< ٢ كورنثوس 12 >

إِنَّهُ لَا يُوافِقُنِي أَنْ أَفْتَخِرَ. فَإِنِّي آتِي إِلَى مَنَاظِرِ ٱلرَّبِّ وَإِعْلَانَاتِهِ. ١ 1
मुझे फ़ख़्र करना ज़रूरी हुआ अगरचे मुफ़ीद नहीं पस जो रोया और मुक़ाशिफ़ा ख़ुदावन्द की तरफ़ से इनायत हुआ उनका मैं ज़िक्र करता हूँ।
أَعْرِفُ إِنْسَانًا فِي ٱلْمَسِيحِ قَبْلَ أَرْبَعَ عَشْرَةَ سَنَةً. أَفِي ٱلْجَسَدِ؟ لَسْتُ أَعْلَمُ، أَمْ خَارِجَ ٱلْجَسَدِ؟ لَسْتُ أَعْلَمُ. ٱللهُ يَعْلَمُ. ٱخْتُطِفَ هَذَا إِلَى ٱلسَّمَاءِ ٱلثَّالِثَةِ. ٢ 2
मैं मसीह में एक शख़्स को जानता हूँ चौदह बरस हुए कि वो यकायक तीसरे आसमान तक उठा लिया गया न मुझे ये मा'लूम कि बदन समेत न ये मा'लूम कि बग़ैर बदन के ये ख़ुदा को मा'लूम है।
وَأَعْرِفُ هَذَا ٱلْإِنْسَانَ - أَفِي ٱلْجَسَدِ أَمْ خَارِجَ ٱلْجَسَدِ؟ لَسْتُ أَعْلَمُ. ٱللهُ يَعْلَمُ- ٣ 3
और मैं ये भी जानता हूँ कि उस शख़्स ने बदन समेत या बग़ैर बदन के ये मुझे मा'लूम नहीं ख़ुदा को मा'लूम है।
أَنَّهُ ٱخْتُطِفَ إِلَى ٱلْفِرْدَوْسِ، وَسَمِعَ كَلِمَاتٍ لَا يُنْطَقُ بِهَا، وَلَا يَسُوغُ لِإِنْسَانٍ أَنْ يَتَكَلَّمَ بِهَا. ٤ 4
यकायक फ़िरदौस में पहुँचकर ऐसी बातें सुनी जो कहने की नहीं और जिनका कहना आदमी को रवा नहीं।
مِنْ جِهَةِ هَذَا أَفْتَخِرُ. وَلَكِنْ مِنْ جِهَةِ نَفْسِي لَا أَفْتَخِرُ إِلَّا بِضَعَفَاتِي. ٥ 5
मैं ऐसे शख़्स पर तो फ़ख़्र करूँगा लेकिन अपने आप पर सिवा अपनी कमज़ोरी के फ़ख़्र करूँगा।
فَإِنِّي إِنْ أَرَدْتُ أَنْ أَفْتَخِرَ لَا أَكُونُ غَبِيًّا، لِأَنِّي أَقُولُ ٱلْحَقَّ. وَلَكِنِّي أَتَحَاشَى لِئَلَّا يَظُنَّ أَحَدٌ مِنْ جِهَتِي فَوْقَ مَا يَرَانِي أَوْ يَسْمَعُ مِنِّي. ٦ 6
और अगर फ़ख़्र करना चाहूँ भी तो बेवक़ूफ़ न ठहरूँगा इसलिए कि सच बोलूँगा मगर तोभी बा'ज़ रहता हूँ ताकि कोई मुझे इस से ज़्यादा न समझे जैसा मुझे देखा है या मुझ से सुना है।
وَلِئَلَّا أَرْتَفِعَ بِفَرْطِ ٱلْإِعْلَانَاتِ، أُعْطِيتُ شَوْكَةً فِي ٱلْجَسَدِ، مَلَاكَ ٱلشَّيْطَانِ لِيَلْطِمَنِي، لِئَلَّا أَرْتَفِعَ. ٧ 7
और मुक़ाशिफ़ा की ज़ियादती के ज़रिए मेरे फूल जाने के अन्देशे से मेरे जिस्म में कांटा चुभोया गया या'नी शैतान का क़ासिद ताकि मेरे मुक्के मारे और मैं फ़ूल न जाऊँ।
مِنْ جِهَةِ هَذَا تَضَرَّعْتُ إِلَى ٱلرَّبِّ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ أَنْ يُفَارِقَنِي. ٨ 8
इसके बारे में मैंने तीन बार ख़ुदावन्द से इल्तिमास किया कि ये मुझ से दूर हो जाए।
فَقَالَ لِي: «تَكْفِيكَ نِعْمَتِي، لِأَنَّ قُوَّتِي فِي ٱلضَّعْفِ تُكْمَلُ». فَبِكُلِّ سُرُورٍ أَفْتَخِرُ بِٱلْحَرِيِّ فِي ضَعَفَاتِي، لِكَيْ تَحِلَّ عَلَيَّ قُوَّةُ ٱلْمَسِيحِ. ٩ 9
मगर उसने मुझ से कहा कि मेरा फ़ज़ल तेरे लिए काफ़ी है क्यूँकि मेरी क़ुदरत कमज़ोरी में पूरी होती है पस मैं बड़ी ख़ुशी से अपनी कमज़ोरी पर फ़ख़्र करूँगा ताकि मसीह की क़ुदरत मुझ पर छाई रहे।
لِذَلِكَ أُسَرُّ بِٱلضَّعَفَاتِ وَٱلشَّتَائِمِ وَٱلضَّرُورَاتِ وَٱلِٱضْطِهَادَاتِ وَٱلضِّيقَاتِ لِأَجْلِ ٱلْمَسِيحِ. لِأَنِّي حِينَمَا أَنَا ضَعِيفٌ فَحِينَئِذٍ أَنَا قَوِيٌّ. ١٠ 10
इसलिए मैं मसीह की ख़ातिर कमज़ोरी में बे'इज़्ज़ती में, एहतियाज में, सताए जाने में, तंगी में, ख़ुश हूँ क्यूँकि जब मैं कमज़ोर होता हूँ उसी वक़्त ताक़तवर होता हूँ।
قَدْ صِرْتُ غَبِيًّا وَأَنَا أَفْتَخِرُ. أَنْتُمْ أَلْزَمْتُمُونِي! لِأَنَّهُ كَانَ يَنْبَغِي أَنْ أُمْدَحَ مِنْكُمْ، إِذْ لَمْ أَنْقُصْ شَيْئًا عَنْ فَائِقِي ٱلرُّسُلِ، وَإِنْ كُنْتُ لَسْتُ شَيْئًا. ١١ 11
मैं बेवक़ूफ़ तो बना मगर तुम ही ने मुझे मजबूर किया, क्यूँकि तुम को मेरी तारीफ़ करना चाहिए था इसलिए कि उन अफ़्ज़ल रसूलों से किसी बात में कम नहीं अगरचे कुछ नहीं हूँ।
إِنَّ عَلَامَاتِ ٱلرَّسُولِ صُنِعَتْ بَيْنَكُمْ فِي كُلِّ صَبْرٍ، بِآيَاتٍ وَعَجَائِبَ وَقُوَّاتٍ. ١٢ 12
सच्चा रसूल होने की अलामतें कमाल सब्र के साथ निशानों और अजीब कामों और मोजिज़ों के वसीले से तुम्हारे दर्मियान ज़ाहिर हुईं।
لِأَنَّهُ مَا هُوَ ٱلَّذِي نَقَصْتُمْ عَنْ سَائِرِ ٱلْكَنَائِسِ، إِلَّا أَنِّي أَنَا لَمْ أُثَقِّلْ عَلَيْكُمْ؟ سَامِحُونِي بِهَذَا ٱلظُّلْمِ! ١٣ 13
तुम कौन सी बात में और कलीसियाओं में कम ठहरे बा वजूद इसके मैंने तुम पर बौझ न डाला? मेरी ये बेइन्साफ़ी मु'आफ़ करो।
هُوَذَا ٱلْمَرَّةُ ٱلثَّالِثَةُ أَنَا مُسْتَعِدٌّ أَنْ آتِيَ إِلَيْكُمْ وَلَا أُثَقِّلَ عَلَيْكُمْ. لِأَنِّي لَسْتُ أَطْلُبُ مَا هُوَ لَكُمْ بَلْ إِيَّاكُمْ. لِأَنَّهُ لَا يَنْبَغِي أَنَّ ٱلْأَوْلَادَ يَذْخَرُونَ لِلْوَالِدِينَ، بَلِ ٱلْوَالِدُونَ لِلْأَوْلَادِ. ١٤ 14
देखो ये तीसरी बार मैं तुम्हारे पास आने के लिए तैयार हूँ और तुम पर बौझ न डालूँगा इसलिए कि मै तुम्हारे माल का नहीं बल्कि तुम्हारा चहेता हूँ, क्यूँकि लड़कों को माँ बाप के लिए जमा करना नहीं चाहिए, बल्कि माँ बाप को लड़कों के लिए।
وَأَمَّا أَنَا فَبِكُلِّ سُرُورٍ أُنْفِقُ وَأُنْفَقُ لِأَجْلِ أَنْفُسِكُمْ، وَإِنْ كُنْتُ كُلَّمَا أُحِبُّكُمْ أَكْثَرَ أُحَبُّ أَقَلَّ! ١٥ 15
और मैं तुम्हारी रूहों के वास्ते बहुत ख़ुशी से ख़र्च करूँगा, बल्कि ख़ुद ही ख़र्च हो जाऊँगा। अगर मैं तुम से ज़्यादा मुहब्बत रख़ूँ तो क्या तुम मुझ से कम मुहब्बत रखोगे।
فَلْيَكُنْ. أَنَا لَمْ أُثَقِّلْ عَلَيْكُمْ، لَكِنْ إِذْ كُنْتُ مُحْتَالًا أَخَذْتُكُمْ بِمَكْرٍ! ١٦ 16
लेकिन मुम्किन है कि मैंने ख़ुद तुम पर बोझ न डाला हो मगर मक्कार जो हुआ इसलिए तुम को धोखा देकर फँसा लिया हो।
هَلْ طَمِعْتُ فِيكُمْ بِأَحَدٍ مِنَ ٱلَّذِينَ أَرْسَلْتُهُمْ إِلَيْكُمْ؟ ١٧ 17
भला जिन्हें मैंने तुम्हारे पास भेजा कि उन में से किसी की ज़रिए दग़ा के तौर पर तुम से कुछ लिया?
طَلَبْتُ إِلَى تِيطُسَ وَأَرْسَلْتُ مَعَهُ ٱلْأَخَ. هَلْ طَمِعَ فِيكُمْ تِيطُسُ؟ أَمَا سَلَكْنَا بِذَاتِ ٱلرُّوحِ ٱلْوَاحِدِ؟ أَمَا بِذَاتِ ٱلْخَطَوَاتِ ٱلْوَاحِدَةِ؟ ١٨ 18
मैंने तितुस को समझा कर उनके साथ उस भाई को भेजा पस क्या तितुस ने तुम से दग़ा के तौर पर कुछ लिया? क्या हम दोनों का चाल चलन एक ही रूह की हिदायत के मुताबिक़ न था; क्या हम एक ही नक़्शे क़दम पर न चले।
أَتَظُنُّونَ أَيْضًا أَنَّنَا نَحْتَجُّ لَكُمْ؟ أَمَامَ ٱللهِ فِي ٱلْمَسِيحِ نَتَكَلَّمُ. وَلَكِنَّ ٱلْكُلَّ أَيُّهَا ٱلْأَحِبَّاءُ لِأَجْلِ بُنْيَانِكُمْ. ١٩ 19
तुम अभी तक यही समझते होगे कि हम तुम्हारे सामने उज़्र कर रहे हैं? हम तो ख़ुदा को हाज़िर जानकर मसीह में बोलते हैं और ऐ, प्यारो ये सब कुछ तुम्हारी तरक़्क़ी के लिए है।
لِأَنِّي أَخَافُ إِذَا جِئْتُ أَنْ لَا أَجِدَكُمْ كَمَا أُرِيدُ، وَأُوجَدَ مِنْكُمْ كَمَا لَا تُرِيدُونَ. أَنْ تُوجَدَ خُصُومَاتٌ وَمُحَاسَدَاتٌ وَسَخَطَاتٌ وَتَحَزُّبَاتٌ وَمَذَمَّاتٌ وَنَمِيمَاتٌ وَتَكَبُّرَاتٌ وَتَشْوِيشَاتٌ. ٢٠ 20
क्यूँकि मैं डरता हूँ कहीं ऐसा न हो कि आकर जैसा तुम्हें चाहता हूँ वैसा न पाऊँ और मुझे भी जैसा तुम नहीं चाहते वैसा ही पाओ कि तुम में, झगड़ा, हसद, ग़ुस्सा, तफ़्रक़े, बद गोइयाँ, ग़ीबत, शेख़ी और फ़साद हों।
أَنْ يُذِلَّنِي إِلَهِي عِنْدَكُمْ، إِذَا جِئْتُ أَيْضًا وَأَنُوحُ عَلَى كَثِيرِينَ مِنَ ٱلَّذِينَ أَخْطَأُوا مِنْ قَبْلُ وَلَمْ يَتُوبُوا عَنِ ٱلنَّجَاسَةِ وَٱلزِّنَا وَٱلْعَهَارَةِ ٱلَّتِي فَعَلُوهَا. ٢١ 21
और फिर जब मैं आऊँ तो मेरा ख़ुदा तुम्हारे सामने आजिज़ करे और मुझे बहुतों के लिए अफ़्सोस करना पड़े जिन्होंने पहले गुनाह किए हैं और उनकी नापाकी और हरामकारी और शहवत परस्ती से जो उन से सरज़द हुई तौबा न की।

< ٢ كورنثوس 12 >