< أعمال 22 >

«أَيُّهَا ٱلرِّجَالُ ٱلْإِخْوَةُ وَٱلْآبَاءُ، ٱسْمَعُوا ٱحْتِجَاجِي ٱلْآنَ لَدَيْكُمْ». ١ 1
ऐ भाइयों और बुज़ुर्गो, मेरी बात सुनो, जो अब तुम से बयान करता हूँ।
فَلَمَّا سَمِعُوا أَنَّهُ يُنَادِي لَهُمْ بِٱللُّغَةِ ٱلْعِبْرَانِيَّةِ أَعْطَوْا سُكُوتًا أَحْرَى. فَقَالَ: ٢ 2
जब उन्होंने सुना कि हम से इब्रानी ज़बान में बोलता है तो और भी चुप चाप हो गए। पस उस ने कहा।
«أَنَا رَجُلٌ يَهُودِيٌّ وُلِدْتُ فِي طَرْسُوسَ كِيلِيكِيَّةَ، وَلَكِنْ رَبَيْتُ فِي هَذِهِ ٱلْمَدِينَةِ مُؤَدَّبًا عِنْدَ رِجْلَيْ غَمَالَائِيلَ عَلَى تَحْقِيقِ ٱلنَّامُوسِ ٱلْأَبَوِيِّ. وَكُنْتُ غَيُورًا لِلهِ كَمَا أَنْتُمْ جَمِيعُكُمُ ٱلْيَوْمَ. ٣ 3
मैं यहूदी हूँ, और किलकिया के शहर तरसुस में पैदा हुआ हूँ, मगर मेरी तरबियत इस शहर में गमलीएल के क़दमों में हुई, और मैंने बा'प दादा की शरी'अत की ख़ास पाबन्दी की ता'लीम पाई, और ख़ुदा की राह में ऐसा सरगर्म रहा था, जैसे तुम सब आज के दिन हो।
وَٱضْطَهَدْتُ هَذَا ٱلطَّرِيقَ حَتَّى ٱلْمَوْتِ، مُقَيِّدًا وَمُسَلِّمًا إِلَى ٱلسُّجُونِ رِجَالًا وَنِسَاءً، ٤ 4
चुनाँचे मैंने मर्दों और औरतों को बाँध बाँधकर और क़ैदख़ाने में डाल डालकर मसीही तरीक़े वालों को यहाँ तक सताया है कि मरवा भी डाला।
كَمَا يَشْهَدُ لِي أَيْضًا رَئِيسُ ٱلْكَهَنَةِ وَجَمِيعُ ٱلْمَشْيَخَةِ، ٱلَّذِينَ إِذْ أَخَذْتُ أَيْضًا مِنْهُمْ رَسَائِلَ لِلْإِخْوَةِ إِلَى دِمَشْقَ، ذَهَبْتُ لِآتِيَ بِٱلَّذِينَ هُنَاكَ إِلَى أُورُشَلِيمَ مُقَيَّدِينَ لِكَيْ يُعَاقَبُوا. ٥ 5
चुनाँचे सरदार काहिन और सब बुज़ुर्ग मेरे गवाह हैं, कि उन से मैं भाइयों के नाम ख़त ले कर दमिश्क़ को रवाना हुआ, ताकि जितने वहाँ हों उन्हें भी बाँध कर येरूशलेम में सज़ा दिलाने को लाऊँ।
فَحَدَثَ لِي وَأَنَا ذَاهِبٌ وَمُتَقَرِّبٌ إِلَى دِمَشْقَ أَنَّهُ نَحْوَ نِصْفِ ٱلنَّهَارِ، بَغْتَةً أَبْرَقَ حَوْلِي مِنَ ٱلسَّمَاءِ نُورٌ عَظِيمٌ. ٦ 6
जब में सफ़र करता करता दमिश्क़ शहर के नज़दीक पहुँचा तो ऐसा हुआ कि दोपहर के क़रीब यकायक एक बड़ा नूर आसमान से मेरे आस — पास आ चमका।
فَسَقَطْتُ عَلَى ٱلْأَرْضِ، وَسَمِعْتُ صَوْتًا قَائِلًا لِي: شَاوُلُ، شَاوُلُ! لِمَاذَا تَضْطَهِدُنِي؟ ٧ 7
और में ज़मीन पर गिर पड़ा, और ये आवाज़ सुनी कि “ऐ साऊल, ऐ साऊल। तू मुझे क्यूँ सताता है?”
فَأَجَبْتُ: مَنْ أَنْتَ يَا سَيِّدُ؟ فَقَالَ لِي: أَنَا يَسُوعُ ٱلنَّاصِرِيُّ ٱلَّذِي أَنْتَ تَضْطَهِدُهُ. ٨ 8
मैं ने जवाब दिया कि ‘ऐ ख़ुदावन्द, तू कौन हैं?’ उस ने मुझ से कहा “मैं ईसा नासरी हूँ जिसे तू सताता है।”
وَٱلَّذِينَ كَانُوا مَعِي نَظَرُوا ٱلنُّورَ وَٱرْتَعَبُوا، وَلَكِنَّهُمْ لَمْ يَسْمَعُوا صَوْتَ ٱلَّذِي كَلَّمَنِي. ٩ 9
और मेरे साथियों ने नूर तो देखा लेकिन जो मुझ से बोलता था, उस की आवाज़ न समझ सके।
فَقُلْتُ: مَاذَا أَفْعَلُ يَارَبُّ؟ فَقَالَ لِي ٱلرَّبُّ: قُمْ وَٱذْهَبْ إِلَى دِمَشْقَ، وَهُنَاكَ يُقَالُ لَكَ عَنْ جَمِيعِ مَا تَرَتَّبَ لَكَ أَنْ تَفْعَلَ. ١٠ 10
मैं ने कहा, 'ऐ ख़ुदावन्द, मैं क्या करूँ? ख़ुदावन्द ने मुझ से कहा, “उठ कर दमिश्क़ में जा। और जो कुछ तेरे करने के लिए मुक़र्रर हुआ है, वहाँ तुझ से सब कहा जाए गा।”
وَإِذْ كُنْتُ لَا أُبْصِرُ مِنْ أَجْلِ بَهَاءِ ذَلِكَ ٱلنُّورِ، ٱقْتَادَنِي بِيَدِي ٱلَّذِينَ كَانُوا مَعِي، فَجِئْتُ إِلَى دِمَشْقَ. ١١ 11
जब मुझे उस नूर के जलाल की वजह से कुछ दिखाई न दिया तो मेरे साथी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दमिश्क़ में ले गए।
«ثُمَّ إِنَّ حَنَانِيَّا رَجُلًا تَقِيًّا حَسَبَ ٱلنَّامُوسِ، وَمَشْهُودًا لَهُ مِنْ جَمِيعِ ٱلْيَهُودِ ٱلسُّكَّانِ ١٢ 12
और हननियाह नाम एक शख़्स जो शरी'अत के मुवाफ़िक़ दीनदार और वहाँ के सब रहने वाले यहूदियों के नज़दीक नेक नाम था
أَتَى إِلَيَّ، وَوَقَفَ وَقَالَ لِي: أَيُّهَا ٱلْأَخُ شَاوُلُ، أَبْصِرْ! فَفِي تِلْكَ ٱلسَّاعَةِ نَظَرْتُ إِلَيْهِ. ١٣ 13
मेरे पास आया और खड़े होकर मुझ से कहा, 'भाई साऊल फिर बीना हो, उसी वक़्त बीना हो कर मैंने उस को देखा।
فَقَالَ: إِلَهُ آبَائِنَا ٱنْتَخَبَكَ لِتَعْلَمَ مَشِيئَتَهُ، وَتُبْصِرَ ٱلْبَارَّ، وَتَسْمَعَ صَوْتًا مِنْ فَمِهِ. ١٤ 14
उस ने कहा, 'हमारे बाप दादा के ख़ुदा ने तुझ को इसलिए मुक़र्रर किया है कि तू उस की मर्ज़ी को जाने और उस रास्तबाज़ को देखे और उस के मुँह की आवाज़ सुने।
لِأَنَّكَ سَتَكُونُ لَهُ شَاهِدًا لِجَمِيعِ ٱلنَّاسِ بِمَا رَأَيْتَ وَسَمِعْتَ. ١٥ 15
क्यूँकि तू उस की तरफ़ से सब आदमियों के सामने उन बातों का गवाह होगा, जो तूने देखी और सुनी हैं।
وَٱلْآنَ لِمَاذَا تَتَوَانَى؟ قُمْ وَٱعْتَمِدْ وَٱغْسِلْ خَطَايَاكَ دَاعِيًا بِٱسْمِ ٱلرَّبِّ. ١٦ 16
अब क्यूँ देर करता है? उठ बपतिस्मा ले, और उस का नाम ले कर अपने गुनाहों को धो डाल।
وَحَدَثَ لِي بَعْدَ مَا رَجَعْتُ إِلَى أُورُشَلِيمَ وَكُنْتُ أُصَلِّي فِي ٱلْهَيْكَلِ، أَنِّي حَصَلْتُ فِي غَيْبَةٍ، ١٧ 17
जब मैं फिर येरूशलेम में आकर हैकल में दुआ कर रहा था, तो ऐसा हुआ कि मैं बेख़ुद हो गया।
فَرَأَيْتُهُ قَائِلًا لِي: أَسْرِعْ! وَٱخْرُجْ عَاجِلًا مِنْ أُورُشَلِيمَ، لِأَنَّهُمْ لَا يَقْبَلُونَ شَهَادَتَكَ عَنِّي. ١٨ 18
और उस को देखा कि मुझ से कहता है, “जल्दी कर और फ़ौरन येरूशलेम से निकल जा, क्यूँकि वो मेरे हक़ में तेरी गवाही क़ुबूल न करेंगे।”
فَقُلْتُ: يَارَبُّ، هُمْ يَعْلَمُونَ أَنِّي كُنْتُ أَحْبِسُ وَأَضْرِبُ فِي كُلِّ مَجْمَعٍ ٱلَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِكَ. ١٩ 19
मैंने कहा, 'ऐ ख़ुदावन्द! वो ख़ुद जानते हैं, कि जो तुझ पर ईमान लाए हैं, उन को क़ैद कराता और जा'बजा इबादतख़ानों में पिटवाता था।
وَحِينَ سُفِكَ دَمُ ٱسْتِفَانُوسَ شَهِيدِكَ كُنْتُ أَنَا وَاقِفًا وَرَاضِيًا بِقَتْلِهِ، وَحَافِظًا ثِيَابَ ٱلَّذِينَ قَتَلُوهُ. ٢٠ 20
और जब तेरे शहीद स्तिफ़नुस का ख़ून बहाया जाता था, तो मैं भी वहाँ खड़ा था। और उसके क़त्ल पर राज़ी था, और उसके क़ातिलों के कपड़ों की हिफ़ाज़त करता था।
فَقَالَ لِي: ٱذْهَبْ، فَإِنِّي سَأُرْسِلُكَ إِلَى ٱلْأُمَمِ بَعِيدًا». ٢١ 21
उस ने मुझ से कहा, “जा मैं तुझे ग़ैर क़ौमों के पास दूर दूर भेजूँगा।”
فَسَمِعُوا لَهُ حَتَّى هَذِهِ ٱلْكَلِمَةِ، ثُمَّ رَفَعُوا أَصْوَاتَهُمْ قَائِلِينَ: «خُذْ مِثْلَ هَذَا مِنَ ٱلْأَرْضِ، لِأَنَّهُ كَانَ لَا يَجُوزُ أَنْ يَعِيشَ!». ٢٢ 22
वो इस बात तक तो उसकी सुनते रहे फिर बुलन्द आवाज़ से चिल्लाए कि ऐसे शख़्स को ज़मीन पर से ख़त्म कर दे! उस का ज़िन्दा रहना मुनासिब नहीं,
وَإِذْ كَانُوا يَصِيحُونَ وَيَطْرَحُونَ ثِيَابَهُمْ وَيَرْمُونَ غُبَارًا إِلَى ٱلْجَوِّ، ٢٣ 23
जब वो चिल्लाते और अपने कपड़े फ़ेंकते और ख़ाक उड़ाते थे।
أَمَرَ ٱلْأَمِيرُ أَنْ يُذْهَبَ بِهِ إِلَى ٱلْمُعَسْكَرِ، قَائِلًا أَنْ يُفْحَصَ بِضَرَبَاتٍ، لِيَعْلَمَ لِأَيِّ سَبَبٍ كَانُوا يَصْرُخُونَ عَلَيْهِ هَكَذَا. ٢٤ 24
तो पलटन के सरदार ने हुक्म दे कर कहा, कि उसे क़िले में ले जाओ, और कोड़े मार कर उस का इज़हार लो ताकि मुझे मा'लूम हो कि वो किस वजह से उसकी मुख़ालिफ़त में यूँ चिल्लाते हैं।
فَلَمَّا مَدُّوهُ لِلسِّيَاطِ، قَالَ بُولُسُ لِقَائِدِ ٱلْمِئَةِ ٱلْوَاقِفِ: «أَيَجُوزُ لَكُمْ أَنْ تَجْلِدُوا إِنْسَانًا رُومَانِيًّا غَيْرَ مَقْضِيٍّ عَلَيْهِ؟». ٢٥ 25
जब उन्होंने उसे रस्सियों से बाँध लिया तो, पौलुस ने उस सिपाही से जो पास खड़ा था कहा, “ख़ुदावन्द क्या तुम्हें जायज़ है कि एक रोमी आदमी को कोड़े मारो और वो भी क़ुसूर साबित किए बग़ैर?”
فَإِذْ سَمِعَ قَائِدُ ٱلْمِئَةِ ذَهَبَ إِلَى ٱلْأَمِيرِ، وَأَخْبَرَهُ قَائِلًا: «ٱنْظُرْ مَاذَا أَنْتَ مُزْمِعٌ أَنْ تَفْعَلَ! لِأَنَّ هَذَا ٱلرَّجُلَ رُومَانِيٌّ». ٢٦ 26
सिपाही ये सुन कर पलटन के सरदार के पास गया और उसे ख़बर दे कर कहा, तू क्या करता है? ये तो रोमी आदमी है।
فَجَاءَ ٱلْأَمِيرُ وَقَالَ لَهُ: «قُلْ لِي: أَنْتَ رُومَانِيٌّ؟». فَقَالَ: «نَعَمْ». ٢٧ 27
पलटन के सरदार ने उस के पास आकर कहा, मुझे बता तो क्या तू रोमी है? उस ने कहा, हाँ।
فَأَجَابَ ٱلْأَمِيرُ: «أَمَّا أَنَا فَبِمَبْلَغٍ كَبِيرٍ ٱقْتَنَيْتُ هَذِهِ ٱلرَّعَوِيَّةَ». فَقَالَ بُولُسُ: «أَمَّا أَنَا فَقَدْ وُلِدْتُ فِيهَا». ٢٨ 28
पलटन के सरदार ने जवाब दिया कि मैं ने बड़ी रक़म दे कर रोमी होने का रुत्बा हासिल किया पौलुस ने कहा, “मैं तो पैदाइशी हूँ।”
وَلِلْوَقْتِ تَنَحَّى عَنْهُ ٱلَّذِينَ كَانُوا مُزْمِعِينَ أَنْ يَفْحَصُوهُ. وَٱخْتَشَى ٱلْأَمِيرُ لَمَّا عَلِمَ أَنَّهُ رُومَانِيٌّ، وَلِأَنَّهُ قَدْ قَيَّدَهُ. ٢٩ 29
पस, जो उस का इज़हार लेने को थे, फ़ौरन उस से अलग हो गए। और पलटन का सरदार भी ये मा'लूम करके डर गया, कि जिसको मैंने बाँधा है, वो रोमी है।
وَفِي ٱلْغَدِ إِذْ كَانَ يُرِيدُ أَنْ يَعْلَمَ ٱلْيَقِينَ: لِمَاذَا يَشْتَكِي ٱلْيَهُودُ عَلَيْهِ؟ حَلَّهُ مِنَ ٱلرِّبَاطِ، وَأَمَرَ أَنْ يَحْضُرَ رُؤَسَاءُ ٱلْكَهَنَةِ وَكُلُّ مَجْمَعِهِمْ. فَأَحْدَرَ بُولُسَ وَأَقَامَهُ لَدَيْهِمْ. ٣٠ 30
सुबह को ये हक़ीक़त मा'लूम करने के इरादे से कि यहूदी उस पर क्या इल्ज़ाम लगाते हैं। उस ने उस को खोल दिया। और सरदार काहिन और सब सद्र — ए — आदालत वालों को जमा होने का हुक्म दिया, और पौलुस को नीचे ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया।

< أعمال 22 >