< عَامُوس 5 >

اِسْمَعُوا هَذَا ٱلْقَوْلَ ٱلَّذِي أَنَا أُنَادِي بِهِ عَلَيْكُمْ، مَرْثَاةً يَا بَيْتَ إِسْرَائِيلَ: ١ 1
ऐ इस्राईल के ख़ान्दान, इस कलाम को जिससे मैं तुम पर नौहा करता हूँ, सुनो:
«سَقَطَتْ عَذْرَاءُ إِسْرَائِيلَ. لَا تَعُودُ تَقُومُ. ٱنْطَرَحَتْ عَلَى أَرْضِهَا لَيْسَ مَنْ يُقِيمُهَا». ٢ 2
“इस्राईल की कुँवारी गिर पड़ी, वह फिर न उठेगी; वह अपनी ज़मीन पर पड़ी है, उसको उठाने वाला कोई नहीं।”
لِأَنَّهُ هَكَذَا قَالَ ٱلسَّيِّدُ ٱلرَّبُّ: «ٱلْمَدِينَةُ ٱلْخَارِجَةُ بِأَلْفٍ، يَبْقَى لَهَا مِئَةٌ، وَٱلْخَارِجَةُ بِمِئَةٍ يَبْقَى لَهَا عَشَرَةٌ مِنْ بَيْتِ إِسْرَائِيلَ». ٣ 3
क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है कि “इस्राईल के घराने के लिए, जिस शहर से एक हज़ार निकलते थे, उसमें एक सौ रह जाएँगे; और जिससे एक सौ निकलते थे, उसमें दस रह जाएँगे।”
لِأَنَّهُ هَكَذَا قَالَ ٱلرَّبُّ لِبَيْتِ إِسْرَائِيلَ: «ٱطْلُبُوا فَتَحْيَوْا. ٤ 4
क्यूँकि ख़ुदावन्द इस्राईल के घराने से यूँ फ़रमाता है कि “तुम मेरे तालिब हो और ज़िन्दा रहो;
وَلَا تَطْلُبُوا بَيْتَ إِيلَ، وَإِلَى ٱلْجِلْجَالِ لَا تَذْهَبُوا، وَإِلَى بِئْرَ سَبْعٍ لَا تَعْبُرُوا. لِأَنَّ ٱلْجِلْجَالَ تُسْبَى سَبْيًا، وَبَيْتَ إِيلَ تَصِيرُ عَدَمًا». ٥ 5
लेकिन बैतएल के तालिब न हो, और जिल्जाल में दाख़िल न हो, और बैरसबा' को न जाओ, क्यूँकि जिल्जाल ग़ुलामी में जाएगा और बैतएल नाचीज़ होगा।”
اُطْلُبُوا ٱلرَّبَّ فَتَحْيَوْا لِئَلَّا يَقْتَحِمَ بَيْتَ يُوسُفَ كَنَارٍ تُحْرِقُ، وَلَا يَكُونُ مَنْ يُطْفِئُهَا مِنْ بَيْتِ إِيلَ. ٦ 6
तुम ख़ुदावन्द के तालिब हो और ज़िन्दा रहो, ऐसा न हो कि वह यूसुफ़ के घराने में आग की तरह भड़के और उसे खा जाए और बैतएल में उसे बुझाने वाला कोई न हो।
يَا أَيُّهَا ٱلَّذِينَ يُحَوِّلُونَ ٱلْحَقَّ أَفْسَنْتِينًا، وَيُلْقُونَ ٱلْبِرَّ إِلَى ٱلْأَرْضِ. ٧ 7
ऐ 'अदालत को नागदौना बनाने वालों, और सदाक़त को ख़ाक में मिलाने वालों!
اَلَّذِي صَنَعَ ٱلثُّرَيَّا وَٱلْجَبَّارَ، وَيُحَوِّلُ ظِلَّ ٱلْمَوْتِ صُبْحًا، وَيُظْلِمُ ٱلنَّهَارَ كَٱللَّيْلِ. ٱلَّذِي يَدْعُو مِيَاهَ ٱلْبَحْرِ وَيَصُبُّهَا عَلَى وَجْهِ ٱلْأَرْضِ، يَهْوَهُ ٱسْمُهُ. ٨ 8
वही सुरैया और जब्बार सितारों का ख़ालिक़ है जो मौत के साये को मतला' — ए — नूर, और रोज़ — ए — रोशन को शब — ए — दैजूर बना देता है, और समन्दर के पानी को बुलाता और इस ज़मीन पर फैलाता है, जिसका नाम ख़ुदावन्द है;
ٱلَّذِي يُفْلِحُ ٱلْخَرِبَ عَلَى ٱلْقَوِيِّ، فَيَأْتِي ٱلْخَرِبُ عَلَى ٱلْحِصْنِ. ٩ 9
वह जो ज़बरदस्तों पर नागहानी हलाकत लाता है, जिससे क़िलों' पर तबाही आती है।
إِنَّهُمْ فِي ٱلْبَابِ يُبْغِضُونَ ٱلْمُنْذِرَ، وَيَكْرَهُونَ ٱلْمُتَكَلِّمَ بِٱلصِّدْقِ. ١٠ 10
वह फाटक में मलामत करने वालों से कीना रखते हैं, और रास्तगो से नफ़रत करते हैं।
لِذَلِكَ مِنْ أَجْلِ أَنَّكُمْ تَدُوسُونَ ٱلْمِسْكِينَ، وَتَأْخُذُونَ مِنْهُ هَدِيَّةَ قَمْحٍ، بَنَيْتُمْ بُيُوتًا مِنْ حِجَارَةٍ مَنْحُوتَةٍ وَلَا تَسْكُنُونَ فِيهَا، وَغَرَسْتُمْ كُرُومًا شَهِيَّةً وَلَا تَشْرَبُونَ خَمْرَهَا. ١١ 11
इसलिए चूँकि तुम ग़रीबों को पायमाल करते हो और ज़ुल्म करके उनसे गेहूँ छीन लेते हो, इसलिए जो तराशे हुए पत्थरों के मकान तुम ने बनाए उनमें न बसोगे, और जो नफ़ीस ताकिस्तान तुम ने लगाए उनकी मय न पियोगे।
لِأَنِّي عَلِمْتُ أَنَّ ذُنُوبَكُمْ كَثِيرَةٌ وَخَطَايَاكُمْ وَافِرَةٌ أَيُّهَا ٱلْمُضَايِقُونَ ٱلْبَارَّ، ٱلْآخِذُونَ ٱلرَّشْوَةَ، ٱلصَّادُّونَ ٱلْبَائِسِينَ فِي ٱلْبَابِ. ١٢ 12
क्यूँकि मैं तुम्हारी बेशुमार ख़ताओं और तुम्हारे बड़े — बड़े गुनाहों से आगाह हूँ तुम सादिक़ों को सताते और रिश्वत लेते हो, और फाटक में ग़रीबों की हक़तलफ़ी करते हो।
لِذَلِكَ يَصْمُتُ ٱلْعَاقِلُ فِي ذَلِكَ ٱلزَّمَانِ لِأَنَّهُ زَمَانٌ رَدِيءٌ. ١٣ 13
इसलिए इन दिनों में पेशबीन ख़ामोश हो रहेंगे क्यूँकि ये बुरा वक़्त है।
اُطْلُبُوا ٱلْخَيْرَ لَا ٱلشَّرَّ لِكَىْ تَحْيَوْا، فَعَلَى هَذَا يَكُونُ ٱلرَّبُّ إِلَهُ ٱلْجُنُودِ مَعَكُمْ كَمَا قُلْتُمْ. ١٤ 14
बुराई के नहीं बल्कि नेकी के तालिब हो, ताकि ज़िन्दा रहो और ख़ुदावन्द रब्ब — उल — अफ़वाज तुम्हारे साथ रहेगा, जैसा कि तुम कहते हो।
اُبْغُضُوا ٱلشَّرَّ، وَأَحِبُّوا ٱلْخَيْرَ، وَثَبِّتُوا ٱلْحَقَّ فِي ٱلْبَابِ، لَعَلَّ ٱلرَّبَّ إِلَهَ ٱلْجُنُودِ يَتَرَاءَفُ عَلَى بَقِيَّةِ يُوسُفَ. ١٥ 15
बुराई से 'अदावत और नेकी से मुहब्बत रख्खो, और फाटक में 'अदालत को क़ायम करो; शायद ख़ुदावन्द रब्ब — उल — अफ़वाज बनी यूसुफ़ के बक़िये पर रहम करे।
لِذَلِكَ هَكَذَا قَالَ ٱلسَّيِّدُ ٱلرَّبُّ إِلَهُ ٱلْجُنُودِ: «فِي جَمِيعِ ٱلْأَسْوَاقِ نَحِيبٌ، وَفِي جَمِيعِ ٱلْأَزِقَّةِ يَقُولُونَ: آهِ! آهِ! وَيَدْعُونَ ٱلْفَلَّاحَ إِلَى ٱلنَّوْحِ، وَجَمِيعَ عَارِفِي ٱلرِّثَاءِ لِلنَّدْبِ. ١٦ 16
इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा रब्ब — उल — अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: सब बाज़ारों में नौहा होगा, और सब गलियों में अफ़सोस अफ़सोस कहेंगे; और किसानों को मातम के लिए, और उनको जो नौहागरी में महारत रखते हैं नौहे के लिए बुलाएँगे;
وَفِي جَمِيعِ ٱلْكُرُومِ نَدْبٌ، لِأَنِّي أَعْبُرُ فِي وَسَطِكَ، قَالَ ٱلرَّبُّ». ١٧ 17
और सब ताकिस्तानों में मातम होगा, क्यूँकि मैं तुझमें से होकर गुज़रूँगा, ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
وَيْلٌ لِلَّذِينَ يَشْتَهُونَ يَوْمَ ٱلرَّبِّ! لِمَاذَا لَكُمْ يَوْمُ ٱلرَّبِّ؟ هُوَ ظَلَامٌ لَا نُورٌ. ١٨ 18
तुम पर अफ़सोस जो ख़ुदावन्द के दिन की आरज़ू करते हो! तुम ख़ुदावन्द के दिन की आरजू क्यूँ करते हो? वह तो तारीकी का दिन है, रोशनी का नहीं;
كَمَا إِذَا هَرَبَ إِنْسَانٌ مِنْ أَمَامِ ٱلْأَسَدِ فَصَادَفَهُ ٱلدُّبُّ، أَوْ دَخَلَ ٱلْبَيْتَ وَوَضَعَ يَدَهُ عَلَى ٱلْحَائِطِ فَلَدَغَتْهُ ٱلْحَيَّةُ! ١٩ 19
जैसे कोई शेर — ए — बबर से भागे और रीछ उसे मिले, या घर में जाकर अपना हाथ दीवार पर रख्खे और उसे साँप काट ले।
أَلَيْسَ يَوْمُ ٱلرَّبِّ ظَلَامًا لَا نُورًا، وَقَتَامًا وَلَا نُورَ لَهُ؟ ٢٠ 20
क्या ख़ुदावन्द का दिन तारीकी न होगा? उसमें रोशनी न होगी, बल्कि सख़्त ज़ुल्मत होगी और नूर मुतलक़ न होगा।
«بَغَضْتُ، كَرِهْتُ أَعْيَادَكُمْ، وَلَسْتُ أَلْتَذُّ بِٱعْتِكَافَاتِكُمْ. ٢١ 21
मैं तुम्हारी 'ईदों को मकरूह जानता, और उनसे नफ़रत रखता हूँ; और मैं तुम्हारी पाक महफ़िलों से भी ख़ुश न हूँगा।
إِنِّي إِذَا قَدَّمْتُمْ لِي مُحْرَقَاتِكُمْ وَتَقْدِمَاتِكُمْ لَا أَرْتَضِي، وَذَبَائِحَ ٱلسَّلَامَةِ مِنْ مُسَمَّنَاتِكُمْ لَا أَلْتَفِتُ إِلَيْهَا. ٢٢ 22
और अगरचे तुम मेरे सामने सोख़्तनी और नज़्र की क़ुर्बानियाँ पेश करोगे तोभी मैं उनको क़ुबूल न करूँगा; और तुम्हारे फ़र्बा जानवरों की शुक्राने की क़ुर्बानियों को ख़ातिर में न लाऊँगा।
أَبْعِدْ عَنِّي ضَجَّةَ أَغَانِيكَ، وَنَغْمَةَ رَبَابِكَ لَا أَسْمَعُ. ٢٣ 23
तू अपने सरोद का शोर मेरे सामने से दूर कर, क्यूँकि मैं तेरे रबाब की आवाज़ न सुनूँगा।
وَلْيَجْرِ ٱلْحَقُّ كَٱلْمِيَاهِ، وَٱلْبِرُّ كَنَهْرٍ دَائِمٍ. ٢٤ 24
लेकिन 'अदालत को पानी की तरह और सदाक़त को बड़ी नहर की तरह जारी रख।
«هَلْ قَدَّمْتُمْ لِي ذَبَائِحَ وَتَقْدِمَاتٍ فِي ٱلْبَرِّيَّةِ أَرْبَعِينَ سَنَةً يَا بَيْتَ إِسْرَائِيلَ؟ ٢٥ 25
ऐ बनी — इस्राईल, क्या तुम चालीस बरस तक वीराने में, मेरे सामने ज़बीहे और नज़्र की क़ुर्बानियाँ पेश करते रहे?
بَلْ حَمَلْتُمْ خَيْمَةَ مَلْكُومِكُمْ، وَتِمْثَالَ أَصْنَامِكُمْ، نَجْمَ إِلَهِكُمُ ٱلَّذِي صَنَعْتُمْ لِنُفُوسِكُمْ. ٢٦ 26
तुम तो मिल्कूम का खे़मा और कीवान के बुत, जो तुम ने अपने लिए बनाए, उठाए फिरते थे,
فَأَسْبِيكُمْ إِلَى مَا وَرَاءَ دِمَشْقَ، قَالَ ٱلرَّبُّ إِلَهُ ٱلْجُنُودِ ٱسْمُهُ». ٢٧ 27
इसलिए ख़ुदावन्द जिसका नाम रब्ब — उल — अफ़वाज है फ़रमाता है, मैं तुम को दमिश्क़ से भी आगे ग़ुलामी में भेजूँगा।

< عَامُوس 5 >