< كُولُوسِي 2 >

فَإِنِّي أُرِيدُ أَنْ تَعْلَمُوا أَيُّ جِهَادٍ لِي لِأَجْلِكُمْ، وَلِأَجْلِ ٱلَّذِينَ فِي لَاوُدِكِيَّةَ، وَجَمِيعِ ٱلَّذِينَ لَمْ يَرَوْا وَجْهِي فِي ٱلْجَسَدِ، ١ 1
मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि मैं तुम्हारे लिए किस क़दर जाँफ़िशानी कर रहा हूँ — तुम्हारे लिए, लौदीकिया शहर वालों के लिए और उन तमाम ईमानदारों के लिए भी जिन की मेरे साथ मुलाक़ात नहीं हुई।
لِكَيْ تَتَعَزَّى قُلُوبُهُمْ مُقْتَرِنَةً فِي ٱلْمَحَبَّةِ لِكُلِّ غِنَى يَقِينِ ٱلْفَهْمِ، لِمَعْرِفَةِ سِرِّ ٱللهِ ٱلْآبِ وَٱلْمَسِيحِ، ٢ 2
मेरी कोशिश यह है कि उन की दिली हौसला अफ़्ज़ाई की जाए और वह मुहब्बत में एक हो जाएँ, कि उन्हें वह ठोस भरोसा हासिल हो जाए जो पूरी समझ से पैदा होता है। क्यूँकि मैं चाहता हूँ कि वह ख़ुदा का राज़ जान लें। राज़ क्या है? मसीह ख़ुद।
ٱلْمُذَّخَرِ فِيهِ جَمِيعُ كُنُوزِ ٱلْحِكْمَةِ وَٱلْعِلْمِ. ٣ 3
उसी में हिक्मत और इल्म — ओ — 'इरफ़ान के तमाम ख़ज़ाने छुपे हैं।
وَإِنَّمَا أَقُولُ هَذَا لِئَلَّا يَخْدَعَكُمْ أَحَدٌ بِكَلَامٍ مَلِقٍ. ٤ 4
ग़रज़ ख़बरदार रहें कि कोई तुमको बज़ाहिर सही और मीठे मीठे अल्फ़ाज़ से धोखा न दे।
فَإِنِّي وَإِنْ كُنْتُ غَائِبًا فِي ٱلْجَسَدِ لَكِنِّي مَعَكُمْ فِي ٱلرُّوحِ، فَرِحًا، وَنَاظِرًا تَرْتِيبَكُمْ وَمَتَانَةَ إِيمَانِكُمْ فِي ٱلْمَسِيحِ. ٥ 5
क्यूँकि गरचे मैं जिस्म के लिहाज़ से हाज़िर नहीं हूँ, लेकिन रूह में मैं तुम्हारे साथ हूँ। और मैं यह देख कर ख़ुश हूँ कि तुम कितनी मुनज़्ज़म ज़िन्दगी गुज़ारते हो, कि तुम्हारा मसीह पर ईमान कितना पुख़्ता है।
فَكَمَا قَبِلْتُمُ ٱلْمَسِيحَ يَسُوعَ ٱلرَّبَّ ٱسْلُكُوا فِيهِ، ٦ 6
तुमने ईसा मसीह को ख़ुदावन्द के तौर पर क़बूल कर लिया है। अब उस में ज़िन्दगी गुज़ारो।
مُتَأَصِّلِينَ وَمَبْنِيِّينَ فِيهِ، وَمُوَطَّدِينَ فِي ٱلْإِيمَانِ، كَمَا عُلِّمْتُمْ، مُتَفَاضِلِينَ فِيهِ بِٱلشُّكْرِ. ٧ 7
उस में जड़ पकड़ो, उस पर अपनी ज़िन्दगी तामीर करो, उस ईमान में मज़्बूत रहो जिस की तुमको तालीम दी गई है और शुक्रगुज़ारी से लबरेज़ हो जाओ।
اُنْظُرُوا أَنْ لَا يَكُونَ أَحَدٌ يَسْبِيكُمْ بِٱلْفَلْسَفَةِ وَبِغُرُورٍ بَاطِلٍ، حَسَبَ تَقْلِيدِ ٱلنَّاسِ، حَسَبَ أَرْكَانِ ٱلْعَالَمِ، وَلَيْسَ حَسَبَ ٱلْمَسِيحِ. ٨ 8
होशियार रहो कि कोई तुम को फ़ल्सफ़ियाना और महज़ धोखा देने वाली बातों से अपने जाल में न फँसा ले। ऐसी बातों का सरचश्मा मसीह नहीं बल्कि इंसानी रिवायतें और इस दुनियाँ की ताक़तें हैं।
فَإِنَّهُ فِيهِ يَحِلُّ كُلُّ مِلْءِ ٱللَّاهُوتِ جَسَدِيًّا. ٩ 9
क्यूँकि मसीह में ख़ुदाइयत की सारी मा'मूरी मुजस्सिम हो कर सुकूनत करती है।
وَأَنْتُمْ مَمْلُوؤُونَ فِيهِ، ٱلَّذِي هُوَ رَأْسُ كُلِّ رِيَاسَةٍ وَسُلْطَانٍ. ١٠ 10
और तुम को जो मसीह में हैं उस की मामूरी में शरीक कर दिया गया है। वही हर हुक्मरान और इख़्तियार वाले का सर है।
وَبِهِ أَيْضًا خُتِنْتُمْ خِتَانًا غَيْرَ مَصْنُوعٍ بِيَدٍ، بِخَلْعِ جِسْمِ خَطَايَا ٱلْبَشَرِيَّةِ، بِخِتَانِ ٱلْمَسِيحِ. ١١ 11
उस में आते वक़्त तुम्हारा ख़तना भी करवाया गया। लेकिन यह ख़तना इंसानी हाथों से नहीं किया गया बल्कि मसीह के वसीले से। उस वक़्त तुम्हारी पुरानी निस्बत उतार दी गई,
مَدْفُونِينَ مَعَهُ فِي ٱلْمَعْمُودِيَّةِ، ٱلَّتِي فِيهَا أُقِمْتُمْ أَيْضًا مَعَهُ بِإِيمَانِ عَمَلِ ٱللهِ، ٱلَّذِي أَقَامَهُ مِنَ ٱلْأَمْوَاتِ. ١٢ 12
तुम को बपतिस्मा दे कर मसीह के साथ दफ़नाया गया और तुम को ईमान से ज़िन्दा कर दिया गया। क्यूँकि तुम ख़ुदा की क़ुदरत पर ईमान लाए थे, उसी क़ुदरत पर जिस ने मसीह को मुर्दों में से ज़िन्दा कर दिया था।
وَإِذْ كُنْتُمْ أَمْوَاتًا فِي ٱلْخَطَايَا وَغَلَفِ جَسَدِكُمْ، أَحْيَاكُمْ مَعَهُ، مُسَامِحًا لَكُمْ بِجَمِيعِ ٱلْخَطَايَا، ١٣ 13
पहले तुम अपने गुनाहों और नामख़्तून जिस्मानी हालत की वजह से मुर्दा थे, लेकिन अब ख़ुदा ने तुमको मसीह के साथ ज़िन्दा कर दिया है। उस ने हमारे तमाम गुनाहों को मुआफ़ कर दिया है।
إِذْ مَحَا ٱلصَّكَّ ٱلَّذِي عَلَيْنَا فِي ٱلْفَرَائِضِ، ٱلَّذِي كَانَ ضِدًّا لَنَا، وَقَدْ رَفَعَهُ مِنَ ٱلْوَسَطِ مُسَمِّرًا إِيَّاهُ بِٱلصَّلِيبِ، ١٤ 14
और अहकाम की वह दस्तावेज़ जो हमारे ख़िलाफ़ थी उसे उस ने रद्द कर दिया। हाँ, उस ने हम से दूर करके उसे कीलों से सलीब पर जड़ दिया।
إِذْ جَرَّدَ ٱلرِّيَاسَاتِ وَٱلسَّلَاطِينَ أَشْهَرَهُمْ جِهَارًا، ظَافِرًا بِهِمْ فِيهِ. ١٥ 15
उस ने हुक्मरानों और इख़्तियार वालों से उन का हथियार छीन कर सब के सामने उन की रुस्वाई की। हाँ, मसीह की सलीबी मौत से वह ख़ुदा के क़ैदी बन गए और उन्हें फ़तह के जुलूस में उस के पीछे पीछे चलना पड़ा।
فَلَا يَحْكُمْ عَلَيْكُمْ أَحَدٌ فِي أَكْلٍ أَوْ شُرْبٍ، أَوْ مِنْ جِهَةِ عِيدٍ أَوْ هِلَالٍ أَوْ سَبْتٍ، ١٦ 16
चुनाँचे कोई तुमको इस वजह से मुजरिम न ठहराए कि तुम क्या क्या खाते — पीते या कौन कौन सी ईदें मनाते हो। इसी तरह कोई तुम्हारी अदालत न करे अगर तुम हक़ की ईद या सबत का दिन नहीं मनाते।
ٱلَّتِي هِيَ ظِلُّ ٱلْأُمُورِ ٱلْعَتِيدَةِ، وَأَمَّا ٱلْجَسَدُ فَلِلْمَسِيحِ. ١٧ 17
यह चीज़ें तो सिर्फ़ आने वाली हक़ीक़त का साया ही हैं जबकि यह हक़ीक़त ख़ुद मसीह में पाई जाती है।
لَا يُخَسِّرْكُمْ أَحَدٌ ٱلْجِعَالَةَ، رَاغِبًا فِي ٱلتَّوَاضُعِ وَعِبَادَةِ ٱلْمَلَائِكَةِ، مُتَدَاخِلًا فِي مَا لَمْ يَنْظُرْهُ، مُنْتَفِخًا بَاطِلًا مِنْ قِبَلِ ذِهْنِهِ ٱلْجَسَدِيِّ، ١٨ 18
ऐसे लोग तुम को मुजरिम न ठहराएँ जो ज़ाहिरी फ़रोतनी और फ़रिश्तों की इबादत पर इसरार करते हैं। बड़ी तफ़्सील से अपनी रोयाओं में देखी हुई बातें बयान करते करते उन के ग़ैररुहानी ज़हन ख़्वाह — म — ख़्वाह फूल जाते हैं।
وَغَيْرَ مُتَمَسِّكٍ بِٱلرَّأْسِ ٱلَّذِي مِنْهُ كُلُّ ٱلْجَسَدِ بِمَفَاصِلَ وَرُبُطٍ، مُتَوَازِرًا وَمُقْتَرِنًا يَنْمُو نُمُوًّا مِنَ ٱللهِ. ١٩ 19
यूँ उन्हों ने मसीह के साथ लगे रहना छोड़ दिया अगरचे वह बदन का सिर है। वही जोड़ों और पट्ठों के ज़रिए पूरे बदन को सहारा दे कर उस के मुख़्तलिफ़ हिस्सों को जोड़ देता है। यूँ पूरा बदन ख़ुदा की मदद से तरक़्क़ी करता जाता है।
إِذًا إِنْ كُنْتُمْ قَدْ مُتُّمْ مَعَ ٱلْمَسِيحِ عَنْ أَرْكَانِ ٱلْعَالَمِ، فَلِمَاذَا كَأَنَّكُمْ عَائِشُونَ فِي ٱلْعَالَمِ؟ تُفْرَضُ عَلَيْكُمْ فَرَائِضُ: ٢٠ 20
तुम तो मसीह के साथ मर कर दुनियाँ की ताक़तों से आज़ाद हो गए हो। अगर ऐसा है तो तुम ज़िन्दगी ऐसे क्यूँ गुज़ारते हो जैसे कि तुम अभी तक इस दुनिया की मिल्कियत हो? तुम क्यूँ इस के अह्काम के ताबे रहते हो?
«لَا تَمَسَّ! وَلَا تَذُقْ! وَلَا تَجُسَّ!» ٢١ 21
मसलन “इसे हाथ न लगाना, वह न चखना, यह न छूना।”
ٱلَّتِي هِيَ جَمِيعُهَا لِلْفَنَاءِ فِي ٱلِٱسْتِعْمَالِ، حَسَبَ وَصَايَا وَتَعَالِيمِ ٱلنَّاسِ، ٢٢ 22
इन तमाम चीज़ों का मक़्सद तो यह है कि इस्तेमाल हो कर ख़त्म हो जाएँ। यह सिर्फ़ इंसानी अह्काम और तालीमात हैं।
ٱلَّتِي لَهَا حِكَايَةُ حِكْمَةٍ، بِعِبَادَةٍ نَافِلَةٍ، وَتَوَاضُعٍ، وَقَهْرِ ٱلْجَسَدِ، لَيْسَ بِقِيمَةٍ مَا مِنْ جِهَةِ إِشْبَاعِ ٱلْبَشَرِيَّةِ. ٢٣ 23
बेशक यह अह्काम जो गढ़े हुए मज़्हबी फ़राइज़, नाम — निहाद फ़रोतनी और जिस्म के सख़्त दबाओ का तक़ाज़ा करते हैं हिक्मत पर मुन्हसिर तो लगते हैं, लेकिन यह बेकार हैं और सिर्फ़ जिस्म ही की ख़्वाहिशात पूरी करते हैं।

< كُولُوسِي 2 >