< ٢ كورنثوس 7 >

فَإِذْ لَنَا هَذِهِ ٱلْمَوَاعِيدُ أَيُّهَا ٱلْأَحِبَّاءُ لِنُطَهِّرْ ذَوَاتِنَا مِنْ كُلِّ دَنَسِ ٱلْجَسَدِ وَٱلرُّوحِ، مُكَمِّلِينَ ٱلْقَدَاسَةَ فِي خَوْفِ ٱللهِ. ١ 1
पस ऐ' अज़ीज़ो चुँकि हम से ऐसे वा'दे किए गए, आओ हम अपने आपको हर तरह की जिस्मानी और रूहानी आलूदगी से पाक करें और ख़ुदा के बेख़ौफ़ के साथ पाकीज़गी को कमाल तक पहुँचाए।
اِقْبَلُونَا. لَمْ نَظْلِمْ أَحَدًا. لَمْ نُفْسِدْ أَحَدًا. لَمْ نَطْمَعْ فِي أَحَدٍ. ٢ 2
हम को अपने दिल में जगह दो हम ने किसी से बेइन्साफ़ी नहीं की किसी को नहीं बिगाड़ा किसी से दग़ा नहीं की।
لَا أَقُولُ هَذَا لِأَجْلِ دَيْنُونَةٍ، لِأَنِّي قَدْ قُلْتُ سَابِقًا إِنَّكُمْ فِي قُلُوبِنَا، لِنَمُوتَ مَعَكُمْ وَنَعِيشَ مَعَكُمْ. ٣ 3
मैं तुम्हें मुजरिम ठहराने के लिए ये नहीं कहता क्यूँकि पहले ही कह चुका हूँ कि तुम हमारे दिलों में ऐसे बस गए हो कि हम तुम एक साथ मरें और जिएँ।
لِي ثِقَةٌ كَثِيرَةٌ بِكُمْ. لِي ٱفْتِخَارٌ كَثِيرٌ مِنْ جِهَتِكُمْ. قَدِ ٱمْتَلَأْتُ تَعْزِيَةً وَٱزْدَدْتُ فَرَحًا جِدًّا فِي جَمِيعِ ضِيقَاتِنَا. ٤ 4
मैं तुम से बड़ी दिलेरी के साथ बातें करता हूँ मुझे तुम पर बड़ा फ़ख़्र है मुझको पूरी तसल्ली हो गई है; जितनी मुसीबतें हम पर आती हैं उन सब में मेरा दिल ख़ुशी से लबरेज़ रहता है।
لِأَنَّنَا لَمَّا أَتَيْنَا إِلَى مَكِدُونِيَّةَ لَمْ يَكُنْ لِجَسَدِنَا شَيْءٌ مِنَ ٱلرَّاحَةِ بَلْ كُنَّا مُكْتَئِبِينَ فِي كُلِّ شَيْءٍ: مِنْ خَارِجٍ خُصُومَاتٌ، مِنْ دَاخِلٍ مَخَاوِفٌ. ٥ 5
क्यूँकि जब हम मकिदुनिया में आए उस वक़्त भी हमारे जिस्म को चैन न मिला बल्कि हर तरफ़ से मुसीबत में गिरफ़्तार रहे बाहर लड़ाइयाँ थीं और अन्दर दहशतें।
لَكِنَّ ٱللهَ ٱلَّذِي يُعَزِّي ٱلْمُتَّضِعِينَ عَزَّانَا بِمَجِيءِ تِيطُسَ. ٦ 6
तोभी आजिज़ों को तसल्ली बख़्शने वाले या'नी ख़ुदा ने तितुस के आने से हम को तसल्ली बख़्शी।
وَلَيْسَ بِمَجِيئِهِ فَقَطْ بَلْ أَيْضًا بِٱلتَّعْزِيَةِ ٱلَّتِي تَعَزَّى بِهَا بِسَبَبِكُمْ، وَهُوَ يُخْبِرُنَا بِشَوْقِكُمْ وَنَوْحِكُمْ وَغَيْرَتِكُمْ لِأَجْلِي، حَتَّى إِنِّي فَرِحْتُ أَكْثَرَ. ٧ 7
और न सिर्फ़ उसके आने से बल्कि उसकी उस तसल्ली से भी जो उसको तुम्हारी तरफ़ से हुई और उसने तुम्हारा इश्तियाक़ तुम्हारा ग़म और तुम्हारा जोश जो मेरे बारे में था हम से बयान किया जिस से मैं और भी ख़ुश हुआ।
لِأَنِّي وَإِنْ كُنْتُ قَدْ أَحْزَنْتُكُمْ بِٱلرِّسَالَةِ لَسْتُ أَنْدَمُ، مَعَ أَنِّي نَدِمْتُ، فَإِنِّي أَرَى أَنَّ تِلْكَ ٱلرِّسَالَةَ أَحْزَنَتْكُمْ وَلَوْ إِلَى سَاعَةٍ. ٨ 8
गरचे, मैंने तुम को अपने ख़त से ग़मगीन किया मगर उससे पछताता नहीं अगरचे पहले पछताता था चुनाँचे देखता हूँ कि उस ख़त से तुम को ग़म हुआ गरचे थोड़े ही अर्से तक रहा।
اَلْآنَ أَنَا أَفْرَحُ، لَا لِأَنَّكُمْ حَزِنْتُمْ، بَلْ لِأَنَّكُمْ حَزِنْتُمْ لِلتَّوْبَةِ. لِأَنَّكُمْ حَزِنْتُمْ بِحَسَبِ مَشِيئَةِ ٱللهِ لِكَيْ لَا تَتَخَسَّرُوا مِنَّا فِي شَيْءٍ. ٩ 9
अब मैं इसलिए ख़ुश नहीं हूँ कि तुम को ग़म हुआ, बल्कि इस लिए कि तुम्हारे ग़म का अन्जाम तौबा हुआ क्यूँकि तुम्हारा ग़म ख़ुदा परस्ती का था, ताकि तुम को हमारी तरफ़ से किसी तरह का नुक़्सान न हो।
لِأَنَّ ٱلْحُزْنَ ٱلَّذِي بِحَسَبِ مَشِيئَةِ ٱللهِ يُنْشِئُ تَوْبَةً لِخَلَاصٍ بِلَا نَدَامَةٍ، وَأَمَّا حُزْنُ ٱلْعَالَمِ فَيُنْشِئُ مَوْتًا. ١٠ 10
क्यूँकि ख़ुदा परस्ती का ग़म ऐसी तौबा पैदा करता है; जिसका अन्जाम नजात है और उस से पछताना नहीं पड़ता मगर दुनिया का ग़म मौत पैदा करता है।
فَإِنَّهُ هُوَذَا حُزْنُكُمْ هَذَا عَيْنُهُ بِحَسَبِ مَشِيئَةِ ٱللهِ، كَمْ أَنْشَأَ فِيكُمْ: مِنَ ٱلِٱجْتِهَادِ، بَلْ مِنَ ٱلِٱحْتِجَاجِ، بَلْ مِنَ ٱلْغَيْظِ، بَلْ مِنَ ٱلْخَوْفِ، بَلْ مِنَ ٱلشَّوْقِ، بَلْ مِنَ ٱلْغَيْرَةِ، بَلْ مِنَ ٱلِٱنْتِقَامِ. فِي كُلِّ شَيْءٍ أَظْهَرْتُمْ أَنْفُسَكُمْ أَنَّكُمْ أَبْرِيَاءُ فِي هَذَا ٱلْأَمْرِ. ١١ 11
पस देखो इसी बात ने कि तुम ख़ुदा परस्ती के तौर पर ग़मगीन हुए तो मैं किस क़दर सरगर्मी और उज़्र और ख़फ़ा और ख़ौफ़ और इश्तियाक़ और जोश और इन्तिक़ाम पैदा किया; तुम ने हर तरह से साबित कर दिखाया कि तुम इस काम में बरी हो।
إِذًا وَإِنْ كُنْتُ قَدْ كَتَبْتُ إِلَيْكُمْ، فَلَيْسَ لِأَجْلِ ٱلْمُذْنِبِ وَلَا لِأَجْلِ ٱلْمُذْنَبِ إِلَيْهِ، بَلْ لِكَيْ يَظْهَرَ لَكُمْ أَمَامَ ٱللهِ ٱجْتِهَادُنَا لِأَجْلِكُمْ. ١٢ 12
पस अगरचे मैंने तुम को लिखा था मगर न उसके बारे में लिखा जिसने बे इन्साफ़ी की और न उसके ज़रिए जिस पर बे इन्साफ़ी हुई बल्कि इस लिए कि तुम्हारी सरगर्मी जो हमारे वास्ते है ख़ुदा के हुज़ूर तुम पर ज़ाहिर हो जाए।
مِنْ أَجْلِ هَذَا قَدْ تَعَزَّيْنَا بِتَعْزِيَتِكُمْ. وَلَكِنْ فَرِحْنَا أَكْثَرَ جِدًّا بِسَبَبِ فَرَحِ تِيطُسَ، لِأَنَّ رُوحَهُ قَدِ ٱسْتَرَاحَتْ بِكُمْ جَمِيعًا. ١٣ 13
इसी लिए हम को तसल्ली हुई है और हमारी इस तसल्ली में हम को तितुस की ख़ुशी की वजह से और भी ज़्यादा ख़ुशी हुई क्यूँकि तुम सब के ज़रिए उसकी रूह फिर ताज़ा हो गई।
فَإِنِّي إِنْ كُنْتُ ٱفْتَخَرْتُ شَيْئًا لَدَيْهِ مِنْ جِهَتِكُمْ لَمْ أُخْجَلْ، بَلْ كَمَا كَلَّمْنَاكُمْ بِكُلِّ شَيْءٍ بِٱلصِّدْقِ، كَذَلِكَ ٱفْتِخَارُنَا أَيْضًا لَدَى تِيطُسَ صَارَ صَادِقًا. ١٤ 14
और अगर मैंने उसके सामने तुम्हारे बारे में कुछ फ़ख़्र किया तो शर्मिन्दा न हुआ बल्कि जिस तरह हम ने सब बातें तुम से सच्चाई से कहीं उसी तरह जो फ़ख़्र हम ने तितुस के सामने किया वो भी सच निकला।
وَأَحْشَاؤُهُ هِيَ نَحْوَكُمْ بِٱلزِّيَادَةِ، مُتَذَكِّرًا طَاعَةَ جَمِيعِكُمْ، كَيْفَ قَبِلْتُمُوهُ بِخَوْفٍ وَرِعْدَةٍ. ١٥ 15
और जब उसको तुम सब की फ़रमाबरदारी याद आती है कि तुम किस तरह डरते और काँपते हुए उस से मिले तो उसकी दिली मुहब्बत तुम से और भी ज़्यादा होती जाती है।
أَنَا أَفْرَحُ إِذًا أَنِّي أَثِقُ بِكُمْ فِي كُلِّ شَيْءٍ. ١٦ 16
मैं ख़ुश हूँ कि हर बात में तुम्हारी तरफ़ से मुतमईन हूँ।

< ٢ كورنثوس 7 >