< أعمال 4 >

وَبَيْنَمَا هُمَا يُخَاطِبَانِ ٱلشَّعْبَ، أَقْبَلَ عَلَيْهِمَا ٱلْكَهَنَةُ وَقَائِدُ جُنْدِ ٱلْهَيْكَلِ وَٱلصَّدُّوقِيُّونَ، ١ 1
जब वो लोगों से ये कह रहे थे तो काहिन और हैकल का मालिक और सदूक़ी उन पर चढ़ आए।
مُتَضَجِّرِينَ مِنْ تَعْلِيمِهِمَا ٱلشَّعْبَ، وَنِدَائِهِمَا فِي يَسُوعَ بِٱلْقِيَامَةِ مِنَ ٱلْأَمْوَاتِ. ٢ 2
वो ग़मगीन हुए क्यूँकि यह लोगों को ता'लीम देते और ईसा की मिसाल देकर मुर्दों के जी उठने का ऐलान करते थे।
فَأَلْقَوْا عَلَيْهِمَا ٱلْأَيَادِيَ وَوَضَعُوهُمَا فِي حَبْسٍ إِلَى ٱلْغَدِ، لِأَنَّهُ كَانَ قَدْ صَارَ ٱلْمَسَاءُ. ٣ 3
और उन्होंने उन को पकड़ कर दुसरे दिन तक हवालात में रख्खा; क्यूँकि शाम हो गेई थी।
وَكَثِيرُونَ مِنَ ٱلَّذِينَ سَمِعُوا ٱلْكَلِمَةَ آمَنُوا، وَصَارَ عَدَدُ ٱلرِّجَالِ نَحْوَ خَمْسَةِ آلَافٍ. ٤ 4
मगर कलाम के सुनने वालों में से बहुत से ईमान लाए; यहाँ तक कि मर्दो की ता'दाद पाँच हज़ार के क़रीब हो गेई।
وَحَدَثَ فِي ٱلْغَدِ أَنَّ رُؤَسَاءَهُمْ وَشُيُوخَهُمْ وَكَتَبَتَهُمُ ٱجْتَمَعُوا إِلَى أُورُشَلِيمَ ٥ 5
दुसरे दिन यूँ हुआ कि उनके सरदार और बुज़ुर्ग और आलिम।
مَعَ حَنَّانَ رَئِيسِ ٱلْكَهَنَةِ وَقَيَافَا وَيُوحَنَّا وَٱلْإِسْكَنْدَرِ، وَجَمِيعِ ٱلَّذِينَ كَانُوا مِنْ عَشِيرَةِ رُؤَسَاءِ ٱلْكَهَنَةِ. ٦ 6
और सरदार काहिन हन्ना और काइफ़ा, यूहन्ना, और इस्कन्दर और जितने सरदार काहिन के घराने के थे, येरूशलेम में जमा हुए।
وَلَمَّا أَقَامُوهُمَا فِي ٱلْوَسْطِ، جَعَلُوا يَسْأَلُونَهُمَا: «بِأَيَّةِ قُوَّةٍ وَبِأَيِّ ٱسْمٍ صَنَعْتُمَا أَنْتُمَا هَذَا؟». ٧ 7
और उनको बीच में खड़ा करके पूछने लगे कि तुम ने ये काम किस क़ुदरत और किस नाम से किया?
حِينَئِذٍ ٱمْتَلَأَ بُطْرُسُ مِنَ ٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ وَقَالَ لَهُمْ: «يَا رُؤَسَاءَ ٱلشَّعْبِ وَشُيُوخَ إِسْرَائِيلَ، ٨ 8
उस वक़्त पतरस ने रूह — उल — कुददूस से भरपूर होकर उन से कहा।
إِنْ كُنَّا نُفْحَصُ ٱلْيَوْمَ عَنْ إِحْسَانٍ إِلَى إِنْسَانٍ سَقِيمٍ، بِمَاذَا شُفِيَ هَذَا، ٩ 9
ऐ उम्मत के सरदारों और बुज़ुर्गों; अगर आज हम से उस एहसान के बारे में पूछ — ताछ की जाती है, जो एक कमज़ोर आदमी पर हुआ; कि वो क्यूँकर अच्छा हो गया?
فَلْيَكُنْ مَعْلُومًا عِنْدَ جَمِيعِكُمْ وَجَمِيعِ شَعْبِ إِسْرَائِيلَ، أَنَّهُ بِٱسْمِ يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ ٱلنَّاصِرِيِّ، ٱلَّذِي صَلَبْتُمُوهُ أَنْتُمُ، ٱلَّذِي أَقَامَهُ ٱللهُ مِنَ ٱلْأَمْوَاتِ، بِذَاكَ وَقَفَ هَذَا أَمَامَكُمْ صَحِيحًا. ١٠ 10
तो तुम सब और इस्राईल की सारी उम्मत को मा'लूम हो कि ईसा मसीह नासरी जिसको तुम ने मस्लूब किया, उसे ख़ुदा ने मुर्दों में से जिलाया, उसी के नाम से ये शख़्स तुम्हारे सामने तन्दरुस्त खड़ा है।
هَذَا هُوَ: ٱلْحَجَرُ ٱلَّذِي ٱحْتَقَرْتُمُوهُ أَيُّهَا ٱلْبَنَّاؤُونَ، ٱلَّذِي صَارَ رَأْسَ ٱلزَّاوِيَةِ. ١١ 11
ये वही पत्थर है जिसे तुमने हक़ीर जाना और वो कोने के सिरे का पत्थर हो गया।
وَلَيْسَ بِأَحَدٍ غَيْرِهِ ٱلْخَلَاصُ. لِأَنْ لَيْسَ ٱسْمٌ آخَرُ تَحْتَ ٱلسَّمَاءِ، قَدْ أُعْطِيَ بَيْنَ ٱلنَّاسِ، بِهِ يَنْبَغِي أَنْ نَخْلُصَ». ١٢ 12
और किसी दूसरे के वसीले से नजात नहीं, क्यूँकि आसमान के तले आदमियों को कोई दुसरा नाम नहीं बख़्शा गया, जिसके वसीले से हम नजात पा सकें।
فَلَمَّا رَأَوْا مُجَاهَرَةَ بُطْرُسَ وَيُوحَنَّا، وَوَجَدُوا أَنَّهُمَا إِنْسَانَانِ عَدِيمَا ٱلْعِلْمِ وَعَامِّيَّانِ، تَعَجَّبُوا. فَعَرَفُوهُمَا أَنَّهُمَا كَانَا مَعَ يَسُوعَ. ١٣ 13
जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना की हिम्मत देखी, और मा'लूम किया कि ये अनपढ़ और नावाक़िफ़ आदमी हैं, तो ता'अज्जुब किया; फिर ऊन्हें पहचाना कि ये ईसा के साथ रहे हैं।
وَلَكِنْ إِذْ نَظَرُوا ٱلْإِنْسَانَ ٱلَّذِي شُفِيَ وَاقِفًا مَعَهُمَا، لَمْ يَكُنْ لَهُمْ شَيْءٌ يُنَاقِضُونَ بِهِ. ١٤ 14
और उस आदमी को जो अच्छा हुआ था, उनके साथ खड़ा देखकर कुछ ख़िलाफ़ न कह सके।
فَأَمَرُوهُمَا أَنْ يَخْرُجَا إِلَى خَارِجِ ٱلْمَجْمَعِ، وَتَآمَرُوا فِيمَا بَيْنَهُمْ ١٥ 15
मगर उन्हें सद्रे — ए — अदालत से बाहर जाने का हुक्म देकर आपस में मशवरा करने लगे।
قَائِلِينَ: «مَاذَا نَفْعَلُ بِهَذَيْنِ ٱلرَّجُلَيْنِ؟ لِأَنَّهُ ظَاهِرٌ لِجَمِيعِ سُكَّانِ أُورُشَلِيمَ أَنَّ آيَةً مَعْلُومَةً قَدْ جَرَتْ بِأَيْدِيهِمَا، وَلَا نَقْدِرُ أَنْ نُنْكِرَ. ١٦ 16
“कि हम इन आदमियों के साथ क्या करें? क्यूँकि येरूशलेम के सब रहने वालों पर यह रोशन है। कि उन से एक खुला मोजिज़ा ज़ाहिर हुआ और हम इस का इन्कार नहीं कर सकते।
وَلَكِنْ لِئَلَّا تَشِيعَ أَكْثَرَ فِي ٱلشَّعْبِ، لِنُهَدِّدْهُمَا تَهْدِيدًا أَنْ لَا يُكَلِّمَا أَحَدًا مِنَ ٱلنَّاسِ فِيمَا بَعْدُ بِهَذَا ٱلِٱسْمِ». ١٧ 17
लेकिन इसलिए कि ये लोगों में ज़्यादा मशहूर न हो, हम उन्हें धमकाएं कि फिर ये नाम लेकर किसी से बात न करें।”
فَدَعَوْهُمَا وَأَوْصَوْهُمَا أَنْ لَا يَنْطِقَا ٱلْبَتَّةَ، وَلَا يُعَلِّمَا بِٱسْمِ يَسُوعَ. ١٨ 18
पस उन्हें बुला कर ताकीद की कि ईसा का नाम लेकर हरगिज़ बात न करना और न तालीम देना।
فَأَجَابَهُمْ بُطْرُسُ وَيُوحَنَّا وَقَالَا: «إِنْ كَانَ حَقًّا أَمَامَ ٱللهِ أَنْ نَسْمَعَ لَكُمْ أَكْثَرَ مِنَ ٱللهِ، فَٱحْكُمُوا. ١٩ 19
मगर पतरस और यूहन्ना ने जवाब में उनसे कहा, कि तुम ही इन्साफ़ करो, आया ख़ुदा के नज़दीक ये वाजिब है कि हम ख़ुदा की बात से तुम्हारी बात ज़्यादा सुनें?
لِأَنَّنَا نَحْنُ لَا يُمْكِنُنَا أَنْ لَا نَتَكَلَّمَ بِمَا رَأَيْنَا وَسَمِعْنَا». ٢٠ 20
क्यूँकि मुम्किन नहीं कि जो हम ने देखा और सुना है वो न कहें।
وَبَعْدَمَا هَدَّدُوهُمَا أَيْضًا أَطْلَقُوهُمَا، إِذْ لَمْ يَجِدُوا ٱلْبَتَّةَ كَيْفَ يُعَاقِبُونَهُمَا بِسَبَبِ ٱلشَّعْبِ، لِأَنَّ ٱلْجَمِيعَ كَانُوا يُمَجِّدُونَ ٱللهَ عَلَى مَا جَرَى، ٢١ 21
उन्होंने उनको और धमकाकर छोड़ दिया; क्यूँकि लोगों कि वजह से उनको सज़ा देने का कोई मौक़ा; न मिला इसलिए कि सब लोग उस माजरे कि वजह से ख़ुदा की बड़ाई करते थे।
لِأَنَّ ٱلْإِنْسَانَ ٱلَّذِي صَارَتْ فِيهِ آيَةُ ٱلشِّفَاءِ هَذِهِ، كَانَ لَهُ أَكْثَرُ مِنْ أَرْبَعِينَ سَنَةً. ٢٢ 22
क्यूँकि वो शख़्स जिस पर ये शिफ़ा देने का मोजिज़ा हुआ था, चालीस बरस से ज़्यादा का था।
وَلَمَّا أُطْلِقَا أَتَيَا إِلَى رُفَقَائِهِمَا وَأَخْبَرَاهُمْ بِكُلِّ مَا قَالَهُ لَهُمَا رُؤَسَاءُ ٱلْكَهَنَةِ وَٱلشُّيُوخُ. ٢٣ 23
वो छूटकर अपने लोगों के पास गए, और जो कुछ सरदार काहिनों और बुज़ुर्गों ने उन से कहा था बयान किया।
فَلَمَّا سَمِعُوا، رَفَعُوا بِنَفْسٍ وَاحِدَةٍ صَوْتًا إِلَى ٱللهِ وَقَالُوا: «أَيُّهَا ٱلسَّيِّدُ، أَنْتَ هُوَ ٱلْإِلَهُ ٱلصَّانِعُ ٱلسَّمَاءَ وَٱلْأَرْضَ وَٱلْبَحْرَ وَكُلَّ مَا فِيهَا، ٢٤ 24
जब उन्होंने ये सुना तो एक दिल होकर बुलन्द आवाज़ से ख़ुदा से गुज़ारिश की, 'ऐ' मालिक तू वो है जिसने आसमान और ज़मीन और समुन्दर और जो कुछ उन में है पैदा किया।
ٱلْقَائِلُ بِفَمِ دَاوُدَ فَتَاكَ: لِمَاذَا ٱرْتَجَّتِ ٱلْأُمَمُ وَتَفَكَّرَ ٱلشُّعُوبُ بِٱلْبَاطِلِ؟ ٢٥ 25
तूने रूह — उल — क़ुद्दूस के वसीले से हमारे बाप अपने ख़ादिम दाऊद की ज़बानी फ़रमाया कि, क़ौमों ने क्यूँ धूम मचाई? और उम्मतों ने क्यूँ बातिल ख़याल किए?
قَامَتْ مُلُوكُ ٱلْأَرْضِ، وَٱجْتَمَعَ ٱلرُّؤَسَاءُ مَعًا عَلَى ٱلرَّبِّ وَعَلَى مَسِيحِهِ. ٢٦ 26
ख़ुदावन्द और उसके मसीह की मुख़ालिफ़त को ज़मीन के बादशाह उठ खड़े हुए, और सरदार जमा हो गए।’
لِأَنَّهُ بِٱلْحَقِيقَةِ ٱجْتَمَعَ عَلَى فَتَاكَ ٱلْقُدُّوسِ يَسُوعَ، ٱلَّذِي مَسَحْتَهُ، هِيرُودُسُ وَبِيلَاطُسُ ٱلْبُنْطِيُّ مَعَ أُمَمٍ وَشُعُوبِ إِسْرَائِيلَ، ٢٧ 27
क्यूँकि वाक़'ई तेरे पाक ख़ादिम ईसा के बरख़िलाफ़ जिसे तूने मसह किया। हेरोदेस, और, पुनित्युस पीलातुस, ग़ैर क़ौमों और इस्राईलियों के साथ इस शहर में जमा हुए।
لِيَفْعَلُوا كُلَّ مَا سَبَقَتْ فَعَيَّنَتْ يَدُكَ وَمَشُورَتُكَ أَنْ يَكُونَ. ٢٨ 28
ताकि जो कुछ पहले से तेरी क़ुदरत और तेरी मसलेहत से ठहर गया था, वही 'अमल में लाएँ।
وَٱلْآنَ يَارَبُّ، ٱنْظُرْ إِلَى تَهْدِيدَاتِهِمْ، وَٱمْنَحْ عَبِيدَكَ أَنْ يَتَكَلَّمُوا بِكَلَامِكَ بِكُلِّ مُجَاهَرَةٍ، ٢٩ 29
अब, ऐ ख़ुदावन्द “उनकी धमकियों को देख, और अपने बन्दों को ये तौफ़ीक़ दे, कि वो तेरा कलाम कमाल दिलेरी से सुनाएँ।
بِمَدِّ يَدِكَ لِلشِّفَاءِ، وَلْتُجْرَ آيَاتٌ وَعَجَائِبُ بِٱسْمِ فَتَاكَ ٱلْقُدُّوسِ يَسُوعَ». ٣٠ 30
और तू अपना हाथ शिफ़ा देने को बढ़ा और तेरे पाक ख़ादिम ईसा के नाम से मोजिज़े और अजीब काम ज़हूर में आएँ।”
وَلَمَّا صَلَّوْا تَزَعْزَعَ ٱلْمَكَانُ ٱلَّذِي كَانُوا مُجْتَمِعِينَ فِيهِ، وَٱمْتَلَأَ ٱلْجَمِيعُ مِنَ ٱلرُّوحِ ٱلْقُدُسِ، وَكَانُوا يَتَكَلَّمُونَ بِكَلَامِ ٱللهِ بِمُجَاهَرَةٍ. ٣١ 31
जब वो दुआ कर चुके, तो जिस मकान में जमा थे, वो हिल गया और वो सब रूह — उल — क़ुद्दूस से भर गए, और ख़ुदा का कलाम दिलेरी से सुनाते रहे।
وَكَانَ لِجُمْهُورِ ٱلَّذِينَ آمَنُوا قَلْبٌ وَاحِدٌ وَنَفْسٌ وَاحِدَةٌ، وَلَمْ يَكُنْ أَحَدٌ يَقُولُ إِنَّ شَيْئًا مِنْ أَمْوَالِهِ لَهُ، بَلْ كَانَ عِنْدَهُمْ كُلُّ شَيْءٍ مُشْتَرَكًا. ٣٢ 32
और ईमानदारों की जमा'अत एक दिल और एक जान थी; और किसी ने भी अपने माल को अपना न कहा, बल्कि उनकी सब चीज़ें मुश्तरका थीं।
وَبِقُوَّةٍ عَظِيمَةٍ كَانَ ٱلرُّسُلُ يُؤَدُّونَ ٱلشَّهَادَةَ بِقِيَامَةِ ٱلرَّبِّ يَسُوعَ، وَنِعْمَةٌ عَظِيمَةٌ كَانَتْ عَلَى جَمِيعِهِمْ، ٣٣ 33
और रसूल बड़ी क़ुदरत से ख़ुदावन्द ईसा के जी उठने की गवाही देते रहे, और उन सब पर बड़ा फ़ज़ल था।
إِذْ لَمْ يَكُنْ فِيهِمْ أَحَدٌ مُحْتَاجًا، لِأَنَّ كُلَّ ٱلَّذِينَ كَانُوا أَصْحَابَ حُقُولٍ أَوْ بُيُوتٍ كَانُوا يَبِيعُونَهَا، وَيَأْتُونَ بِأَثْمَانِ ٱلْمَبِيعَاتِ، ٣٤ 34
क्यूँकि उन में कोई भी मुहताज न था, इसलिए कि जो लोग ज़मीनों और घरों के मालिक थे, उनको बेच बेच कर बिकी हुई चीज़ों की क़ीमत लाते।
وَيَضَعُونَهَا عِنْدَ أَرْجُلِ ٱلرُّسُلِ، فَكَانَ يُوزَّعُ عَلَى كُلِّ أَحَدٍ كَمَا يَكُونُ لَهُ ٱحْتِيَاجٌ. ٣٥ 35
और रसूलों के पाँव में रख देते थे, फिर हर एक को उसकी ज़रुरत के मुवाफ़िक़ बाँट दिया जाता था।
وَيُوسُفُ ٱلَّذِي دُعِيَ مِنَ ٱلرُّسُلِ بَرْنَابَا، ٱلَّذِي يُتَرْجَمُ ٱبْنَ ٱلْوَعْظِ، وَهُوَ لَاوِيٌّ قُبْرُسِيُّ ٱلْجِنْسِ، ٣٦ 36
और यूसुफ़ नाम एक लावी था, जिसका लक़ब रसूलों ने बरनबास: या'नी नसीहत का बेटा रख्खा था, और जिसकी पैदाइश कुप्रुस टापू की थी।
إِذْ كَانَ لَهُ حَقْلٌ بَاعَهُ، وَأَتَى بِٱلدَّرَاهِمِ وَوَضَعَهَا عِنْدَ أَرْجُلِ ٱلرُّسُلِ. ٣٧ 37
उसका एक खेत था, जिसको उसने बेचा और क़ीमत लाकर रसूलों के पाँव में रख दी।

< أعمال 4 >