْنَانِ: ٱلرَّجُلُ ٱلْمُضْطَجِعُ مَعَ ٱلْمَرْأَةِ، وَٱلْمَرْأَةُ. فَتَنْزِعُ ٱلشَّرَّ مِنْ إِسْرَائِيلَ. ٢٢ 22
२२“यदि कोई पुरुष दूसरे पुरुष की ब्याही हुई स्त्री के संग सोता हुआ पकड़ा जाए, तो जो पुरुष उस स्त्री के संग सोया हो वह और वह स्त्री दोनों मार डाले जाएँ; इस प्रकार तू ऐसी बुराई को इस्राएल में से दूर करना।
«إِذَا كَانَتْ فَتَاةٌ عَذْرَاءُ مَخْطُوبَةً لِرَجُلٍ، فَوَجَدَهَا رَجُلٌ فِي ٱلْمَدِينَةِ وَٱضْطَجَعَ مَعَهَا، ٢٣ 23
२३“यदि किसी कुँवारी कन्या के ब्याह की बात लगी हो, और कोई दूसरा पुरुष उसे नगर में पाकर उससे कुकर्म करे,
فَأَخْرِجُوهُمَا كِلَيْهِمَا إِلَى بَابِ تِلْكَ ٱلْمَدِينَةِ وَٱرْجُمُوهُمَا بِٱلْحِجَارَةِ حَتَّى يَمُوتَا. ٱلْفَتَاةُ مِنْ أَجْلِ أَنَّهَا لَمْ تَصْرُخْ فِي ٱلْمَدِينَةِ، وَٱلرَّجُلُ مِنْ أَجْلِ أَنَّهُ أَذَلَّ ٱمْرَأَةَ صَاحِبِهِ. فَتَنْزِعُ ٱلشَّرَّ مِنْ وَسَطِكَ. ٢٤ 24
२४तो तुम उन दोनों को उस नगर के फाटक के बाहर ले जाकर उन पर पथराव करके मार डालना, उस कन्या को तो इसलिए कि वह नगर में रहते हुए भी नहीं चिल्लाई, और उस पुरुष को इस कारण कि उसने पड़ोसी की स्त्री का अपमान किया है; इस प्रकार तू अपने मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना।
وَلَكِنْ إِنْ وَجَدَ ٱلرَّجُلُ ٱلْفَتَاةَ ٱلْمَخْطُوبَةَ فِي ٱلْحَقْلِ وَأَمْسَكَهَا ٱلرَّجُلُ وَٱضْطَجَعَ مَعَهَا، يَمُوتُ ٱلرَّجُلُ ٱلَّذِي ٱضْطَجَعَ مَعَهَا وَحْدَهُ. ٢٥ 25
२५“परन्तु यदि कोई पुरुष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात लगी हो मैदान में पाकर बरबस उससे कुकर्म करे, तो केवल वह पुरुष मार डाला जाए, जिसने उससे कुकर्म किया हो।
وَأَمَّا ٱلْفَتَاةُ فَلَا تَفْعَلْ بِهَا شَيْئًا. لَيْسَ عَلَى ٱلْفَتَاةِ خَطِيَّةٌ لِلْمَوْتِ، بَلْ كَمَا يَقُومُ رَجُلٌ عَلَى صَاحِبِهِ وَيَقْتُلُهُ قَتْلًا. هَكَذَا هَذَا ٱلْأَمْرُ. ٢٦ 26
२६और उस कन्या से कुछ न करना; उस कन्या का पाप प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि जैसे कोई अपने पड़ोसी पर चढ़ाई करके उसे मार डाले, वैसी ही यह बात भी ठहरेगी;
إِنَّهُ فِي ٱلْحَقْلِ وَجَدَهَا، فَصَرَخَتِ ٱلْفَتَاةُ ٱلْمَخْطُوبَةُ فَلَمْ يَكُنْ مَنْ يُخَلِّصُهَا. ٢٧ 27
२७कि उस पुरुष ने उस कन्या को मैदान में पाया, और वह चिल्लाई तो सही, परन्तु उसको कोई बचानेवाला न मिला।
«إِذَا وَجَدَ رَجُلٌ فَتَاةً عَذْرَاءَ غَيْرَ مَخْطُوبَةٍ، فَأَمْسَكَهَا وَٱضْطَجَعَ مَعَهَا، فَوُجِدَا. ٢٨ 28
२८“यदि किसी पुरुष को कोई कुँवारी कन्या मिले जिसके ब्याह की बात न लगी हो, और वह उसे पकड़कर उसके साथ कुकर्म करे, और वे पकड़े जाएँ,
يُعْطِي ٱلرَّجُلُ ٱلَّذِي ٱضْطَجَعَ مَعَهَا لِأَبِي ٱلْفَتَاةِ خَمْسِينَ مِنَ ٱلْفِضَّةِ، وَتَكُونُ هِيَ لَهُ زَوْجَةً مِنْ أَجْلِ أَنَّهُ قَدْ أَذَلَّهَا. لَا يَقْدِرُ أَنْ يُطَلِّقَهَا كُلَّ أَيَّامِهِ. ٢٩ 29
२९तो जिस पुरुष ने उससे कुकर्म किया हो वह उस कन्या के पिता को पचास शेकेल चाँदी दे, और वह उसी की पत्नी हो, उसने उसका अपमान किया, इस कारण वह जीवन भर उसे न त्यागने पाए।
«لَا يَتَّخِذْ رَجُلٌ ٱمْرَأَةَ أَبِيهِ، وَلَا يَكْشِفْ ذَيْلَ أَبِيهِ. ٣٠ 30
३०“कोई अपनी सौतेली माता को अपनी स्त्री न बनाए, वह अपने पिता का ओढ़ना न उघाड़े।

< اَلتَّثْنِيَة 22 >