< اَلْمُلُوكِ ٱلثَّانِي 18 >

وَفِي ٱلسَّنَةِ ٱلثَّالِثَةِ لِهُوشَعَ بْنِ أَيْلَةَ مَلِكِ إِسْرَائِيلَ مَلَكَ حَزَقِيَّا بْنُ آحَازَ مَلِكِ يَهُوذَا. ١ 1
और शाह — ए इस्राईल होशे' बिन ऐला के तीसरे साल ऐसा हुआ कि शाह — ए — यहूदाह आख़ज़ का बेटा हिज़क़ियाह सल्तनत करने लगा।
كَانَ ٱبْنَ خَمْسٍ وَعِشْرِينَ سَنَةً حِينَ مَلَكَ، وَمَلَكَ تِسْعًا وَعِشْرِينَ سَنَةً فِي أُورُشَلِيمَ، وَٱسْمُ أُمِّهِ أَبِي ٱبْنَةُ زَكَرِيَّا. ٢ 2
जब वह सल्तनत करने लगा तो पच्चीस बरस का था, और उसने उन्तीस बरस येरूशलेम में सल्तनत की। उसकी माँ का नाम अबी था, जो ज़करियाह की बेटी थी।
وَعَمِلَ ٱلْمُسْتَقِيمَ فِي عَيْنَيِ ٱلرَّبِّ حَسَبَ كُلِّ مَا عَمِلَ دَاوُدُ أَبُوهُ. ٣ 3
और जो — जो उसके बाप दाऊद ने किया था, उसने ठीक उसी के मुताबिक़ वह काम किया जो ख़ुदावन्द की नज़र में अच्छा था।
هُوَ أَزَالَ ٱلْمُرْتَفَعَاتِ، وَكَسَّرَ ٱلتَّمَاثِيلَ، وَقَطَّعَ ٱلسَّوَارِيَ، وَسَحَقَ حَيَّةَ ٱلنُّحَاسِ ٱلَّتِي عَمِلَهَا مُوسَى لِأَنَّ بَنِي إِسْرَائِيلَ كَانُوا إِلَى تِلْكَ ٱلْأَيَّامِ يُوقِدُونَ لَهَا وَدَعَوْهَا «نَحُشْتَانَ». ٤ 4
उसने ऊँचे मक़ामों को दूर कर दिया, और सुतूनों को तोड़ा और यसीरत को काट डाला; और उसने पीतल के साँप को जो मूसा ने बनाया था चकनाचूर कर दिया, क्यूँकि बनी — इस्राईल उन दिनों तक उसके आगे ख़ुशबू जलाते थे; और उसने उसका नाम नहुश्तान' रखा।
عَلَى ٱلرَّبِّ إِلَهِ إِسْرَائِيلَ ٱتَّكَلَ، وَبَعْدَهُ لَمْ يَكُنْ مِثْلُهُ فِي جَمِيعِ مُلُوكِ يَهُوذَا وَلَا فِي ٱلَّذِينَ كَانُوا قَبْلَهُ. ٥ 5
वह ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा पर भरोसा करता था, ऐसा कि उसके बाद यहूदाह के सब बादशाहों में उसकी तरह एक न हुआ, और न उससे पहले कोई हुआ था।
وَٱلْتَصَقَ بِٱلرَّبِّ وَلَمْ يَحِدْ عَنْهُ، بَلْ حَفِظَ وَصَايَاهُ ٱلَّتِي أَمَرَ بِهَا ٱلرَّبُّ مُوسَى. ٦ 6
क्यूँकि वह ख़ुदावन्द से लिपटा रहा और उसकी पैरवी करने से बाज़ न आया; बल्कि उसके हुक्मों को माना जिनको ख़ुदावन्द ने मूसा को दिया था।
وَكَانَ ٱلرَّبُّ مَعَهُ، وَحَيْثُمَا كَانَ يَخْرُجُ كَانَ يَنْجَحُ. وَعَصَى عَلَى مَلِكِ أَشُّورَ وَلَمْ يَتَعَبَّدْ لَهُ. ٧ 7
और ख़ुदावन्द उसके साथ रहा और जहाँ कहीं वह गया कामयाब हुआ; और वह शाह — ए — असूर से फिर गया और उसकी पैरवी न की।
هُوَ ضَرَبَ ٱلْفِلِسْطِينِيِّينَ إِلَى غَزَّةَ وَتُخُومِهَا، مِنْ بُرْجِ ٱلنَّوَاطِيرِ إِلَى ٱلْمَدِينَةِ ٱلْمُحَصَّنَةِ. ٨ 8
उसने फ़िलिस्तियों को ग़ज़्ज़ा और उसकी सरहदों तक, निगहबानों के बुर्ज से फ़सीलदार शहर तक मारा।
وَفِي ٱلسَّنَةِ ٱلرَّابِعَةِ لِلْمَلِكِ حَزَقِيَّا، وَهِيَ ٱلسَّنَةُ ٱلسَّابِعَةُ لِهُوشَعَ بْنِ أَيْلَةَ مَلِكِ إِسْرَائِيلَ، صَعِدَ شَلْمَنْأَسَرُ مَلِكُ أَشُّورَ عَلَى ٱلسَّامِرَةِ وَحَاصَرَهَا. ٩ 9
हिज़क़ियाह बादशाह के चौथे बरस जो शाह — ए — इस्राईल हूसे'अ — बिन — ऐला का सातवाँ बरस था, ऐसा हुआ कि शाह — ए — असूर सलमनसर ने सामरिया पर चढ़ाई की, और उसको घेर लिया।
وَأَخَذُوهَا فِي نِهَايَةِ ثَلَاثِ سِنِينَ. فَفِي ٱلسَّنَةِ ٱلسَّادِسَةِ لِحَزَقِيَّا، وَهِيَ ٱلسَّنَةُ ٱلتَّاسِعَةُ لِهُوشَعَ مَلِكِ إِسْرَائِيلَ، أُخِذَتِ ٱلسَّامِرَةُ. ١٠ 10
और तीन साल के आख़िर में उन्होंने उसको ले लिया; या'नी हिज़क़ियाह के छठे साल जो शाह — ए — इस्राईल हूसे'अ का नौवाँ बरस था, सामरिया ले लिया गया।
وَسَبَى مَلِكُ أَشُّورَ إِسْرَائِيلَ إِلَى أَشُّورَ، وَوَضَعَهُمْ فِي حَلَحَ وَخَابُورَ نَهْرِ جُوزَانَ وَفِي مُدُنِ مَادِي، ١١ 11
और शाह — ए — असूर इस्राईल को ग़ुलाम करके असूर को ले गया, और उनको ख़लह में और जौज़ान की नदी ख़ाबूर पर, और मादियों के शहरों में रख्खा,
لِأَنَّهُمْ لَمْ يَسْمَعُوا لِصَوْتِ ٱلرَّبِّ إِلَهِهِمْ، بَلْ تَجَاوَزُوا عَهْدَهُ وَكُلَّ مَا أَمَرَ بِهِ مُوسَى عَبْدُ ٱلرَّبِّ، فَلَمْ يَسْمَعُوا وَلَمْ يَعْمَلُوا. ١٢ 12
इसलिए कि उन्होंने ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की बात न मानी, बल्कि उसके 'अहद को या'नी उन सब बातों को जिनका हुक्म ख़ुदा के बन्दे मूसा ने दिया था मुख़ालिफ़त की, और न उनको सुना न उन पर 'अमल किया।
وَفِي ٱلسَّنَةِ ٱلرَّابِعَةَ عَشْرَةَ لِلْمَلِكِ حَزَقِيَّا، صَعِدَ سَنْحَارِيبُ مَلِكُ أَشُّورَ عَلَى جَمِيعِ مُدُنِ يَهُوذَا ٱلْحَصِينَةِ وَأَخَذَهَا. ١٣ 13
हिज़क़ियाह बादशाह के चौदहवें बरस शाह — ए — असूर सनहेरिब ने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों पर चढ़ाई की और उनको ले लिया।
وَأَرْسَلَ حَزَقِيَّا مَلِكُ يَهُوذَا إِلَى مَلِكِ أَشُّورَ إِلَى لَخِيشَ يَقُولُ: «قَدْ أَخْطَأْتُ. ٱرْجِعْ عَنِّي، وَمَهْمَا جَعَلْتَ عَلَيَّ حَمَلْتُهُ». فَوَضَعَ مَلِكُ أَشُّورَ عَلَى حَزَقِيَّا مَلِكِ يَهُوذَا ثَلَاثَ مِئَةِ وَزْنَةٍ مِنَ ٱلْفِضَّةِ وَثَلَاثِينَ وَزْنَةً مِنَ ٱلذَّهَبِ. ١٤ 14
और शाह — ए — यहूदाह हिज़क़ियाह ने शाह — ए — असूर को लकीस में कहला भेजा, “मुझ से ख़ता हुई, मेरे पास से लौट जा; जो कुछ तू मेरे सिर करे मैं उसे उठाऊँगा।” इसलिए शाह — ए — असूर ने तीन सौ क़िन्तार चाँदी और तीस क़िन्तार सोना शाह — ए — यहूदाह हिज़क़ियाह के ज़िम्मे लगाया।
فَدَفَعَ حَزَقِيَّا جَمِيعَ ٱلْفِضَّةِ ٱلْمَوْجُودَةِ فِي بَيْتِ ٱلرَّبِّ وَفِي خَزَائِنِ بَيْتِ ٱلْمَلِكِ. ١٥ 15
और हिज़क़ियाह ने सारी चाँदी जो ख़ुदावन्द के घर और शाही महल के ख़ज़ानों में मिली उसे दे दी।
فِي ذَلِكَ ٱلزَّمَانِ قَشَّرَ حَزَقِيَّا ٱلذَّهَبَ عَنْ أَبْوَابِ هَيْكَلِ ٱلرَّبِّ وَٱلدَّعَائِمِ ٱلَّتِي كَانَ قَدْ غَشَّاهَا حَزَقِيَّا مَلِكُ يَهُوذَا، وَدَفَعَهُ لِمَلِكِ أَشُّورَ. ١٦ 16
उस वक़्त हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द की हैकल के दरवाज़ों का और उन सुतूनों पर का सोना, जिनको शाह — ए — यहूदाह हिज़क़ियाह ने ख़ुद मंढ़वाया था, उतरवा कर शाह — ए — असूर को दे दिया।
وَأَرْسَلَ مَلِكُ أَشُّورَ تَرْتَانَ وَرَبْسَارِيسَ وَرَبْشَاقَى مِنْ لَخِيشَ إِلَى ٱلْمَلِكِ حَزَقِيَّا بِجَيْشٍ عَظِيمٍ إِلَى أُورُشَلِيمَ، فَصَعِدُوا وَأَتَوْا إِلَى أُورُشَلِيمَ. وَلَمَّا صَعِدُوا جَاءُوا وَوَقَفُوا عِنْدَ قَنَاةِ ٱلْبِرْكَةِ ٱلْعُلْيَا ٱلَّتِي فِي طَرِيقِ حَقْلِ ٱلْقَصَّارِ. ١٧ 17
फिर भी शाह — ए — असूर ने तरतान और रब सारिस और रबशाक़ी को लकीस से बड़े लश्कर के साथ हिज़क़ियाह बादशाह के पास येरूशलेम को भेजा। इसलिए वह चले और येरूशलेम को आए, और जब वहाँ पहुँचे तो जाकर ऊपर के तालाब की नाली के पास, जो धोबियों के मैदान के रास्ते पर है, खड़े हो गए।
وَدَعَوْا ٱلْمَلِكَ، فَخَرَجَ إِلَيْهِمْ أَلِيَاقِيمُ بْنُ حِلْقِيَّا ٱلَّذِي عَلَى ٱلْبَيْتِ وَشِبْنَةُ ٱلْكَاتِبُ وَيُواخُ بْنُ آسَافَ ٱلْمُسَجِّلُ. ١٨ 18
और जब उन्होंने बादशाह को पुकारा, तो इलियाक़ीम — बिन — ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था और शबनाह मुन्शी और आसफ़ मुहर्रिर का बेटा यूआख़ उनके पास निकल कर आए।
فَقَالَ لَهُمْ رَبْشَاقَى: «قُولُوا لِحَزَقِيَّا: هَكَذَا يَقُولُ ٱلْمَلِكُ ٱلْعَظِيمُ مَلِكُ أَشُّورَ: مَا ٱلِٱتِّكَالُ ٱلَّذِي ٱتَّكَلْتَ؟ ١٩ 19
और रबशाक़ी ने उनसे कहा, “तुम हिज़क़ियाह से कहो, कि मलिक — ए — मुअज़्ज़म शाह — ए — असूर यूँ फ़रमाता है, 'तू क्या भरोसा किए बैठा है?
قُلْتَ إِنَّمَا كَلَامُ ٱلشَّفَتَيْنِ هُوَ مَشُورَةٌ وَبَأْسٌ لِلْحَرْبِ. وَٱلْآنَ عَلَى مَنِ ٱتَّكَلْتَ حَتَّى عَصَيْتَ عَلَيَّ؟ ٢٠ 20
तू कहता तो है, लेकिन ये सिर्फ़ बातें ही बातें हैं कि जंग की मसलहत भी है और हौसला भी। आख़िर किसके भरोसे पर तू ने मुझ से सरकशी की है?
فَٱلْآنَ هُوَذَا قَدِ ٱتَّكَلْتَ عَلَى عُكَّازِ هَذِهِ ٱلْقَصَبَةِ ٱلْمَرْضُوضَةِ، عَلَى مِصْرَ، ٱلَّتِي إِذَا تَوَكَّأَ أَحَدٌ عَلَيْهَا، دَخَلَتْ فِي كَفِّهِ وَثَقَبَتْهَا! هَكَذَا هُوَ فِرْعَوْنُ مَلِكُ مِصْرَ لِجَمِيعِ ٱلْمُتَّكِلِينَ عَلَيْهِ. ٢١ 21
देख, तुझे इस मसले हुए सरकण्डे के 'असा या'नी मिस्र पर भरोसा है; उस पर अगर कोई टेक लगाए, तो वह उसके हाथ में गड़ जाएगा और उसे छेद देगा।” शाह — ए — मिस्र फ़िर'औन उन सब के लिए जो उस पर भरोसा करते हैं, ऐसा ही है।
وَإِذَا قُلْتُمْ لِي: عَلَى ٱلرَّبِّ إِلَهِنَا ٱتَّكَلْنَا، أَفَلَيْسَ هُوَ ٱلَّذِي أَزَالَ حَزَقِيَّا مُرْتَفَعَاتِهِ وَمَذَابِحَهُ، وَقَالَ لِيَهُوذَا وَلِأُورُشَلِيمَ: أَمَامَ هَذَا ٱلْمَذْبَحِ تَسْجُدُونَ فِي أُورُشَلِيمَ؟ ٢٢ 22
और अगर तुम मुझ से कहो कि हमारा भरोसा ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा पर है, तो क्या वह वही नहीं है, जिसके ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को हिज़क़ियाह ने दूर करके यहूदाह और येरूशलेम से कहा है, कि तुम येरूशलेम में इस मज़बह के आगे सिज्दा किया करो?'
وَٱلْآنَ رَاهِنْ سَيِّدِي مَلِكَ أَشُّورَ، فَأُعْطِيَكَ أَلْفَيْ فَرَسٍ إِنْ كُنْتَ تَقْدِرُ أَنْ تَجْعَلَ عَلَيْهَا رَاكِبِينَ. ٢٣ 23
इसलिए अब ज़रा मेरे आक़ा शाह — ए — असूर के साथ शर्त बाँध और मैं तुझे दो हज़ार घोड़े दूँगा, बशर्ते कि तू अपनी तरफ़ से उन पर सवार चढ़ा सके।
فَكَيْفَ تَرُدُّ وَجْهَ وَالٍ وَاحِدٍ مِنْ عَبِيدِ سَيِّدِي ٱلصِّغَارِ، وَتَتَّكِلُ عَلَى مِصْرَ لِأَجْلِ مَرْكَبَاتٍ وَفُرْسَانٍ؟ ٢٤ 24
भला फिर तू क्यूँकर मेरे आक़ा के अदना मुलाज़िमों में से एक सरदार का भी मुँह फेर सकता है, और रथों और सवारों के लिए मिस्र पर भरोसा रखता है?
وَٱلْآنَ هَلْ بِدُونِ ٱلرَّبِّ صَعِدْتُ عَلَى هَذَا ٱلْمَوْضِعِ لِأَخْرِبَهُ؟ اَلرَّبُّ قَالَ لِي ٱصْعَدْ عَلَى هَذِهِ ٱلْأَرْضِ وَٱخْرِبْهَا». ٢٥ 25
और क्या अब मैंने ख़ुदावन्द के बिना कहे ही इस मक़ाम को ग़ारत करने के लिए इस पर चढ़ाई की है? ख़ुदावन्द ही ने मुझ से कहा कि इस मुल्क पर चढ़ाई कर और इसे बर्बाद कर दे।”
فَقَالَ أَلِيَاقِيمُ بْنُ حِلْقِيَّا وَشِبْنَةُ وَيُواخُ لِرَبْشَاقَى: «كَلِّمْ عَبِيدَكَ بِٱلْأَرَامِيِّ لِأَنَّنَا نَفْهَمُهُ، وَلَا تُكَلِّمْنَا بِٱلْيَهُودِيِّ فِي مَسَامِعِ ٱلشَّعْبِ ٱلَّذِينَ عَلَى ٱلسُّورِ». ٢٦ 26
तब इलियाक़ीम — बिन — ख़िलक़ियाह, और शबनाह, और यूआख़ ने रबशाक़ी से अर्ज़ की कि “अपने ख़ादिमों से अरामी ज़बान में बात कर, क्यूँकि हम उसे समझते हैं; और उन लोगों के सुनते हुए जो दीवार पर हैं, यहूदियों की ज़बान में बातें न कर।”
فَقَالَ لَهُمْ رَبْشَاقَى: «هَلْ إِلَى سَيِّدِكَ وَإِلَيْكَ أَرْسَلَنِي سَيِّدِي لِكَيْ أَتَكَلَّمَ بِهَذَا ٱلْكَلَامِ؟ أَلَيْسَ إِلَى ٱلرِّجَالِ ٱلْجَالِسِينَ عَلَى ٱلسُّورِ لِيَأْكُلُوا عَذِرَتَهُمْ وَيَشْرَبُوا بَوْلَهُمْ مَعَكُمْ؟» ٢٧ 27
लेकिन रबशाक़ी ने उनसे कहा, “क्या मेरे आक़ा ने मुझे ये बातें कहने को तेरे आक़ा के पास, या तेरे पास भेजा है? क्या उसने मुझे उन लोगों के पास नहीं भेजा, जो तुम्हारे साथ अपनी ही नजासत खाने और अपना ही क़ारूरा पीने को दीवार पर बैठे हैं?”
ثُمَّ وَقَفَ رَبْشَاقَى وَنَادَى بِصَوْتٍ عَظِيمٍ بِٱلْيَهُودِيِّ وَتَكَلَّمَ قَائِلًا: «ٱسْمَعُوا كَلَامَ ٱلْمَلِكِ ٱلْعَظِيمِ مَلِكِ أَشُّورَ. ٢٨ 28
फिर रबशाक़ी खड़ा हो गया और यहूदियों की ज़बान में बलन्द आवाज़ से ये कहने लगा, “मलिक — ए — मुअज़्ज़म शाह — ए — असूर का कलाम सुनो,
هَكَذَا يَقُولُ ٱلْمَلِكُ: لَا يَخْدَعْكُمْ حَزَقِيَّا، لِأَنَّهُ لَا يَقْدِرُ أَنْ يُنْقِذَكُمْ مِنْ يَدِهِ، ٢٩ 29
बादशाह यूँ फ़रमाता है, 'हिज़क़ियाह तुम को धोका न दे, क्यूँकि वह तुम को उसके हाथ से छुड़ा न सकेगा।
وَلَا يَجْعَلْكُمْ حَزَقِيَّا تَتَّكِلُونَ عَلَى ٱلرَّبِّ قَائِلًا: إِنْقَاذًا يُنْقِذُنَا ٱلرَّبُّ وَلَا تُدْفَعُ هَذِهِ ٱلْمَدِينَةُ إِلَى يَدِ مَلِكِ أَشُّورَ. ٣٠ 30
और न हिज़क़ियाह ये कहकर तुम से ख़ुदावन्द पर भरोसा कराए, कि ख़ुदावन्द ज़रूर हमको छुड़ाएगा और ये शहर शाह — ए — असूर के हवाले न होगा।
لَا تَسْمَعُوا لِحَزَقِيَّا. لِأَنَّهُ هَكَذَا يَقُولُ مَلِكُ أَشُّورَ: ٱعْقِدُوا مَعِي صُلْحًا، وَٱخْرُجُوا إِلَيَّ، وَكُلُوا كُلُّ وَاحِدٍ مِنْ جَفْنَتِهِ وَكُلُّ وَاحِدٍ مِنْ تِينَتِهِ، وَٱشْرَبُوا كُلُّ وَاحِدٍ مَاءَ بِئْرِهِ ٣١ 31
हिज़क़ियाह की न सुनो। क्यूँकि शाह — ए — असूर यूँ फ़रमाता है कि तुम मुझसे सुलह कर लो और निकलकर मेरे पास आओ, और तुम में से हर एक अपनी ताक और अपने अंजीर के दरख्त़ का फल खाता और अपने हौज़ का पानी पीता रहे।
حَتَّى آتِيَ وَآخُذَكُمْ إِلَى أَرْضٍ كَأَرْضِكُمْ، أَرْضَ حِنْطَةٍ وَخَمْرٍ، أَرْضَ خُبْزٍ وَكُرُومٍ، أَرْضَ زَيْتُونٍ وَعَسَلٍ وَٱحْيَوْا وَلَا تَمُوتُوا. وَلَا تَسْمَعُوا لِحَزَقِيَّا لِأَنَّهُ يَغُرُّكُمْ قَائِلًا: ٱلرَّبُّ يُنْقِذُنَا. ٣٢ 32
जब तक मैं आकर तुम को ऐसे मुल्क में न ले जाऊँ, जो तुम्हारे मुल्क की तरह ग़ल्ला और मय का मुल्क, रोटी और ताकिस्तानों का मुल्क, ज़ैतूनी तेल और शहद का मुल्क है; ताकि तुम जीते रहो, और मर न जाओ; इसलिए हिज़क़ियाह की न सुनना, जब वह तुमको ये ता'लीम दे कि ख़ुदावन्द हमको छुड़ाएगा।
هَلْ أَنْقَذَ آلِهَةُ ٱلْأُمَمِ كُلُّ وَاحِدٍ أَرْضَهُ مِنْ يَدِ مَلِكِ أَشُّورَ؟ ٣٣ 33
क्या क़ौमों के मा'बूदों में से किसी ने अपने मुल्क को शाह — ए — असूर के हाथ से छुड़ाया है?
أَيْنَ آلِهَةُ حَمَاةَ وَأَرْفَادَ؟ أَيْنَ آلِهَةُ سَفَرْوَايِمَ وَهَيْنَعَ وَعِوَّا؟ هَلْ أَنْقَذُوا ٱلسَّامِرَةَ مِنْ يَدِي؟ ٣٤ 34
हमात और अरफ़ाद के मा'बूद कहाँ हैं? और सिफ़वाइम और हेना' और इवाह के मा'बूद कहाँ हैं? क्या उन्होंने सामरिया को मेरे हाथ से बचा लिया?
مَنْ مِنْ كُلِّ آلِهَةِ ٱلْأَرَاضِي أَنْقَذَ أَرْضَهُمْ مِنْ يَدِي، حَتَّى يُنْقِذَ ٱلرَّبُّ أُورُشَلِيمَ مِنْ يَدِي؟». ٣٥ 35
और मुल्कों के तमाम मा'बूदों में से किस — किस ने अपना मुल्क मेरे हाथ से छुड़ा लिया, जो यहोवा येरूशलेम को मेरे हाथ से छुड़ा लेगा?”
فَسَكَتَ ٱلشَّعْبُ وَلَمْ يُجِيبُوهُ بِكَلِمَةٍ، لِأَنَّ أَمْرَ ٱلْمَلِكِ كَانَ قَائِلًا: «لَا تُجِيبُوهُ». ٣٦ 36
लेकिन लोग ख़ामोश रहे और उसके जवाब में एक बात भी न कही, क्यूँकि बादशाह का हुक्म यह था कि उसे जवाब न देना।
فَجَاءَ أَلِيَاقِيمُ بْنُ حِلْقِيَّا ٱلَّذِي عَلَى ٱلْبَيْتِ وَشِبْنَةُ ٱلْكَاتِبُ وَيُوَاخُ بْنُ آسَافَ ٱلْمُسَجِّلُ إِلَى حَزَقِيَّا وَثِيَابُهُمْ مُمَزَّقَةٌ، فَأَخْبَرُوهُ بِكَلَامِ رَبْشَاقَى. ٣٧ 37
तब इलियाक़ीम — बिन — ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था, और शबनाह मुन्शी, और यूआख़ बिन — आसफ़ मुहर्रिर अपने कपड़े चाक किए हुए हिज़क़ियाह के पास आए और रबशाक़ी की बातें उसे सुनाई।

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