< أعمال 7 >
فَقَالَ رَئِيسُ ٱلْكَهَنَةِ: «أَتُرَى هَذِهِ ٱلْأُمُورُ هَكَذَا هِيَ؟». | ١ 1 |
फिर सरदार काहिन ने कहा, “क्या ये बातें इसी तरह पर हैं?”
فَقَالَ: «أَيُّهَا ٱلرِّجَالُ ٱلْإِخْوَةُ وَٱلْآبَاءُ، ٱسْمَعُوا! ظَهَرَ إِلَهُ ٱلْمَجْدِ لِأَبِينَا إِبْرَاهِيمَ وَهُوَ فِي مَا بَيْنَ ٱلنَّهْرَيْنِ، قَبْلَمَا سَكَنَ في حَارَانِ، | ٢ 2 |
उस ने कहा, “ऐ भाइयों! और बुज़ुर्गों, सुनें। ख़ुदा ऐ' ज़ुल — जलाल हमारे बुज़ुर्ग अब्रहाम पर उस वक़्त ज़ाहिर हुआ जब वो हारान शहर में बसने से पहले मसोपोतामिया मुल्क में था।“
وَقَالَ لَهُ: ٱخْرُجْ مِنْ أَرْضِكَ وَمِنْ عَشِيرَتِكَ، وَهَلُمَّ إِلَى ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي أُرِيكَ. | ٣ 3 |
और उस से कहा कि 'अपने मुल्क और अपने कुन्बे से निकल कर उस मुल्क में चला जा'जिसे मैं तुझे दिखाऊँगा।
فَخَرَجَ حِينَئِذٍ مِنْ أَرْضِ ٱلْكَلْدَانِيِّينَ وَسَكَنَ فِي حَارَانَ. وَمِنْ هُنَاكَ نَقَلَهُ، بَعْدَ مَا مَاتَ أَبُوهُ، إِلَى هَذِهِ ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي أَنْتُمُ ٱلْآنَ سَاكِنُونَ فِيهَا. | ٤ 4 |
इस पर वो कसदियों के मुल्क से निकल कर हारान में जा बसा; और वहाँ से उसके बाप के मरने के बाद ख़ुदा ने उसको इस मुल्क में लाकर बसा दिया, जिस में तुम अब बसते हो।
وَلَمْ يُعْطِهِ فِيهَا مِيرَاثًا وَلَا وَطْأَةَ قَدَمٍ، وَلَكِنْ وَعَدَ أَنْ يُعْطِيَهَا مُلْكًا لَهُ وَلِنَسْلِهِ مِنْ بَعْدِهِ، وَلَمْ يَكُنْ لَهُ بَعْدُ وَلَدٌ. | ٥ 5 |
और उसको कुछ मीरास बल्कि क़दम रखने की भी उस में जगह न दी मगर वा'दा किया कि में ये ज़मीन तेरे और तेरे बाद तेरी नस्ल के क़ब्ज़े में कर दूँगा, हालाँकि उसके औलाद न थी।
وَتَكَلَّمَ ٱللهُ هَكَذَا: أَنْ يَكُونَ نَسْلُهُ مُتَغَرِّبًا فِي أَرْضٍ غَرِيبَةٍ، فَيَسْتَعْبِدُونَهُ وَيُسِيئُوا إِلَيْهِ أَرْبَعَ مِئَةِ سَنَةٍ، | ٦ 6 |
और ख़ुदा ने ये फ़रमाया, तेरी नस्ल ग़ैर मुल्क में परदेसी होगी, वो उसको ग़ुलामी में रख्खेंगे और चार सौ बरस तक उन से बदसुलूकी करेंगे।
وَٱلْأُمَّةُ ٱلَّتِي يُسْتَعْبَدُونَ لَهَا سَأَدِينُهَا أَنَا، يَقُولُ ٱللهُ. وَبَعْدَ ذَلِكَ يَخْرُجُونَ وَيَعْبُدُونَنِي فِي هَذَا ٱلْمَكَانِ. | ٧ 7 |
फिर ख़ुदा ने कहा, जिस क़ौम की वो ग़ुलामी में रहेंगे उसको मैं सज़ा दूँगा; और उसके बाद वो निकलकर इसी जगह मेरी इबादत करेंगे।
وَأَعْطَاهُ عَهْدَ ٱلْخِتَانِ، وَهَكَذَا وَلَدَ إِسْحَاقَ وَخَتَنَهُ فِي ٱلْيَوْمِ ٱلثَّامِنِ. وَإِسْحَاقُ وَلَدَ يَعْقُوبَ، وَيَعْقُوبُ وَلَدَ رُؤَسَاءَ ٱلْآبَاءِ ٱلِٱثْنَيْ عَشَرَ. | ٨ 8 |
और उसने उससे ख़तने का 'अहद बाँधा; और इसी हालत में अब्रहाम से इज़्हाक़ पैदा हुआ, और आठवें दिन उसका ख़तना किया गया; और इज़्हाक़ से या'क़ूब और याक़ूब से बारह क़बीलों के बुज़ुर्ग पैदा हुए।
وَرُؤَسَاءُ ٱلْآبَاءِ حَسَدُوا يُوسُفَ وَبَاعُوهُ إِلَى مِصْرَ، وَكَانَ ٱللهُ مَعَهُ، | ٩ 9 |
और बुज़ुर्गों ने हसद में आकर युसूफ़ को बेचा कि मिस्र में पहुँच जाए; मगर ख़ुदा उसके साथ था।
وَأَنْقَذَهُ مِنْ جَمِيعِ ضِيقَاتِهِ، وَأَعْطَاهُ نِعْمَةً وَحِكْمَةً أَمَامَ فِرْعَوْنَ مَلِكِ مِصْرَ، فَأَقَامَهُ مُدَبِّرًا عَلَى مِصْرَ وَعَلَى كُلِّ بَيْتِهِ. | ١٠ 10 |
और उसकी सब मुसीबतों से उसने उसको छुड़ाया; और मिस्र के बादशाह फिर'औन के नज़दीक उसको मक़बूलियत और हिक्मत बख़्शी, और उसने उसे मिस्र और अपने सारे घर का सरदार कर दिया।
«ثُمَّ أَتَى جُوعٌ عَلَى كُلِّ أَرْضِ مِصْرَ وَكَنْعَانَ، وَضِيقٌ عَظِيمٌ، فَكَانَ آبَاؤُنَا لَا يَجِدُونَ قُوتًا. | ١١ 11 |
फिर मिस्र के सारे मुल्क और कनान में काल पड़ा, और बड़ी मुसीबत आई; और हमारे बाप दादा को खाना न मिलता था।
وَلَمَّا سَمِعَ يَعْقُوبُ أَنَّ فِي مِصْرَ قَمْحًا، أَرْسَلَ آبَاءَنَا أَوَّلَ مَرَّةٍ. | ١٢ 12 |
लेकिन याक़ूब ने ये सुनकर कि, मिस्र में अनाज है; हमारे बाप दादा को पहली बार भेजा।
وَفِي ٱلْمَرَّةِ ٱلثَّانِيَةِ ٱسْتَعْرَفَ يُوسُفُ إِلَى إِخْوَتِهِ، وَٱسْتَعْلَنَتْ عَشِيرَةُ يُوسُفَ لِفِرْعَوْنَ. | ١٣ 13 |
और दूसरी बार यूसुफ़ अपने भाइयों पर ज़ाहिर हो गया और यूसुफ़ की क़ौमियत फिर'औन को मा'लूम हो गई।
فَأَرْسَلَ يُوسُفُ وَٱسْتَدْعَى أَبَاهُ يَعْقُوبَ وَجَمِيعَ عَشِيرَتِهِ، خَمْسَةً وَسَبْعِينَ نَفْسًا. | ١٤ 14 |
फिर यूसुफ़ ने अपने बाप याक़ूब और सारे कुन्बे को जो पछहत्तर जाने थीं; बुला भेजा।
فَنَزَلَ يَعْقُوبُ إِلَى مِصْرَ وَمَاتَ هُوَ وَآبَاؤُنَا، | ١٥ 15 |
और याक़ूब मिस्र में गया वहाँ वो और हमारे बाप दादा मर गए।
وَنُقِلُوا إِلَى شَكِيمَ وَوُضِعُوا فِي ٱلْقَبْرِ ٱلَّذِي ٱشْتَرَاهُ إِبْرَاهِيمُ بِثَمَنٍ فِضَّةٍ مِنْ بَنِي حَمُورَ أَبِي شَكِيمَ. | ١٦ 16 |
और वो शहर ऐ सिकम में पहुँचाए गए और उस मक़्बरे में दफ़्न किए गए' जिसको अब्रहाम ने सिक्म में रुपऐ देकर बनी हमूर से मोल लिया था।
وَكَمَا كَانَ يَقْرُبُ وَقْتُ ٱلْمَوْعِدِ ٱلَّذِي أَقْسَمَ ٱللهُ عَلَيْهِ لِإِبْرَاهِيمَ، كَانَ يَنْمُو ٱلشَّعْبُ وَيَكْثُرُ فِي مِصْرَ، | ١٧ 17 |
लेकिन जब उस वादे की मी'आद पुरी होने को थी, जो ख़ुदा ने अब्रहाम से फ़रमाया था तो मिस्र में वो उम्मत बढ़ गई; और उनका शुमार ज़्यादा होता गया।
إِلَى أَنْ قَامَ مَلِكٌ آخَرُ لَمْ يَكُنْ يَعْرِفُ يُوسُفَ. | ١٨ 18 |
उस वक़्त तक कि दूसरा बादशाह मिस्र पर हुक्मरान हुआ; जो यूसुफ़ को न जानता था।
فَٱحْتَالَ هَذَا عَلَى جِنْسِنَا وَأَسَاءَ إِلَى آبَائِنَا، حَتَّى جَعَلُوا أَطْفَالَهُمْ مَنْبُوذِينَ لِكَيْ لَا يَعِيشُوا. | ١٩ 19 |
उसने हमारी क़ौम से चालाकी करके हमारे बाप दादा के साथ यहाँ तक बदसुलूकी की कि उन्हें अपने बच्चे फेंकने पड़े ताकि ज़िन्दा न रहें।
«وَفِي ذَلِكَ ٱلْوَقْتِ وُلِدَ مُوسَى وَكَانَ جَمِيلًا جِدًّا، فَرُبِّيَ هَذَا ثَلَاثَةَ أَشْهُرٍ فِي بَيْتِ أَبِيهِ. | ٢٠ 20 |
इस मौक़े पर मूसा पैदा हुआ; जो निहायत ख़ूबसूरत था, वो तीन महीने तक अपने बाप के घर में पाला गया।
وَلَمَّا نُبِذَ، ٱتَّخَذَتْهُ ٱبْنَةُ فِرْعَوْنَ وَرَبَّتْهُ لِنَفْسِهَا ٱبْنًا. | ٢١ 21 |
मगर जब फेंक दिया गया, तो फिर'औन की बेटी ने उसे उठा लिया और अपना बेटा करके पाला।
فَتَهَذَّبَ مُوسَى بِكُلِّ حِكْمَةِ ٱلْمِصْرِيِّينَ، وَكَانَ مُقْتَدِرًا فِي ٱلْأَقْوَالِ وَٱلْأَعْمَالِ. | ٢٢ 22 |
और मूसा ने मिस्रियों के, तमाम इल्मो की ता'लीम पाई, और वो कलाम और काम में ताक़त वाला था।
وَلَمَّا كَمِلَتْ لَهُ مُدَّةُ أَرْبَعِينَ سَنَةً، خَطَرَ عَلَى بَالِهِ أَنْ يَفْتَقِدَ إِخْوَتَهُ بَنِي إِسْرَائِيلَ. | ٢٣ 23 |
और जब वो तक़रीबन चालीस बरस का हुआ, तो उसके जी में आया कि मैं अपने भाइयों बनी इस्राईल का हाल देखूँ।
وَإِذْ رَأَى وَاحِدًا مَظْلُومًا حَامَى عَنْهُ، وَأَنْصَفَ ٱلْمَغْلُوبَ، إِذْ قَتَلَ ٱلْمِصْرِيَّ. | ٢٤ 24 |
चुनाँचे उन में से एक को ज़ुल्म उठाते देखकर उसकी हिमायत की, और मिस्री को मार कर मज़्लूम का बदला लिया।
فَظَنَّ أَنَّ إِخْوَتَهُ يَفْهَمُونَ أَنَّ ٱللهَ عَلَى يَدِهِ يُعْطِيهِمْ نَجَاةً، وَأَمَّا هُمْ فَلَمْ يَفْهَمُوا. | ٢٥ 25 |
उसने तो ख़याल किया कि मेरे भाई समझ लेंगे, कि ख़ुदा मेरे हाथों उन्हें छुटकारा देगा, मगर वो न समझे।
وَفِي ٱلْيَوْمِ ٱلثَّانِي ظَهَرَ لَهُمْ وَهُمْ يَتَخَاصَمُونَ، فَسَاقَهُمْ إِلَى ٱلسَّلَامَةِ قَائِلًا: أَيُّهَا ٱلرِّجَالُ، أَنْتُمْ إِخْوَةٌ. لِمَاذَا تَظْلِمُونَ بَعْضُكُمْ بَعْضًا؟ | ٢٦ 26 |
फिर दूसरे दिन वो उन में से दो लड़ते हुओं के पास आ निकला और ये कहकर उन्हें सुलह करने की तरग़ीब दी कि ‘ऐ जवानों तुम तो भाई भाई हो, क्यूँ एक दूसरे पर ज़ुल्म करते हो?’
فَٱلَّذِي كَانَ يَظْلِمُ قَرِيبَهُ دَفَعَهُ قَائِلًا: مَنْ أَقَامَكَ رَئِيسًا وَقَاضِيًا عَلَيْنَا؟ | ٢٧ 27 |
लेकिन जो अपने पड़ोसी पर ज़ुल्म कर रहा था, उसने ये कह कर उसे हटा दिया तुझे किसने हम पर हाकिम और क़ाज़ी मुक़र्रर किया?
أَتُرِيدُ أَنْ تَقْتُلَنِي كَمَا قَتَلْتَ أَمْسِ ٱلْمِصْرِيَّ؟ | ٢٨ 28 |
क्या तू मुझे भी क़त्ल करना चहता है? जिस तरह कल उस मिस्री को क़त्ल किया था।
فَهَرَبَ مُوسَى بِسَبَبِ هَذِهِ ٱلْكَلِمَةِ، وَصَارَ غَرِيبًا فِي أَرْضِ مَدْيَانَ، حَيْثُ وَلَدَ ٱبْنَيْنِ. | ٢٩ 29 |
मूसा ये बात सुन कर भाग गया, और मिदियान के मुल्क में परदेसी रहा, और वहाँ उसके दो बेटे पैदा हुए।
«وَلَمَّا كَمِلَتْ أَرْبَعُونَ سَنَةً، ظَهَرَ لَهُ مَلَاكُ ٱلرَّبِّ فِي بَرِّيَّةِ جَبَلِ سِينَاءَ فِي لَهِيبِ نَارِ عُلَّيْقَةٍ. | ٣٠ 30 |
और जब पूरे चालीस बरस हो गए, तो कोह-ए-सीना के वीराने में जलती हुई झाड़ी के शो'ले में उसको एक फ़रिश्ता दिखाई दिया।
فَلَمَّا رَأَى مُوسَى ذَلِكَ تَعَجَّبَ مِنَ ٱلْمَنْظَرِ. وَفِيمَا هُوَ يَتَقَدَّمُ لِيَتَطَلَّعَ، صَارَ إِلَيْهِ صَوْتُ ٱلرَّبِّ: | ٣١ 31 |
जब मूसा ने उस पर नज़र की तो उस नज़ारे से ताज़्जुब किया, और जब देखने को नज़दीक गया तौ ख़ुदावन्द की आवाज़ आई कि
أَنَا إِلَهُ آبَائِكَ، إِلَهُ إِبْرَاهِيمَ وَإِلَهُ إِسْحَاقَ وَإِلَهُ يَعْقُوبَ. فَٱرْتَعَدَ مُوسَى وَلَمْ يَجْسُرْ أَنْ يَتَطَلَّعَ. | ٣٢ 32 |
मैं तेरे बाप दादा का ख़ुदा या'नी अब्रहाम इज़्हाक़ और याक़ूब का ख़ुदा हूँ तब मूसा काँप गया और उसको देखने की हिम्मत न रही।
فَقَالَ لَهُ ٱلرَّبُّ: ٱخْلَعْ نَعْلَ رِجْلَيْكَ، لِأَنَّ ٱلْمَوْضِعَ ٱلَّذِي أَنْتَ وَاقِفٌ عَلَيْهِ أَرْضٌ مُقَدَّسَةٌ. | ٣٣ 33 |
ख़ुदावन्द ने उससे कहा कि अपने पाँव से जूती उतार ले, क्यूँकि जिस जगह तू खड़ा है, वो पाक ज़मीन है।
إِنِّي لَقَدْ رَأَيْتُ مَشَقَّةَ شَعْبِي ٱلَّذِينَ فِي مِصْرَ، وَسَمِعْتُ أَنِينَهُمْ وَنَزَلْتُ لِأُنْقِذَهُمْ. فَهَلُمَّ ٱلْآنَ أُرْسِلُكَ إِلَى مِصْرَ. | ٣٤ 34 |
मैंने वाक़'ई अपनी उस उम्मत की मुसीबत देखी जो मिस्र में है। और उनका आह — व नाला सुना पस उन्हें छुड़ाने उतरा हूँ, अब आ मैं तुझे मिस्र में भेजूँगा।
«هَذَا مُوسَى ٱلَّذِي أَنْكَرُوهُ قَائِلِينَ: مَنْ أَقَامَكَ رَئِيسًا وَقَاضِيًا؟ هَذَا أَرْسَلَهُ ٱللهُ رَئِيسًا وَفَادِيًا بِيَدِ ٱلْمَلَاكِ ٱلَّذِي ظَهَرَ لَهُ فِي ٱلْعُلَّيْقَةِ. | ٣٥ 35 |
जिस मूसा का उन्होंने ये कह कर इन्कार किया था, तुझे किसने हाकिम और क़ाज़ी मुक़र्रर किया 'उसी को ख़ुदा ने हाकिम और छुड़ाने वाला ठहरा कर, उस फ़रिश्ते के ज़रिए से भेजा जो उस झाड़ी में नज़र आया था।
هَذَا أَخْرَجَهُمْ صَانِعًا عَجَائِبَ وَآيَاتٍ فِي أَرْضِ مِصْرَ، وَفِي ٱلْبَحْرِ ٱلْأَحْمَرِ، وَفِي ٱلْبَرِّيَّةِ أَرْبَعِينَ سَنَةً. | ٣٦ 36 |
यही शख़्स उन्हें निकाल लाया और मिस्र और बहर — ए — क़ुलज़ूम और वीराने में चालीस बरस तक अजीब काम और निशान दिखाए।
«هَذَا هُوَ مُوسَى ٱلَّذِي قَالَ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ: نَبِيًّا مِثْلِي سَيُقِيمُ لَكُمُ ٱلرَّبُّ إِلَهُكُمْ مِنْ إِخْوَتِكُمْ. لَهُ تَسْمَعُونَ. | ٣٧ 37 |
ये वही मूसा है, जिसने बनी इस्राईल से कहा, ख़ुदा तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिए मुझ सा एक नबी पैदा करेगा।
هَذَا هُوَ ٱلَّذِي كَانَ فِي ٱلْكَنِيسَةِ فِي ٱلْبَرِّيَّةِ، مَعَ ٱلْمَلَاكِ ٱلَّذِي كَانَ يُكَلِّمُهُ فِي جَبَلِ سِينَاءَ، وَمَعَ آبَائِنَا. ٱلَّذِي قَبِلَ أَقْوَالًا حَيَّةً لِيُعْطِيَنَا إِيَّاهَا. | ٣٨ 38 |
ये वही है, जो वीराने की कलीसिया में उस फ़रिश्ते के साथ जो कोह-ए-सीना पर उससे हम कलाम हुआ, और हमारे बाप दादा के साथ था उसी को ज़िन्दा कलाम मिला कि हम तक पहुँचा दे।
ٱلَّذِي لَمْ يَشَأْ آبَاؤُنَا أَنْ يَكُونُوا طَائِعِينَ لَهُ، بَلْ دَفَعُوهُ وَرَجَعُوا بِقُلُوبِهِمْ إِلَى مِصْرَ | ٣٩ 39 |
मगर हमारे बाप दादा ने उसके फ़रमाँबरदार होना न चाहा, बल्कि उसको हटा दिया और उनके दिल मिस्र की तरफ़ माइल हुए।
قَائِلِينَ لِهَارُونَ: ٱعْمَلْ لَنَا آلِهَةً تَتَقَدَّمُ أَمَامَنَا، لِأَنَّ هَذَا مُوسَى ٱلَّذِي أَخْرَجَنَا مِنْ أَرْضِ مِصْرَ لَا نَعْلَمُ مَاذَا أَصَابَهُ! | ٤٠ 40 |
और उन्होंने हारून से कहा, हमारे लिए ऐसे मा'बूद बना जो हमारे आगे आगे चलें, क्यूँकि ये मूसा जो हमें मुल्क — ए मिस्र से निकाल लाया, हम नहीं जानते कि वो क्या हुआ।
فَعَمِلُوا عِجْلًا فِي تِلْكَ ٱلْأَيَّامِ وَأَصْعَدُوا ذَبِيحَةً لِلصَّنَمِ، وَفَرِحُوا بِأَعْمَالِ أَيْدِيهِمْ. | ٤١ 41 |
और उन दिनों में उन्होंने एक बछड़ा बनाया, और उस बुत को क़ुर्बानी चढ़ाई, और अपने हाथों के कामों की ख़ुशी मनाई।
فَرَجَعَ ٱللهُ وَأَسْلَمَهُمْ لِيَعْبُدُوا جُنْدَ ٱلسَّمَاءِ، كَمَا هُوَ مَكْتُوبٌ فِي كِتَابِ ٱلْأَنْبِيَاءِ: هَلْ قَرَّبْتُمْ لِي ذَبَائِحَ وَقَرَابِينَ أَرْبَعِينَ سَنَةً فِي ٱلْبَرِّيَّةِ يَا بَيْتَ إِسْرَائِيلَ؟ | ٤٢ 42 |
पस ख़ुदा ने मुँह मोड़कर उन्हें छोड़ दिया कि आसमानी फ़ौज को पूजें चुनाँचे नबियों की किताबों में लिखा है ऐ इस्राईल के घराने क्या तुम ने वीराने में चालीस बरस मुझको ज़बीहे और क़ुर्बानियाँ गुज़रानी?
بَلْ حَمَلْتُمْ خَيْمَةَ مُولُوكَ، وَنَجْمَ إِلَهِكُمْ رَمْفَانَ، ٱلتَّمَاثِيلَ ٱلَّتِي صَنَعْتُمُوهَا لِتَسْجُدُوا لَهَا. فَأَنْقُلُكُمْ إِلَى مَا وَرَاءَ بَابِلَ. | ٤٣ 43 |
बल्कि तुम मोलक के ख़ेमे और रिफ़ान देवता के तारे को लिए फिरते थे, या'नी उन मूरतों को जिन्हें तुम ने सज्दा करने के लिए बनाया था। पस में तुम्हें बाबुल के परे ले जाकर बसाऊँगा।
«وَأَمَّا خَيْمَةُ ٱلشَّهَادَةِ فَكَانَتْ مَعَ آبَائِنَا فِي ٱلْبَرِّيَّةِ، كَمَا أَمَرَ ٱلَّذِي كَلَّمَ مُوسَى أَنْ يَعْمَلَهَا عَلَى ٱلْمِثَالِ ٱلَّذِي كَانَ قَدْ رَآهُ، | ٤٤ 44 |
शहादत का ख़ेमा वीराने में हमारे बाप दादा के पास था, जैसा कि मूसा से कलाम करने वाले ने हुक्म दिया था, जो नमूना तूने देखा है, उसी के मुवाफ़िक़ इसे बना।
ٱلَّتِي أَدْخَلَهَا أَيْضًا آبَاؤُنَا إِذْ تَخَلَّفُوا عَلَيْهَا مَعَ يَشُوعَ فِي مُلْكِ ٱلْأُمَمِ ٱلَّذِينَ طَرَدَهُمُ ٱللهُ مِنْ وَجْهِ آبَائِنَا، إِلَى أَيَّامِ دَاوُدَ | ٤٥ 45 |
उसी ख़ेमे को हमारे बाप दादा अगले बुज़ुर्गों से हासिल करके ईसा के साथ लाए जिस वक़्त उन क़ौमों की मिल्कियत पर क़ब्ज़ा किया जिनको ख़ुदा ने हमारे बाप दादा के सामने निकाल दिया, और वो दाऊद के ज़माने तक रहा।
ٱلَّذِي وَجَدَ نِعْمَةً أَمَامَ ٱللهِ، وَٱلْتَمَسَ أَنْ يَجِدَ مَسْكَنًا لِإِلَهِ يَعْقُوبَ. | ٤٦ 46 |
उस पर ख़ुदा की तरफ़ से फ़ज़ल हुआ, और उस ने दरख़्वास्त की, कि में याक़ूब के ख़ुदा के वास्ते घर तैयार करूँ।
وَلَكِنَّ سُلَيْمَانَ بَنَى لَهُ بَيْتًا. | ٤٧ 47 |
मगर सुलैमान ने उस के लिए घर बनाया।
لَكِنَّ ٱلْعَلِيَّ لَا يَسْكُنُ فِي هَيَاكِلَ مَصْنُوعَاتِ ٱلْأَيَادِي، كَمَا يَقُولُ ٱلنَّبِيُّ: | ٤٨ 48 |
लेकिन ख़ुदा हाथ के बनाए हुए घरों में नहीं रहता चुनाँचे नबी कहता है कि
ٱلسَّمَاءُ كُرْسِيٌّ لِي، وَٱلْأَرْضُ مَوْطِئٌ لِقَدَمَيَّ. أَيَّ بَيْتٍ تَبْنُونَ لِي؟ يَقُولُ ٱلرَّبُّ، وَأَيٌّ هُوَ مَكَانُ رَاحَتِي؟ | ٤٩ 49 |
ख़ुदावन्द फ़रमाता है, आसमान मेरा तख़्त और ज़मीन मेरे पाँव तले की चौकी है, तुम मेरे लिए कैसा घर बनाओगे, या मेरी आरामगाह कौन सी है?
أَلَيْسَتْ يَدِي صَنَعَتْ هَذِهِ ٱلْأَشْيَاءَ كُلَّهَا؟ | ٥٠ 50 |
क्या ये सब चीज़ें मेरे हाथ से नहीं बनी
«يَا قُسَاةَ ٱلرِّقَابِ، وَغَيْرَ ٱلْمَخْتُونِينَ بِٱلْقُلُوبِ وَٱلْآذَانِ! أَنْتُمْ دَائِمًا تُقَاوِمُونَ ٱلرُّوحَ ٱلْقُدُسَ. كَمَا كَانَ آبَاؤُكُمْ كَذَلِكَ أَنْتُمْ! | ٥١ 51 |
ऐ गर्दन कशो, दिल और कान के नामख़्तूनों, तुम हर वक़्त रूह — उल — क़ुद्दूस की मुख़ालिफ़त करते हो; जैसे तुम्हारे बाप दादा करते थे, वैसे ही तुम भी करते हो।
أَيُّ ٱلْأَنْبِيَاءِ لَمْ يَضْطَهِدْهُ آبَاؤُكُمْ؟ وَقَدْ قَتَلُوا ٱلَّذِينَ سَبَقُوا فَأَنْبَأُوا بِمَجِيءِ ٱلْبَارِّ، ٱلَّذِي أَنْتُمُ ٱلْآنَ صِرْتُمْ مُسَلِّمِيهِ وَقَاتِلِيهِ، | ٥٢ 52 |
नबियों में से किसको तुम्हारे बाप दादा ने नहीं सताया? उन्हों ने तो उस रास्तबाज़ के आने की पेश — ख़बरी देनेवालों को क़त्ल किया, और अब तुम उसके पकड़वाने वाले और क़ातिल हुए।
ٱلَّذِينَ أَخَذْتُمُ ٱلنَّامُوسَ بِتَرْتِيبِ مَلَائِكَةٍ وَلَمْ تَحْفَظُوهُ». | ٥٣ 53 |
तुम ने फ़रिश्तों के ज़रिए से शरी'अत तो पाई, पर अमल नहीं किया।
فَلَمَّا سَمِعُوا هَذَا حَنِقُوا بِقُلُوبِهِمْ وَصَرُّوا بِأَسْنَانِهِمْ عَلَيْهِ. | ٥٤ 54 |
जब उन्होंने ये बातें सुनीं तो जी में जल गए, और उस पर दाँत पीसने लगे।
وَأَمَّا هُوَ فَشَخَصَ إِلَى ٱلسَّمَاءِ وَهُوَ مُمْتَلِئٌ مِنَ ٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ، فَرَأَى مَجْدَ ٱللهِ، وَيَسُوعَ قَائِمًا عَنْ يَمِينِ ٱللهِ. | ٥٥ 55 |
मगर उस ने रूह — उल — क़ुद्दूस से भरपूर होकर आसमान की तरफ़ ग़ौर से नज़र की, और ख़ुदा का जलाल और ईसा को ख़ुदा की दहनी तरफ़ खड़ा देख कर कहा।
فَقَالَ: «هَا أَنَا أَنْظُرُ ٱلسَّمَاوَاتِ مَفْتُوحَةً، وَٱبْنَ ٱلْإِنْسَانِ قَائِمًا عَنْ يَمِينِ ٱللهِ». | ٥٦ 56 |
“देखो मैं आसमान को खुला, और इबने — आदम को ख़ुदा की दहनी तरफ़ खड़ा देखता हूँ”
فَصَاحُوا بِصَوْتٍ عَظِيمٍ وَسَدُّوا آذَانَهُمْ، وَهَجَمُوا عَلَيْهِ بِنَفْسٍ وَاحِدَةٍ، | ٥٧ 57 |
मगर उन्होंने बड़े ज़ोर से चिल्लाकर अपने कान बन्द कर लिए, और एक दिल होकर उस पर झपटे।
وَأَخْرَجُوهُ خَارِجَ ٱلْمَدِينَةِ وَرَجَمُوهُ. وَٱلشُّهُودُ خَلَعُوا ثِيَابَهُمْ عِنْدَ رِجْلَيْ شَابٍّ يُقَالُ لَهُ شَاوُلُ. | ٥٨ 58 |
और शहर से बाहर निकाल कर उस पर पथराव करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े साऊल नाम एक जवान के पाँव के पास रख दिए।
فَكَانُوا يَرْجُمُونَ ٱسْتِفَانُوسَ وَهُوَ يَدْعُو وَيَقُولُ: «أَيُّهَا ٱلرَّبُّ يَسُوعُ، ٱقْبَلْ رُوحِي». | ٥٩ 59 |
पस स्तिफ़नुस पर पथराव करते रहे, और वो ये कह कर दुआ करता रहा “ऐ ख़ुदावन्द ईसा मेरी रूह को क़ुबूल कर।”
ثُمَّ جَثَا عَلَى رُكْبَتَيْهِ وَصَرَخَ بِصَوْتٍ عَظِيمٍ: «يَارَبُّ، لَا تُقِمْ لَهُمْ هَذِهِ ٱلْخَطِيَّةَ». وَإِذْ قَالَ هَذَا رَقَدَ. | ٦٠ 60 |
फिर उस ने घुटने टेक कर बड़ी आवाज़ से पुकारा, “ऐ ख़ुदावन्द ये गुनाह इन के ज़िम्मे न लगा।” और ये कह कर सो गया।