< اَلتَّثْنِيَة 19 >

«مَتَى قَرَضَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ ٱلْأُمَمَ ٱلَّذِينَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ يُعْطِيكَ أَرْضَهُمْ، وَوَرِثْتَهُمْ وَسَكَنْتَ مُدُنَهُمْ وَبُيُوتَهُمْ، ١ 1
जब ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उन क़ौमों को, जिनका मुल्क ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको देता है काट डाले, और तू उनकी जगह उनके शहरों और घरों में रहने लगे,
تَفْرِزُ لِنَفْسِكَ ثَلَاثَ مُدُنٍ فِي وَسَطِ أَرْضِكَ ٱلَّتِي يُعْطِيكَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ لِتَمْتَلِكَهَا. ٢ 2
तो तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है, तीन शहर अपने लिए अलग कर देना।
تُصْلِحُ ٱلطَّرِيقَ وَتُثَلِّثُ تُخُومَ أَرْضِكَ ٱلَّتِي يَقْسِمُ لَكَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ، فَتَكُونُ لِكَيْ يَهْرُبَ إِلَيْهَا كُلُّ قَاتِلٍ. ٣ 3
और तू एक रास्ता भी अपने लिए तैयार करना, और अपने उस मुल्क की ज़मीन को जिस पर ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा दिलाता है तीन हिस्से करना, ताकि हर एक ख़ूनी वहीं भाग जाए।
وَهَذَا هُوَ حُكْمُ ٱلْقَاتِلِ ٱلَّذِي يَهْرُبُ إِلَى هُنَاكَ فَيَحْيَا: مَنْ ضَرَبَ صَاحِبَهُ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَهُوَ غَيْرُ مُبْغِضٍ لَهُ مُنْذُ أَمْسِ وَمَا قَبْلَهُ. ٤ 4
और उस क़ातिल का जो वहाँ भाग कर अपनी जान बचाए हाल यह हो, कि उसने अपने पड़ोसी को अनजाने में और बग़ैर उससे पुरानी दुश्मनी रख्खे मार डाला हो।
وَمَنْ ذَهَبَ مَعَ صَاحِبِهِ فِي ٱلْوَعْرِ لِيَحْتَطِبَ حَطَبًا، فَٱنْدَفَعَتْ يَدُهُ بِٱلْفَأْسِ لِيَقْطَعَ ٱلْحَطَبَ، وَأَفْلَتَ ٱلْحَدِيدُ مِنَ ٱلْخَشَبِ وَأَصَابَ صَاحِبَهُ فَمَاتَ، فَهُوَ يَهْرُبُ إِلَى إِحْدَى تِلْكَ ٱلْمُدُنِ فَيَحْيَا. ٥ 5
मसलन कोई शख़्स अपने पड़ोसी के साथ लकड़ियाँ काटने को जंगल में जाए और कुल्हाड़ा हाथ में उठाए ताकि दरख़्त काटे, और कुल्हाड़ा दस्ते से निकल कर उसके पड़ोसी के जा लगे और वह मर जाए, तो वह इन शहरों में से किसी में भाग कर ज़िन्दा बचे।
لِئَلَّا يَسْعَى وَلِيُّ ٱلدَّمِ وَرَاءَ ٱلْقَاتِلِ حِينَ يَحْمَى قَلْبُهُ، وَيُدْرِكَهُ إِذَا طَالَ ٱلطَّرِيقُ وَيَقْتُلَهُ، وَلَيْسَ عَلَيْهِ حُكْمُ ٱلْمَوْتِ، لِأَنَّهُ غَيْرُ مُبْغِضٍ لَهُ مُنْذُ أَمْسِ وَمَا قَبْلَهُ. ٦ 6
कहीं ऐसा न हो कि रास्ते की लम्बाई की वजह से ख़ून का इन्तक़ाम लेने वाला अपने जोश — ए — ग़ज़ब में क़ातिल का पीछा करके उसको जा पकड़े और उसको क़त्ल करे, हालाँके वह वाजिब — उल — क़त्ल नहीं क्यूँकि उसे मक़्तूल से पुरानी दुश्मनी न थी।
لِأَجْلِ ذَلِكَ أَنَا آمُرُكَ قَائِلًا: ثَلَاثَ مُدُنٍ تَفْرِزُ لِنَفْسِكَ. ٧ 7
इसलिए मैं तुझको हुक्म देता हूँ कि तू अपने लिए तीन शहर अलग कर देना।
وَإِنْ وَسَّعَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ تُخُومَكَ كَمَا حَلَفَ لِآبَائِكَ، وَأَعْطَاكَ جَمِيعَ ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي قَالَ إِنَّهُ يُعْطِي لِآبَائِكَ، ٨ 8
और अगर ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा उस क़सम के मुताबिक़ जो उसने तेरे बाप — दादा से खाई, तेरी सरहद को बढ़ाकर वह सब मुल्क जिसके देने का वा'दा उसने तेरे बाप दादा से किया था तुझको दे।
إِذْ حَفِظْتَ كُلَّ هَذِهِ ٱلْوَصَايَا لِتَعْمَلَهَا، كَمَا أَنَا أُوصِيكَ ٱلْيَوْمَ لِتُحِبَّ ٱلرَّبَّ إِلَهَكَ وَتَسْلُكَ فِي طُرُقِهِ كُلَّ ٱلْأَيَّامِ، فَزِدْ لِنَفْسِكَ أَيْضًا ثَلَاثَ مُدُنٍ عَلَى هَذِهِ ٱلثَّلَاثِ، ٩ 9
और तू इन सब हुक्मों पर जो आज के दिन मैं तुझको देता हूँ ध्यान करके 'अमल करे और ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से मुहब्बत रख्खे और हमेशा उसकी राहों पर चले, तो इन तीन शहरों के आलावा तीन शहर और अपने लिए अलग कर देना।
حَتَّى لَا يُسْفَكَ دَمُ بَرِيءٍ فِي وَسَطِ أَرْضِكَ ٱلَّتِي يُعْطِيكَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ نَصِيبًا، فَيَكُونَ عَلَيْكَ دَمٌ. ١٠ 10
ताकि तेरे मुल्क के बीच जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको मीरास में देता है, बेगुनाह का ख़ून बहाया न जाए और वह ख़ून यूँ तेरी गर्दन पर हो।
«وَلَكِنْ إِذَا كَانَ إِنْسَانٌ مُبْغِضًا لِصَاحِبِهِ، فَكَمَنَ لَهُ وَقَامَ عَلَيْهِ وَضَرَبَهُ ضَرْبَةً قَاتِلَةً فَمَاتَ، ثُمَّ هَرَبَ إِلَى إِحْدَى تِلْكَ ٱلْمُدُنِ، ١١ 11
लेकिन अगर कोई शख़्स अपने पड़ोसी से दुश्मनी रखता हुआ उसकी घात में लगे, और उस पर हमला कर के उसे ऐसा मारे कि वह मर जाए और वह ख़ुद उन शहरों में से किसी में भाग जाए।
يُرْسِلُ شُيُوخُ مَدِينَتِهِ وَيَأْخُذُونَهُ مِنْ هُنَاكَ وَيَدْفَعُونَهُ إِلَى يَدِ وَلِيِّ ٱلدَّمِ فَيَمُوتُ. ١٢ 12
तो उसके शहर के बुज़ुर्ग लोगों को भेजकर उसे वहाँ से पकड़वा मँगवाएँ, और उसको ख़ून के इन्तक़ाम लेने वाले के हाथ में हवाले करें ताकि वह क़त्ल हो।
لَا تُشْفِقْ عَيْنُكَ عَلَيْهِ. فَتَنْزِعَ دَمَ ٱلْبَرِيءِ مِنْ إِسْرَائِيلَ، فَيَكُونَ لَكَ خَيْرٌ. ١٣ 13
तुझको उस पर ज़रा तरस न आए, बल्कि तू इस तरह बेगुनाह के ख़ून को इस्राईल से दफ़ा' करना ताकि तेरा भला हो।
لَا تَنْقُلْ تُخْمَ صَاحِبِكَ ٱلَّذِي نَصَبَهُ ٱلْأَوَّلُونَ فِي نَصِيبِكَ ٱلَّذِي تَنَالُهُ فِي ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي يُعْطِيكَ ٱلرَّبُّ إِلَهُكَ لِكَيْ تَمْتَلِكَهَا. ١٤ 14
तू उस मुल्क में जिसे ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा तुझको क़ब्ज़ा करने को देता है, अपने पड़ोसी की हद का निशान जिसको अगले लोगों ने तेरी मीरास के हिस्से में ठहराया हो मत हटाना।
«لَا يَقُومُ شَاهِدٌ وَاحِدٌ عَلَى إِنْسَانٍ فِي ذَنْبٍ مَّا أَوْ خَطِيَّةٍ مَّا مِنْ جَمِيعِ ٱلْخَطَايَا ٱلَّتِي يُخْطِئُ بِهَا. عَلَى فَمِ شَاهِدَيْنِ أَوْ عَلَى فَمِ ثَلَاثَةِ شُهُودٍ يَقُومُ ٱلْأَمْرُ. ١٥ 15
किसी शख़्स के ख़िलाफ़ उसकी किसी बदकारी या गुनाह के बारे में जो उससे सरज़द हो, एक ही गवाह बस नहीं बल्कि दो गवाहों या तीन गवाहों के कहने से बात पक्की समझी जाए।
إِذَا قَامَ شَاهِدُ زُورٍ عَلَى إِنْسَانٍ لِيَشْهَدَ عَلَيْهِ بِزَيْغٍ، ١٦ 16
अगर कोई झूटा गवाह उठ कर किसी आदमी की बदी की निस्बत गवाही दे,
يَقِفُ ٱلرَّجُلَانِ ٱللَّذَانِ بَيْنَهُمَا ٱلْخُصُومَةُ أَمَامَ ٱلرَّبِّ، أَمَامَ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلْقُضَاةِ ٱلَّذِينَ يَكُونُونَ فِي تِلْكَ ٱلْأَيَّامِ. ١٧ 17
तो वह दोनों आदमी जिनके बीच यह झगड़ा हो, ख़ुदावन्द के सामने काहिनों और उन दिनों के क़ाज़ियों के आगे खड़े हों,
فَإِنْ فَحَصَ ٱلْقُضَاةُ جَيِّدًا، وَإِذَا ٱلشَّاهِدُ شَاهِدٌ كَاذِبٌ، قَدْ شَهِدَ بِٱلْكَذِبِ عَلَى أَخِيهِ، ١٨ 18
और क़ाज़ी ख़ूब तहक़ीक़ात करें, और अगर वह गवाह झूटा निकले और उसने अपने भाई के ख़िलाफ़ झूटी गवाही दी हो;
فَٱفْعَلُوا بِهِ كَمَا نَوَى أَنْ يَفْعَلَ بِأَخِيهِ. فَتَنْزِعُونَ ٱلشَّرَّ مِنْ وَسْطِكُمْ. ١٩ 19
तो जो हाल उसने अपने भाई का करना चाहा था, वही तुम उसका करना; और यूँ तू ऐसी बुराई को अपने बीच से दफ़ा' कर देना।
وَيَسْمَعُ ٱلْبَاقُونَ فَيَخَافُونَ، وَلَا يَعُودُونَ يَفْعَلُونَ مِثْلَ ذَلِكَ ٱلْأَمْرِ ٱلْخَبِيثِ فِي وَسَطِكَ. ٢٠ 20
और दूसरे लोग सुन कर डरेंगे और तेरे बीच फिर ऐसी बुराई नहीं करेंगे।
لَا تُشْفِقْ عَيْنُكَ. نَفْسٌ بِنَفْسٍ. عَيْنٌ بِعَيْنٍ. سِنٌّ بِسِنٍّ. يَدٌ بِيَدٍ. رِجْلٌ بِرِجْلٍ. ٢١ 21
और तुझको ज़रा तरस न आए; जान का बदला जान, आँख का बदला आँख, दाँत का बदला दाँत, हाथ का बदला हाथ, और पाँव का बदला पाँव हो।

< اَلتَّثْنِيَة 19 >