< صَمُوئِيلَ ٱلثَّانِي 15 >

وَكَانَ بَعْدَ ذَلِكَ أَنَّ أَبْشَالُومَ ٱتَّخَذَ مَرْكَبَةً وَخَيْلًا وَخَمْسِينَ رَجُلًا يَجْرُونَ قُدَّامَهُ. ١ 1
कुछ समय बाद अबशालोम ने अपने लिए एक रथ, कुछ घोड़े और इनके आगे-आगे दौड़ने के लिए पचास दौड़ने वाले जुटा लिए.
وَكَانَ أَبْشَالُومُ يُبَكِّرُ وَيَقِفُ بِجَانِبِ طَرِيقِ ٱلْبَابِ، وَكُلُّ صَاحِبِ دَعْوَى آتٍ إِلَى ٱلْمَلِكِ لِأَجْلِ ٱلْحُكْمِ، كَانَ أَبْشَالُومُ يَدْعُوهُ إِلَيْهِ وَيَقُولُ: «مِنْ أَيَّةِ مَدِينَةٍ أَنْتَ؟». فَيَقُولُ: «مِنْ أَحَدِ أَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ عَبْدُكَ». ٢ 2
अबशालोम सुबह जल्दी उठकर नगर फाटक के मार्ग पर खड़ा हो जाता था. जब कभी कोई व्यक्ति अपना विवाद लेकर राजा के सामने न्याय के उद्देश्य से आता था, अबशालोम उसे बुलाकर उससे पूछता था, “कहां से आ रहे हो?” उसे उत्तर प्राप्‍त होता था, “इस्राएल के एक वंश से.”
فَيَقُولُ أَبْشَالُومُ لَهُ: «ٱنْظُرْ. أُمُورُكَ صَالِحَةٌ وَمُسْتَقِيمَةٌ، وَلَكِنْ لَيْسَ مَنْ يَسْمَعُ لَكَ مِنْ قِبَلِ ٱلْمَلِكِ». ٣ 3
तब अबशालोम उसे सलाह देता था, “देखो, तुम्हारी विनती पूरी तरह सटीक और सही है, मगर राजा द्वारा ऐसा कोई अधिकारी नियुक्त नहीं किया है, कि तुम्हारी विनती पर विचार किया जा सके.”
ثُمَّ يَقُولُ أَبْشَالُومُ: «مَنْ يَجْعَلُنِي قَاضِيًا فِي ٱلْأَرْضِ فَيَأْتِيَ إِلَيَّ كُلُّ إِنْسَانٍ لَهُ خُصُومَةٌ وَدَعْوَى فَأُنْصِفَهُ؟». ٤ 4
अबशालोम आगे कहता था, “कितना अच्छा होता यदि मैं उस देश के लिए न्यायाध्यक्ष बना दिया जाता! तब हर एक व्यक्ति आकर मुझसे उचित न्याय प्राप्‍त कर सकता.”
وَكَانَ إِذَا تَقَدَّمَ أَحَدٌ لِيَسْجُدَ لَهُ، يَمُدُّ يَدَهُ وَيُمْسِكُهُ وَيُقَبِّلُهُ. ٥ 5
यदि कोई व्यक्ति आकर उसे नमस्कार करने आता था, वह हाथ बढ़ाकर उसे पकड़कर उसका चुंबन ले लिया करता था.
وَكَانَ أَبْشَالُومُ يَفْعَلُ مِثْلَ هَذَا ٱلْأَمْرِ لِجَمِيعِ إِسْرَائِيلَ ٱلَّذِينَ كَانُوا يَأْتُونَ لِأَجْلِ ٱلْحُكْمِ إِلَى ٱلْمَلِكِ، فَٱسْتَرَقَّ أَبْشَالُومُ قُلُوبَ رِجَالِ إِسْرَائِيلَ. ٦ 6
अबशालोम की अब यही रीति हो गई थी, कि जो कोई न्याय के उद्देश्य से राजा के सामने जाने के लिए आता था, अबशालोम उसके साथ यही व्यवहार करता था. यह करके अबशालोम ने इस्राएल की जनता के हृदय जीत लिया.
وَفِي نِهَايَةِ أَرْبَعِينَ سَنَةً قَالَ أَبْشَالُومُ لِلْمَلِكِ: «دَعْنِي فَأَذْهَبَ وَأُوفِيَ نَذْرِي ٱلَّذِي نَذَرْتُهُ لِلرَّبِّ فِي حَبْرُونَ، ٧ 7
चार वर्ष पूरे होते-होते अबशालोम ने राजा से कहा, “कृपया मुझे हेब्रोन जाने की अनुमति दीजिए. मुझे वहां याहवेह से किए गए अपने संकल्प को पूरा करना है.
لِأَنَّ عَبْدَكَ نَذَرَ نَذْرًا عِنْدَ سُكْنَايَ فِي جَشُورَ فِي أَرَامَ قَائِلًا: إِنْ أَرْجَعَنِي ٱلرَّبُّ إِلَى أُورُشَلِيمَ فَإِنِّي أَعْبُدُ ٱلرَّبَّ». ٨ 8
अराम राष्ट्र के गेशूर में रहते हुए आपके सेवक ने यह संकल्प लिया था, ‘यदि याहवेह मुझे वास्तव में येरूशलेम लौटा ले आएंगे, मैं हेब्रोन में आकर याहवेह की वंदना करूंगा.’”
فَقَالَ لَهُ ٱلْمَلِكُ: «ٱذْهَبْ بِسَلَامٍ». فَقَامَ وَذَهَبَ إِلَى حَبْرُونَ. ٩ 9
राजा ने उसे उत्तर दिया, “शांतिपूर्वक जाओ.” तब अबशालोम तैयार होकर हेब्रोन के लिए चला गया.
وَأَرْسَلَ أَبْشَالُومُ جَوَاسِيسَ فِي جَمِيعِ أَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ قَائِلًا: «إِذَا سَمِعْتُمْ صَوْتَ ٱلْبُوقِ، فَقُولُوا: قَدْ مَلَكَ أَبْشَالُومُ فِي حَبْرُونَ». ١٠ 10
अबशालोम सारे इस्राएल में गुप्‍त रूप से इस संदेश के साथ दूत भेज चुका था, “जैसे ही तुम नरसिंगे की आवाज सुनो, यह घोषणा करना, ‘हेब्रोन में अबशालोम राजा है.’”
وَٱنْطَلَقَ مَعَ أَبْشَالُومَ مِئَتَا رَجُلٍ مِنْ أُورُشَلِيمَ قَدْ دُعُوا وَذَهَبُوا بِبَسَاطَةٍ، وَلَمْ يَكُونُوا يَعْلَمُونَ شَيْئًا. ١١ 11
येरूशलेम से अबशालोम के साथ दो सौ व्यक्ति भी हेब्रोन गए ये; आमंत्रित अतिथि थे. वे काफ़ी मासूमियत से गए थे; उन्हें कुछ भी मालूम न था कि क्या-क्या हो रहा था.
وَأَرْسَلَ أَبْشَالُومُ إِلَى أَخِيتُوفَلَ ٱلْجِيلُونِيِّ مُشِيرِ دَاوُدَ مِنْ مَدِينَتِهِ جِيلُوهَ إِذْ كَانَ يَذْبَحُ ذَبَائِحَ. وَكَانَتِ ٱلْفِتْنَةُ شَدِيدَةً وَكَانَ ٱلشَّعْبُ لَا يَزَالُ يَتَزَايَدُ مَعَ أَبْشَالُومَ. ١٢ 12
अबशालोम ने बलि चढ़ाने के अवसर पर गिलोहवासी अहीतोफ़ेल को गिलोह नगर, जो उनके अपना नगर था, आने का न्योता दिया. अहीतोफ़ेल दावीद का मंत्री था. यहां अबशालोम के समर्थक की संख्या बढ़ती जा रही थी, जिससे राजा के विरुद्ध षड़्‍यंत्र मजबूत होता चला गया.
فَأَتَى مُخَبِّرٌ إِلَى دَاوُدَ قَائِلًا: «إِنَّ قُلُوبَ رِجَالِ إِسْرَائِيلَ صَارَتْ وَرَاءَ أَبْشَالُومَ». ١٣ 13
एक दूत ने आकर दावीद को यह सूचना दी, “इस्राएल के लोगों के दिल अबशालोम के साथ हो गया है.”
فَقَالَ دَاوُدُ لِجَمِيعِ عَبِيدِهِ ٱلَّذِينَ مَعَهُ فِي أُورُشَلِيمَ: «قُومُوا بِنَا نَهْرُبُ، لِأَنَّهُ لَيْسَ لَنَا نَجَاةٌ مِنْ وَجْهِ أَبْشَالُومَ. أَسْرِعُوا لِلذَّهَابِ لِئَلَّا يُبَادِرَ وَيُدْرِكَنَا وَيُنْزِلَ بِنَا ٱلشَّرَّ وَيَضْرِبَ ٱلْمَدِينَةَ بِحَدِّ ٱلسَّيْفِ». ١٤ 14
यह मालूम होते ही दावीद ने येरूशलेम में अपने साथ के सभी सेवकों को आदेश दिया, “उठो! हमें यहां से भागना होगा, नहीं तो हम अबशालोम से बच न सकेंगे. हमें इसी क्षण निकलना होगा, कि हम घिर न जाएं और हम पर विनाश न आ पड़े और सारा नगर तलवार का आहार न हो जाए.”
فَقَالَ عَبِيدُ ٱلْمَلِكِ لِلْمَلِكِ: «حَسَبَ كُلِّ مَا يَخْتَارُهُ سَيِّدُنَا ٱلْمَلِكُ نَحْنُ عَبِيدُهُ». ١٥ 15
राजा के सेवकों ने उन्हें उत्तर दिया, “सच मानिए महाराज, हमारे स्वामी जो कुछ कहें वह करने के लिए आपके सेवक तैयार हैं.”
فَخَرَجَ ٱلْمَلِكُ وَجَمِيعُ بَيْتِهِ وَرَاءَهُ. وَتَرَكَ ٱلْمَلِكُ عَشَرَ نِسَاءٍ سَرَارِيَّ لِحِفْظِ ٱلْبَيْتِ. ١٦ 16
तब राजा निकल पड़े और उनके साथ उनका सारा घर-परिवार भी; मगर दावीद ने अपनी दस उपपत्नियों को घर की देखभाल के उद्देश्य से वहीं छोड़ दीं.
وَخَرَجَ ٱلْمَلِكُ وَكُلُّ ٱلشَّعْبِ فِي أَثَرِهِ وَوَقَفُوا عِنْدَ ٱلْبَيْتِ ٱلْأَبْعَدِ. ١٧ 17
राजा अपने घर से निकल पड़े और उनके पीछे-पीछे सारे लोग भी. चलते हुए वे आखिरी घर तक पहुंचकर ठहर गए.
وَجَمِيعُ عَبِيدِهِ كَانُوا يَعْبُرُونَ بَيْنَ يَدَيْهِ مَعَ جَمِيعِ ٱلْجَلَّادِينَ وَٱلسُّعَاةِ وَجَمِيعُ ٱلْجَتِّيِّينَ، سِتُّ مِئَةِ رَجُلٍ أَتَوْا وَرَاءَهُ مِنْ جَتَّ، وَكَانُوا يَعْبُرُونَ بَيْنَ يَدَيِ ٱلْمَلِكِ. ١٨ 18
उनके सारे अधिकारी उनके पास से निकलकर आगे बढ़ गए. ये सभी थे केरेथि, पेलेथी और छः सौ गाथवासी, जो उनके साथ गाथ नगर से आए हुए थे. ये सभी उनके सामने से होकर निकले.
فَقَالَ ٱلْمَلِكُ لِإِتَّايَ ٱلْجَتِّيِّ: «لِمَاذَا تَذْهَبُ أَنْتَ أَيْضًا مَعَنَا؟ اِرْجِعْ وَأَقِمْ مَعَ ٱلْمَلِكِ لِأَنَّكَ غَرِيبٌ وَمَنْفِيٌّ أَيْضًا مِنْ وَطَنِكَ. ١٩ 19
राजा ने गाथ नगरवासी इत्तई से कहा, “आप क्यों हमारे साथ हो लिए हैं? आप लौट जाइए, और अपने राजा का साथ दीजिए. वैसे भी आप विदेशी हैं, अपने स्वदेश से निकाले हुए.
أَمْسًا جِئْتَ وَٱلْيَوْمَ أُتِيهُكَ بِٱلذَّهَابِ مَعَنَا وَأَنَا أَنْطَلِقُ إِلَى حَيْثُ أَنْطَلِقُ؟ اِرْجِعْ وَرَجِّعْ إِخْوَتَكَ. ٱلرَّحْمَةُ وَٱلْحَقُّ مَعَكَ». ٢٠ 20
आप कल ही तो हमारे पास आए हैं. क्या मैं आपको अपने साथ भटकाने के लिए विवश करूं? मुझे तो यही मालूम नहीं मैं किधर जा रहा हूं? आप लौट जाइए, ले जाइए अपने भाइयों को अपने साथ. याहवेह तुम पर अपना अपार प्रेम और विश्वासयोग्यता बनाए रखें.”
فَأَجَابَ إِتَّايُ ٱلْمَلِكَ وَقَالَ: «حَيٌّ هُوَ ٱلرَّبُّ وَحَيٌّ سَيِّدِي ٱلْمَلِكُ، إِنَّهُ حَيْثُمَا كَانَ سَيِّدِي ٱلْمَلِكُ، إِنْ كَانَ لِلْمَوْتِ أَوْ لِلْحَيَاةِ، فَهُنَاكَ يَكُونُ عَبْدُكَ أَيْضًا». ٢١ 21
मगर इत्तई ने राजा को उत्तर दिया, “जीवित याहवेह की शपथ, जहां कहीं महाराज मेरे स्वामी होंगे, चाहे जीवन में अथवा मृत्यु में, आपका सेवक भी वहीं होगा.”
فَقَالَ دَاوُدُ لِإِتَّايَ: «ٱذْهَبْ وَٱعْبُرْ». فَعَبَرَ إِتَّايُ ٱلْجَتِّيُّ وَجَمِيعُ رِجَالِهِ وَجَمِيعُ ٱلْأَطْفَالِ ٱلَّذِينَ مَعَهُ. ٢٢ 22
तब दावीद ने इत्तई से कहा, “जैसी तुम्हारी इच्छा.” तब गाथवासी इत्तई इन सभी व्यक्तियों के साथ शामिल हो गए, इनमें बालक भी शामिल थे.
وَكَانَتْ جَمِيعُ ٱلْأَرْضِ تَبْكِي بِصَوْتٍ عَظِيمٍ، وَجَمِيعُ ٱلشَّعْبِ يَعْبُرُونَ. وَعَبَرَ ٱلْمَلِكُ فِي وَادِي قَدْرُونَ، وَعَبَرَ جَمِيعُ ٱلشَّعْبِ نَحْوَ طَرِيقِ ٱلْبَرِّيَّةِ. ٢٣ 23
जब यह समूह आगे बढ़ रहा था सारा देश ऊंची आवाज में रो रहा था. राजा ने किद्रोन नदी पार की, और वे सब बंजर भूमि की ओर बढ़ गए.
وَإِذَا بِصَادُوقَ أَيْضًا وَجَمِيعُ ٱللَّاوِيِّينَ مَعَهُ يَحْمِلُونَ تَابُوتَ عَهْدِ ٱللهِ. فَوَضَعُوا تَابُوتَ ٱللهِ، وَصَعِدَ أَبِيَاثَارُ حَتَّى ٱنْتَهَى جَمِيعُ ٱلشَّعْبِ مِنَ ٱلْعُبُورِ مِنَ ٱلْمَدِينَةِ. ٢٤ 24
अबीयाथर भी वहां आए और सादोक के साथ सारे लेवी लोग भी. ये अपने साथ परमेश्वर की वाचा का संदूक भी ले आए थे. उन्होंने वाचा के संदूक को उस समय तक भूमि पर रखे रहने दिया जब तक सभी लोग नगर से बाहर न निकल गए.
فَقَالَ ٱلْمَلِكُ لِصَادُوقَ: «أَرْجِعْ تَابُوتَ ٱللهِ إِلَى ٱلْمَدِينَةِ، فَإِنْ وَجَدْتُ نِعْمَةً فِي عَيْنَيِ ٱلرَّبِّ فَإِنَّهُ يُرْجِعُنِي وَيُرِينِي إِيَّاهُ وَمَسْكَنَهُ. ٢٥ 25
इसके बाद राजा ने सादोक को आदेश दिया, “परमेश्वर की वाचा के संदूक को अब नगर लौटा ले जाओ. यदि याहवेह की कृपादृष्टि मुझ पर बनी रही, तो वह मुझे लौटा लाएंगे तब मैं इस संदूक और उनके निवास का दर्शन कर सकूंगा.
وَإِنْ قَالَ هَكَذَا: إِنِّي لَمْ أُسَرَّ بِكَ. فَهَأَنَذَا، فَلْيَفْعَلْ بِي حَسَبَمَا يَحْسُنُ فِي عَيْنَيْهِ». ٢٦ 26
मगर यदि याहवेह यह कहें, ‘तुममें मेरी कोई भी खुशी नहीं,’ तो मैं यही हूं कि वह मेरे साथ वहीं करे, जो उन्हें उचित जान पड़े.”
ثُمَّ قَالَ ٱلْمَلِكُ لِصَادُوقَ ٱلْكَاهِنِ: «أَأَنْتَ رَاءٍ؟ فَٱرْجِعْ إِلَى ٱلْمَدِينَةِ بِسَلَامٍ أَنْتَ وَأَخِيمَعَصُ ٱبْنُكَ وَيُونَاثَانُ بْنُ أَبِيَاثَارَ. ٱبْنَاكُمَا كِلَاهُمَا مَعَكُمَا. ٢٧ 27
तब राजा ने पुरोहित सादोक से कहा, “सुनिए, आप शांतिपूर्वक नगर लौट जाइए, अपने साथ अपने पुत्र अहीमाज़ को और अबीयाथर के पुत्र योनातन को ले जाइए.
ٱنْظُرُوا. أَنِّي أَتَوَانَى فِي سُهُولِ ٱلْبَرِّيَّةِ حَتَّى تَأْتِيَ كَلِمَةٌ مِنْكُمْ لِتَخْبِيرِي». ٢٨ 28
यह ध्यान में रहे: तुमसे सूचना प्राप्‍त होने तक मैं वन में ठहरूंगा.”
فَأَرْجَعَ صَادُوقُ وَأَبِيَاثَارُ تَابُوتَ ٱللهِ إِلَى أُورُشَلِيمَ وَأَقَامَا هُنَاكَ. ٢٩ 29
अबीयाथर परमेश्वर का संदूक लेकर येरूशलेम लौट गए, और वे वहीं ठहरे रहे.
وَأَمَّا دَاوُدُ فَصَعِدَ فِي مِصْعَدِ جَبَلِ ٱلزَّيْتُونِ. كَانَ يَصْعَدُ بَاكِيًا وَرَأْسُهُ مُغَطَّى وَيَمْشِي حَافِيًا، وَجَمِيعُ ٱلشَّعْبِ ٱلَّذِينَ مَعَهُ غَطَّوْا كُلُّ وَاحِدٍ رَأْسَهُ، وَكَانُوا يَصْعَدُونَ وَهُمْ يَبْكُونَ. ٣٠ 30
दावीद ज़ैतून पर्वत की चढ़ाई चढ़ते चले गए वह चलते हुए रोते जा रहे थे. उनका सिर तो ढका हुआ था मगर पांव नंगे. उनके साथ चल रहे हर एक व्यक्ति ने भी अपना अपना सिर ढांक लिया था और वे भी रोते हुए चल रहे थे.
وَأُخْبِرَ دَاوُدُ وَقِيلَ لَهُ: «إِنَّ أَخِيتُوفَلَ بَيْنَ ٱلْفَاتِنِينَ مَعَ أَبْشَالُومَ» فَقَالَ دَاوُدُ: «حَمِّقْ يَارَبُّ مَشُورَةَ أَخِيتُوفَلَ». ٣١ 31
इस अवसर पर किसी ने दावीद को यह सूचना दी. “अहीतोफ़ेल भी अबशालोम के षड़्यंत्रकारियों में शामिल है.” यह सुन दावीद ने प्रार्थना की, “याहवेह, आपसे मेरी प्रार्थना है, अहीतोफ़ेल की सलाह को मूर्खता में बदल दीजिए.”
وَلَمَّا وَصَلَ دَاوُدُ إِلَى ٱلْقِمَّةِ حَيْثُ سَجَدَ لِلهِ، إِذَا بِحُوشَايَ ٱلْأَرْكِيِّ قَدْ لَقِيَهُ مُمَزَّقَ ٱلثَّوْبِ وَٱلتُّرَابُ عَلَى رَأْسِهِ. ٣٢ 32
जब दावीद पर्वत की चोटी पर पहुंच रहे थे, जिस स्थान पर परमेश्वर की आराधना की जाती है, अर्की हुशाई उनसे भेंटकरने आ गया. उसका बाहरी वस्त्र फटे हुए थे और सिर पर धूल पड़ी हुई थी.
فَقَالَ لَهُ دَاوُدُ: «إِذَا عَبَرْتَ مَعِي تَكُونُ عَلَيَّ حِمْلًا. ٣٣ 33
दावीद ने उससे कहा, “सुनो, यदि तुम मेरे साथ चलोगे तो मेरे लिए बोझ बन जाओगे.
وَلَكِنْ إِذَا رَجَعْتَ إِلَى ٱلْمَدِينَةِ وَقُلْتَ لِأَبْشَالُومَ: أَنَا أَكُونُ عَبْدَكَ أَيُّهَا ٱلْمَلِكُ. أَنَا عَبْدُ أَبِيكَ مُنْذُ زَمَانٍ وَٱلْآنَ أَنَا عَبْدُكَ. فَإِنَّكَ تُبْطِلُ لِي مَشُورَةَ أَخِيتُوفَلَ. ٣٤ 34
मगर यदि तुम लौटकर नगर चले जाओ और अबशालोम से कहो, ‘महाराज, मैं अब आपका सेवक हूं; ठीक जिस प्रकार पहले आपके पिता का सेवक था; अब आपका सेवक रहूं,’ तब तुम वहां मेरे पक्ष में अहीतोफ़ेल की युक्ति को विफल कर सकोगे.
أَلَيْسَ مَعَكَ هُنَاكَ صَادُوقُ وَأَبِيَاثَارُ ٱلْكَاهِنَانِ. فَكُلُّ مَا تَسْمَعُهُ مِنْ بَيْتِ ٱلْمَلِكِ، فَأَخْبِرْ بِهِ صَادُوقَ وَأَبِيَاثَارَ ٱلْكَاهِنَيْنِ. ٣٥ 35
तुम्हारे साथ के पुरोहित सादोक और अबीयाथर भी तो वहीं हैं. राजमहल से तुम्हें जो कुछ मालूम होता है, तुम वह पुरोहित सादोक और अबीयाथर को सूचित कर सकते हो.
هُوَذَا هُنَاكَ مَعَهُمَا ٱبْنَاهُمَا أَخِيمَعَصُ لِصَادُوقَ وَيُونَاثَانُ لِأَبِيَاثَارَ. فَتُرْسِلُونَ عَلَى أَيْدِيهِمَا إِلَيَّ كُلَّ كَلِمَةٍ تَسْمَعُونَهَا». ٣٦ 36
याद है न, उनके दो पुत्र वहां उनके साथ हैं—अहीमाज़, सादोक का पुत्र और योनातन, अबीयाथर का पुत्र. तुम्हें वहां जो कुछ मालूम होता है, तुम इनके द्वारा भेज सकते हो.”
فَأَتَى حُوشَايُ صَاحِبُ دَاوُدَ إِلَى ٱلْمَدِينَةِ، وَأَبْشَالُومُ يَدْخُلُ أُورُشَلِيمَ. ٣٧ 37
तब दावीद के मित्र हुशाई नगर में आ गए. अबशालोम भी इस समय येरूशलेम आ चुका था.

< صَمُوئِيلَ ٱلثَّانِي 15 >