< أعمال 15 >

وَٱنْحَدَرَ قَوْمٌ مِنَ ٱلْيَهُودِيَّةِ، وَجَعَلُوا يُعَلِّمُونَ ٱلْإِخْوَةَ أَنَّهُ: «إِنْ لَمْ تَخْتَتِنُوا حَسَبَ عَادَةِ مُوسَى، لَا يُمْكِنُكُمْ أَنْ تَخْلُصُوا». ١ 1
फिर कुछ लोग यहूदिया से आ कर भाइयों को यह तालीम देने लगे, “ज़रूरी है कि आप का मूसा की शरी'अत के मुताबिक़ ख़तना किया जाए, वर्ना आप नजात नहीं पा सकेंगे।”
فَلَمَّا حَصَلَ لِبُولُسَ وَبَرْنَابَا مُنَازَعَةٌ وَمُبَاحَثَةٌ لَيْسَتْ بِقَلِيلَةٍ مَعَهُمْ، رَتَّبُوا أَنْ يَصْعَدَ بُولُسُ وَبَرْنَابَا وَأُنَاسٌ آخَرُونَ مِنْهُمْ إِلَى ٱلرُّسُلِ وَٱلْمَشَايِخِ إِلَى أُورُشَلِيمَ مِنْ أَجْلِ هَذِهِ ٱلْمَسْأَلَةِ. ٢ 2
पस, जब पौलुस और बरनबास की उन से बहुत तकरार और बहस हुई तो कलीसिया ने ये ठहराया कि पौलुस और बरनबास और उन में से चन्द शख़्स इस मस्ले के लिए रसूलों और बुज़ुर्गों के पास येरूशलेम जाएँ।
فَهَؤُلَاءِ بَعْدَ مَا شَيَّعَتْهُمُ ٱلْكَنِيسَةُ ٱجْتَازُوا فِي فِينِيقِيَةَ وَٱلسَّامِرَةِ يُخْبِرُونَهُمْ بِرُجُوعِ ٱلْأُمَمِ، وَكَانُوا يُسَبِّبُونَ سُرُورًا عَظِيمًا لِجَمِيعِ ٱلْإِخْوَةِ. ٣ 3
पस, कलीसिया ने उनको रवाना किया और वो ग़ैर क़ौमों को रुजू लाने का बयान करते हुए फ़ीनिके और सामरिया सूबे से गुज़रे और सब भाइयों को बहुत ख़ुश करते गए।
وَلَمَّا حَضَرُوا إِلَى أُورُشَلِيمَ قَبِلَتْهُمُ ٱلْكَنِيسَةُ وَٱلرُّسُلُ وَٱلْمَشَايِخُ، فَأَخْبَرُوهُمْ بِكُلِّ مَا صَنَعَ ٱللهُ مَعَهُمْ. ٤ 4
जब येरूशलेम में पहुँचे तो कलीसिया और रसूल और बुज़ुर्ग उन से ख़ुशी के साथ मिले। और उन्हों ने सब कुछ बयान किया जो ख़ुदा ने उनके ज़रिए किया था।
وَلَكِنْ قَامَ أُنَاسٌ مِنَ ٱلَّذِينَ كَانُوا قَدْ آمَنُوا مِنْ مَذْهَبِ ٱلْفَرِّيسِيِّينَ، وَقَالُوا: «إِنَّهُ يَنْبَغِي أَنْ يُخْتَنُوا، وَيُوصَوْا بِأَنْ يَحْفَظُوا نَامُوسَ مُوسَى». ٥ 5
मगर फ़रीसियों के फ़िर्के में से जो ईमान लाए थे, उन में से कुछ ने उठ कर कहा “कि उनका ख़तना कराना और उनको मूसा की शरी'अत पर अमल करने का हुक्म देना ज़रूरी है।”
فَٱجْتَمَعَ ٱلرُّسُلُ وَٱلْمَشَايِخُ لِيَنْظُرُوا فِي هَذَا ٱلْأَمْرِ. ٦ 6
पस, रसूल और बुज़ुर्ग इस बात पर ग़ौर करने के लिए जमा हुए।
فَبَعْدَ مَا حَصَلَتْ مُبَاحَثَةٌ كَثِيرَةٌ قَامَ بُطْرُسُ وَقَالَ لَهُمْ: «أَيُّهَا ٱلرِّجَالُ ٱلْإِخْوَةُ، أَنْتُمْ تَعْلَمُونَ أَنَّهُ مُنْذُ أَيَّامٍ قَدِيمَةٍ ٱخْتَارَ ٱللهُ بَيْنَنَا أَنَّهُ بِفَمِي يَسْمَعُ ٱلْأُمَمُ كَلِمَةَ ٱلْإِنْجِيلِ وَيُؤْمِنُونَ. ٧ 7
और बहुत बहस के बाद पतरस ने खड़े होकर उन से कहा कि ऐ भाइयों तुम जानते हो कि बहुत अर्सा हुआ जब ख़ुदा ने तुम लोगों में से मुझे चुना कि ग़ैर क़ौमें मेरी ज़बान से ख़ुशख़बरी का कलाम सुनकर ईमान लाएँ।
وَٱللهُ ٱلْعَارِفُ ٱلْقُلُوبَ، شَهِدَ لَهُمْ مُعْطِيًا لَهُمُ ٱلرُّوحَ ٱلْقُدُسَ كَمَا لَنَا أَيْضًا. ٨ 8
और ख़ुदा ने जो दिलों को जानता है उनको भी हमारी तरह रूह — उल — क़ुद्दूस दे कर उन की गवाही दी।
وَلَمْ يُمَيِّزْ بَيْنَنَا وَبَيْنَهُمْ بِشَيْءٍ، إِذْ طَهَّرَ بِٱلْإِيمَانِ قُلُوبَهُمْ. ٩ 9
और ईमान के वसीले से उन के दिल पाक करके हम में और उन में कुछ फ़र्क़ न रख्खा।
فَٱلْآنَ لِمَاذَا تُجَرِّبُونَ ٱللهَ بِوَضْعِ نِيرٍ عَلَى عُنُقِ ٱلتَّلَامِيذِ لَمْ يَسْتَطِعْ آبَاؤُنَا وَلَا نَحْنُ أَنْ نَحْمِلَهُ؟ ١٠ 10
पस, अब तुम शागिर्दों की गर्दन पर ऐसा जुआ रख कर जिसको न हमारे बाप दादा उठा सकते थे, न हम ख़ुदा को क्यूँ आज़माते हो?
لَكِنْ بِنِعْمَةِ ٱلرَّبِّ يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ نُؤْمِنُ أَنْ نَخْلُصَ كَمَا أُولَئِكَ أَيْضًا». ١١ 11
हालाँकि हम को यक़ीन है कि जिस तरह वो ख़ुदावन्द ईसा के फ़ज़ल ही से नजात पाएँगे, उसी तरह हम भी पाएँगे।
فَسَكَتَ ٱلْجُمْهُورُ كُلُّهُ. وَكَانُوا يَسْمَعُونَ بَرْنَابَا وَبُولُسَ يُحَدِّثَانِ بِجَمِيعِ مَا صَنَعَ ٱللهُ مِنَ ٱلْآيَاتِ وَٱلْعَجَائِبِ فِي ٱلْأُمَمِ بِوَاسِطَتِهِمْ. ١٢ 12
फिर सारी जमा'अत चुप रही और पौलुस और बरनबास का बयान सुनने लगी, कि ख़ुदा ने उनके ज़रिए ग़ैर क़ौमों में कैसे कैसे निशान और अजीब काम ज़हिर किए।
وَبَعْدَمَا سَكَتَا أَجَابَ يَعْقُوبُ قَائِلًا: «أَيُّهَا ٱلرِّجَالُ ٱلْإِخْوَةُ، ٱسْمَعُونِي. ١٣ 13
जब वो ख़ामोश हुए तो या'क़ूब कहने लगा कि, “ऐ भाइयों मेरी सुनो!”
سِمْعَانُ قَدْ أَخْبَرَ كَيْفَ ٱفْتَقَدَ ٱللهُ أَوَّلًا ٱلْأُمَمَ لِيَأْخُذَ مِنْهُمْ شَعْبًا عَلَى ٱسْمِهِ. ١٤ 14
शमौन ने बयान किया कि ख़ुदा ने पहले ग़ैर क़ौमों पर किस तरह तवज्जह की ताकि उन में से अपने नाम की एक उम्मत बना ले।
وَهَذَا تُوافِقُهُ أَقْوَالُ ٱلْأَنْبِيَاءِ، كَمَا هُوَ مَكْتُوبٌ: ١٥ 15
और नबियों की बातें भी इस के मुताबिक़ हैं। चुनाँचे लिखा है कि।
سَأَرْجِعُ بَعْدَ هَذَا وَأَبْنِي أَيْضًا خَيْمَةَ دَاوُدَ ٱلسَّاقِطَةَ، وَأَبْنِي أَيْضًا رَدْمَهَا وَأُقِيمُهَا ثَانِيَةً، ١٦ 16
इन बातों के बाद मैं फिर आकर दाऊद के गिरे हुए खेमों को उठाऊँगा, और उस के फ़टे टूटे की मरम्मत करके उसे खड़ा करूँगा।
لِكَيْ يَطْلُبَ ٱلْبَاقُونَ مِنَ ٱلنَّاسِ ٱلرَّبَّ، وَجَمِيعُ ٱلْأُمَمِ ٱلَّذِينَ دُعِيَ ٱسْمِي عَلَيْهِمْ، يَقُولُ ٱلرَّبُّ ٱلصَّانِعُ هَذَا كُلَّهُ. ١٧ 17
ताकि बाक़ी आदमी या'नी सब क़ौमें जो मेरे नाम की कहलाती हैं ख़ुदावन्द को तलाश करें'
مَعْلُومَةٌ عِنْدَ ٱلرَّبِّ مُنْذُ ٱلْأَزَلِ جَمِيعُ أَعْمَالِهِ. (aiōn g165) ١٨ 18
ये वही ख़ुदावन्द फ़रमाता है जो दुनिया के शुरू से इन बातों की ख़बर देता आया है। (aiōn g165)
لِذَلِكَ أَنَا أَرَى أَنْ لَا يُثَقَّلَ عَلَى ٱلرَّاجِعِينَ إِلَى ٱللهِ مِنَ ٱلْأُمَمِ، ١٩ 19
पस, मेरा फ़ैसला ये है, कि जो ग़ैर क़ौमों में से ख़ुदा की तरफ़ रुजू होते हैं हम उन्हें तकलीफ़ न दें।
بَلْ يُرْسَلْ إِلَيْهِمْ أَنْ يَمْتَنِعُوا عَنْ نَجَاسَاتِ ٱلْأَصْنَامِ، وَٱلزِّنَا، وَٱلْمَخْنُوقِ، وَٱلدَّمِ. ٢٠ 20
मगर उन को लिख भेजें कि बुतों की मकरूहात और हरामकारी और गला घोंटे हुए जानवरों और लहू से परहेज़ करें।
لِأَنَّ مُوسَى مُنْذُ أَجْيَالٍ قَدِيمَةٍ، لَهُ فِي كُلِّ مَدِينَةٍ مَنْ يَكْرِزُ بِهِ، إِذْ يُقْرَأُ فِي ٱلْمَجَامِعِ كُلَّ سَبْتٍ». ٢١ 21
क्यूँकि पुराने ज़माने से हर शहर में मूसा की तौरेत का ऐलान करने वाले होते चले आए हैं: और वो हर सबत को इबादतख़ानों में सुनाई जाती हैं।
حِينَئِذٍ رَأَى ٱلرُّسُلُ وَٱلْمَشَايِخُ مَعَ كُلِّ ٱلْكَنِيسَةِ أَنْ يَخْتَارُوا رَجُلَيْنِ مِنْهُمْ، فَيُرْسِلُوهُمَا إِلَى أَنْطَاكِيَةَ مَعَ بُولُسَ وَبَرْنَابَا: يَهُوذَا ٱلْمُلَقَّبَ بَرْسَابَا، وَسِيلَا، رَجُلَيْنِ مُتَقَدِّمَيْنِ فِي ٱلْإِخْوَةِ. ٢٢ 22
इस पर रसूलों और बुज़ुर्गों ने सारी कलीसिया समेत मुनासिब जाना कि अपने में से चन्द शख़्स चुन कर पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया को भेजें, या'नी यहूदाह को जो बरसब्बा कहलाता है। और सीलास को ये शख़्स भाइयों में मुक़द्दम थे।
وَكَتَبُوا بِأَيْدِيهِمْ هَكَذَا: «اَلرُّسُلُ وَٱلْمَشَايِخُ وَٱلْإِخْوَةُ يُهْدُونَ سَلَامًا إِلَى ٱلْإِخْوَةِ ٱلَّذِينَ مِنَ ٱلْأُمَمِ فِي أَنْطَاكِيَةَ وَسُورِيَّةَ وَكِيلِيكِيَّةَ: ٢٣ 23
और उनके हाथ ये लिख भेजा कि “अन्ताकिया और सूरिया और किलकिया के रहने वाले भाइयों को जो ग़ैर क़ौमों में से हैं। रसूलों और बुज़ुर्ग भाइयों का सलाम पहूँचे।”
إِذْ قَدْ سَمِعْنَا أَنَّ أُنَاسًا خَارِجِينَ مِنْ عِنْدِنَا أَزْعَجُوكُمْ بِأَقْوَالٍ، مُقَلِّبِينَ أَنْفُسَكُمْ، وَقَائِلِينَ أَنْ تَخْتَتِنُوا وَتَحْفَظُوا ٱلنَّامُوسَ، ٱلَّذِينَ نَحْنُ لَمْ نَأْمُرْهُمْ. ٢٤ 24
चूँकि हम ने सुना है, कि कुछ ने हम में से जिनको हम ने हुक्म न दिया था, वहाँ जाकर तुम्हें अपनी बातों से घबरा दिया। और तुम्हारे दिलों को उलट दिया।
رَأَيْنَا وَقَدْ صِرْنَا بِنَفْسٍ وَاحِدَةٍ أَنْ نَخْتَارَ رَجُلَيْنِ وَنُرْسِلَهُمَا إِلَيْكُمْ مَعَ حَبِيبَيْنَا بَرْنَابَا وَبُولُسَ، ٢٥ 25
इसलिए हम ने एक दिल होकर मुनासिब जाना कि कुछ चुने हुए आदमियों को अपने अज़ीज़ों बरनबास और पौलुस के साथ तुम्हारे पास भेजें।
رَجُلَيْنِ قَدْ بَذَلَا نَفْسَيْهِمَا لِأَجْلِ ٱسْمِ رَبِّنَا يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ. ٢٦ 26
ये दोनों ऐसे आदमी हैं, जिन्होंने अपनी जानें हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के नाम पर निसार कर रख्खी हैं।
فَقَدْ أَرْسَلْنَا يَهُوذَا وَسِيلَا، وَهُمَا يُخْبِرَانِكُمْ بِنَفْسِ ٱلْأُمُورِ شِفَاهًا. ٢٧ 27
चुनाँचे हम ने यहूदाह और सीलास को भेजा है, वो यही बातें ज़बानी भी बयान करेंगे।
لِأَنَّهُ قَدْ رَأَى ٱلرُّوحُ ٱلْقُدُسُ وَنَحْنُ، أَنْ لَا نَضَعَ عَلَيْكُمْ ثِقْلًا أَكْثَرَ، غَيْرَ هَذِهِ ٱلْأَشْيَاءِ ٱلْوَاجِبَةِ: ٢٨ 28
क्यूँकि रूह — उल — क़ुद्दूस ने और हम ने मुनासिब जाना कि इन ज़रूरी बातों के सिवा तुम पर और बोझ न डालें
أَنْ تَمْتَنِعُوا عَمَّا ذُبِحَ لِلْأَصْنَامِ، وَعَنِ ٱلدَّمِ، وَٱلْمَخْنُوقِ، وَٱلزِّنَا، ٱلَّتِي إِنْ حَفِظْتُمْ أَنْفُسَكُمْ مِنْهَا فَنِعِمَّا تَفْعَلُونَ. كُونُوا مُعَافَيْنَ». ٢٩ 29
कि तुम बुतों की क़ुर्बानियों के गोश्त से और लहू और गला घोंटे हुए जानवरों और हरामकारी से परहेज़ करो। अगर तुम इन चीज़ों से अपने आप को बचाए रख्खोगे, तो सलामत रहोगे, वस्सलामत।
فَهَؤُلَاءِ لَمَّا أُطْلِقُوا جَاءُوا إِلَى أَنْطَاكِيَةَ، وَجَمَعُوا ٱلْجُمْهُورَ وَدَفَعُوا ٱلرِّسَالَةَ. ٣٠ 30
पस, वो रुख़्सत होकर अन्ताकिया में पहुँचे और जमा'अत को इकट्ठा करके ख़त दे दिया।
فَلَمَّا قَرَأُوهَا فَرِحُوا لِسَبَبِ ٱلتَّعْزِيَةِ. ٣١ 31
वो पढ़ कर उसके तसल्ली बख़्श मज़्मून से ख़ुश हुए।
وَيَهُوذَا وَسِيلَا، إِذْ كَانَا هُمَا أَيْضًا نَبِيَّيْنِ، وَعَظَا ٱلْإِخْوَةَ بِكَلَامٍ كَثِيرٍ وَشَدَّدَاهُمْ. ٣٢ 32
और यहूदाह और सीलास ने जो ख़ुद भी नबी थे, भाइयों को बहुत सी नसीहत करके मज़बूत कर दिया।
ثُمَّ بَعْدَ مَا صَرَفَا زَمَانًا أُطْلِقَا بِسَلَامٍ مِنَ ٱلْإِخْوَةِ إِلَى ٱلرُّسُلِ. ٣٣ 33
वो चन्द रोज़ रह कर और भाइयों से सलामती की दुआ लेकर अपने भेजने वालों के पास रुख़्सत कर दिए गए।
وَلَكِنَّ سِيلَا رَأَى أَنْ يَلْبَثَ هُنَاكَ. ٣٤ 34
[लेकिन सीलास को वहाँ ठहरना अच्छा लगा]।
أَمَّا بُولُسُ وَبَرْنَابَا فَأَقَامَا فِي أَنْطَاكِيَةَ يُعَلِّمَانِ وَيُبَشِّرَانِ مَعَ آخَرِينَ كَثِيرِينَ أَيْضًا بِكَلِمَةِ ٱلرَّبِّ. ٣٥ 35
मगर पौलुस और बरनबास अन्ताकिया ही में रहे: और बहुत से और लोगों के साथ ख़ुदावन्द का कलाम सिखाते और उस का ऐलान करते रहे।
ثُمَّ بَعْدَ أَيَّامٍ قَالَ بُولُسُ لِبَرْنَابَا: «لِنَرْجِعْ وَنَفْتَقِدْ إِخْوَتَنَا فِي كُلِّ مَدِينَةٍ نَادَيْنَا فِيهَا بِكَلِمَةِ ٱلرَّبِّ، كَيْفَ هُمْ». ٣٦ 36
चन्द रोज़ बाद पौलुस ने बरनबास से कहा “कि जिन जिन शहरों में हम ने ख़ुदा का कलाम सुनाया था, आओ फिर उन में चलकर भाइयों को देखें कि कैसे हैं।”
فَأَشَارَ بَرْنَابَا أَنْ يَأْخُذَا مَعَهُمَا أَيْضًا يُوحَنَّا ٱلَّذِي يُدْعَى مَرْقُسَ، ٣٧ 37
और बरनबास की सलाह थी कि यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है। अपने साथ ले चलें।
وَأَمَّا بُولُسُ فَكَانَ يَسْتَحْسِنُ أَنَّ ٱلَّذِي فَارَقَهُمَا مِنْ بَمْفِيلِيَّةَ وَلَمْ يَذْهَبْ مَعَهُمَا لِلْعَمَلِ، لَا يَأْخُذَانِهِ مَعَهُمَا. ٣٨ 38
मगर पौलुस ने ये मुनासिब न जाना, कि जो शख़्स पम्फ़ीलिया में किनारा करके उस काम के लिए उनके साथ न गया था; उस को हमराह ले चलें।
فَحَصَلَ بَيْنَهُمَا مُشَاجَرَةٌ حَتَّى فَارَقَ أَحَدُهُمَا ٱلْآخَرَ. وَبَرْنَابَا أَخَذَ مَرْقُسَ وَسَافَرَ فِي ٱلْبَحْرِ إِلَى قُبْرُسَ. ٣٩ 39
पस, उन में ऐसी सख़्त तकरार हुई; कि एक दूसरे से जुदा हो गए। और बरनबास मरकुस को ले कर जहाज़ पर कुप्रुस को रवाना हुआ।
وَأَمَّا بُولُسُ فَٱخْتَارَ سِيلَا وَخَرَجَ مُسْتَوْدَعًا مِنَ ٱلْإِخْوَةِ إِلَى نِعْمَةِ ٱللهِ. ٤٠ 40
मगर पौलुस ने सीलास को पसन्द किया, और भाइयों की तरफ़ से ख़ुदावन्द के फ़ज़ल के सुपुर्द हो कर रवाना किया।
فَٱجْتَازَ فِي سُورِيَّةَ وَكِيلِيكِيَّةَ يُشَدِّدُ ٱلْكَنَائِسَ. ٤١ 41
और कलीसिया को मज़बूत करता हुआ सूरिया और किलकिया से गुज़रा।

< أعمال 15 >