< ٢ أخبار 6 >

حِينَئِذٍ قَالَ سُلَيْمَانُ: «قَالَ ٱلرَّبُّ إِنَّهُ يَسْكُنُ فِي ٱلضَّبَابِ. ١ 1
तब सुलैमान कहने लगा, “यहोवा ने कहा था, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूँगा।
وَأَنَا بَنَيْتُ لَكَ بَيْتَ سُكْنَى مَكَانًا لِسُكْنَاكَ إِلَى ٱلْأَبَدِ». ٢ 2
परन्तु मैंने तेरे लिये एक वासस्थान वरन् ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है, जिसमें तू युग-युग रहे।”
وَحَوَّلَ ٱلْمَلِكُ وَجْهَهُ وَبَارَكَ كُلَّ جُمْهُورِ إِسْرَائِيلَ، وَكُلُّ جُمْهُورِ إِسْرَائِيلَ وَاقِفٌ. ٣ 3
तब राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुँह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया, और इस्राएल की पूरी सभा खड़ी रही।
وَقَالَ: «مُبَارَكٌ ٱلرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ ٱلَّذِي كَلَّمَ بِفَمِهِ دَاوُدَ أَبِي وَأَكْمَلَ بِيَدَيْهِ قَائِلًا: ٤ 4
और उसने कहा, “धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जिसने अपने मुँह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था, और अपने हाथों से इसे पूरा किया है,
مُنْذُ يَوْمَ أَخْرَجْتُ شَعْبِي مِنْ أَرْضِ مِصْرَ لَمْ أَخْتَرْ مَدِينَةً مِنْ جَمِيعِ أَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ لِبِنَاءِ بَيْتٍ لِيَكُونَ ٱسْمِي هُنَاكَ، وَلَا ٱخْتَرْتُ رَجُلًا يَكُونُ رَئِيسًا لِشَعْبِي إِسْرَائِيلَ. ٥ 5
‘जिस दिन से मैं अपनी प्रजा को मिस्र देश से निकाल लाया, तब से मैंने न तो इस्राएल के किसी गोत्र का कोई नगर चुना जिसमें मेरे नाम के निवास के लिये भवन बनाया जाए, और न कोई मनुष्य चुना कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो।
بَلِ ٱخْتَرْتُ أُورُشَلِيمَ لِيَكُونَ ٱسْمِي فِيهَا، وَٱخْتَرْتُ دَاوُدَ لِيَكُونَ عَلَى شَعْبِي إِسْرَائِيلَ. ٦ 6
परन्तु मैंने यरूशलेम को इसलिए चुना है, कि मेरा नाम वहाँ हो, और दाऊद को चुन लिया है कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो।’
وَكَانَ فِي قَلْبِ دَاوُدَ أَبِي أَنْ يَبْنِيَ بَيْتًا لِٱسْمِ ٱلرَّبِّ إِلَهِ إِسْرَائِيلَ، ٧ 7
मेरे पिता दाऊद की यह इच्छा थी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाए।
فَقَالَ ٱلرَّبُّ لِدَاوُدَ أَبِي: مِنْ أَجْلِ أَنَّهُ كَانَ فِي قَلْبِكَ أَنْ تَبْنِيَ بَيْتًا لِٱسْمِي، قَدْ أَحْسَنْتَ بِكَوْنِ ذَلِكَ فِي قَلْبِكَ. ٨ 8
परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, ‘तेरी जो इच्छा है कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी इच्छा करके तूने भला तो किया;
إِلَّا أَنَّكَ أَنْتَ لَا تَبْنِي ٱلْبَيْتَ، بَلِ ٱبْنُكَ ٱلْخَارِجُ مِنْ صُلْبِكَ هُوَ يَبْنِي ٱلْبَيْتَ لِٱسْمِي. ٩ 9
तो भी तू उस भवन को बनाने न पाएगा: तेरा जो निज पुत्र होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा।’
وَأَقَامَ ٱلرَّبُّ كَلَامَهُ ٱلَّذِي تَكَلَّمَ بِهِ، وَقَدْ قُمْتُ أَنَا مَكَانَ دَاوُدَ أَبِي، وَجَلَسْتُ عَلَى كُرْسِيِّ إِسْرَائِيلَ كَمَا تَكَلَّمَ ٱلرَّبُّ، وَبَنَيْتُ ٱلْبَيْتَ لِٱسْمِ ٱلرَّبِّ إِلَهِ إِسْرَائِيلَ. ١٠ 10
१०यह वचन जो यहोवा ने कहा था, उसे उसने पूरा भी किया है; और मैं अपने पिता दाऊद के स्थान पर उठकर यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम के इस भवन को बनाया है।
وَوَضَعْتُ هُنَاكَ ٱلتَّابُوتَ ٱلَّذِي فِيهِ عَهْدُ ٱلرَّبِّ ٱلَّذِي قَطَعَهُ مَعَ بَنِي إِسْرَائِيلَ». ١١ 11
११इसमें मैंने उस सन्दूक को रख दिया है, जिसमें यहोवा की वह वाचा है, जो उसने इस्राएलियों से बाँधी थी।”
وَوَقَفَ أَمَامَ مَذْبَحِ ٱلرَّبِّ تُجَاهَ كُلِّ جَمَاعَةِ إِسْرَائِيلَ وَبَسَطَ يَدَيْهِ. ١٢ 12
१२तब वह इस्राएल की सारी सभा के देखते यहोवा की वेदी के सामने खड़ा हुआ और अपने हाथ फैलाए।
لِأَنَّ سُلَيْمَانَ صَنَعَ مِنْبَرًا مِنْ نُحَاسٍ وَجَعَلَهُ فِي وَسَطِ ٱلدَّارِ، طُولُهُ خَمْسُ أَذْرُعٍ وَعَرْضُهُ خَمْسُ أَذْرُعٍ وَٱرْتِفَاعُهُ ثَلَاثُ أَذْرُعٍ، وَوَقَفَ عَلَيْهِ، ثُمَّ جَثَا عَلَى رُكْبَتَيْهِ تُجَاهَ كُلِّ جَمَاعَةِ إِسْرَائِيلَ وَبَسَطَ يَدَيْهِ نَحْوَ ٱلسَّمَاءِ، ١٣ 13
१३सुलैमान ने पाँच हाथ लम्बी, पाँच हाथ चौड़ी और तीन हाथ ऊँची पीतल की एक चौकी बनाकर आँगन के बीच रखवाई थी; उसी पर खड़े होकर उसने सारे इस्राएल की सभा के सामने घुटने टेककर स्वर्ग की ओर हाथ फैलाए हुए कहा,
وَقَالَ: «أَيُّهَا ٱلرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ، لَا إِلَهَ مِثْلُكَ فِي ٱلسَّمَاءِ وَٱلْأَرْضِ، حَافِظُ ٱلْعَهْدِ وَٱلرَّحْمَةِ لِعَبِيدِكَ ٱلسَّائِرِينَ أَمَامَكَ بِكُلِّ قُلُوبِهِمُ. ١٤ 14
१४“हे यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर, तेरे समान न तो स्वर्ग में और न पृथ्वी पर कोई परमेश्वर है: तेरे जो दास अपने सारे मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलते हैं, उनके लिये तू अपनी वाचा पूरी करता और करुणा करता रहता है।
ٱلَّذِي قَدْ حَفِظْتَ لِعَبْدِكَ دَاوُدَ أَبِي مَا كَلَّمْتَهُ بِهِ، فَتَكَلَّمْتَ بِفَمِكَ وأَكْمَلْتَ بِيَدِكَ كَهَذَا ٱلْيَوْمِ. ١٥ 15
१५तूने जो वचन मेरे पिता दाऊद को दिया था, उसका तूने पालन किया है; जैसा तूने अपने मुँह से कहा था, वैसा ही अपने हाथ से उसको हमारी आँखों के सामने पूरा भी किया है।
وَٱلْآنَ أَيُّهَا ٱلرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ، ٱحْفَظْ لِعَبْدِكَ دَاوُدَ أَبِي مَا كَلَّمْتَهُ بِهِ قَائِلًا: لَا يُعْدَمُ لَكَ أَمَامِي رَجُلٌ يَجْلِسُ عَلَى كُرْسِيِّ إِسْرَائِيلَ، إِنْ يَكُنْ بَنُوكَ طُرُقَهُمْ يَحْفَظُونَ حَتَّى يَسِيرُوا فِي شَرِيعَتِي كَمَا سِرْتَ أَنْتَ أَمَامِي. ١٦ 16
१६इसलिए अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, इस वचन को भी पूरा कर, जो तूने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था, ‘तेरे कुल में मेरे सामने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदा बने रहेंगे, यह हो कि जैसे तू अपने को मेरे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपनी चाल चलन में ऐसी चौकसी करें, कि मेरी व्यवस्था पर चलें।’
وَٱلْآنَ أَيُّهَا ٱلرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ، فَلْيَتَحَقَّقْ كَلَامُكَ ٱلَّذِي كَلَّمْتَ بِهِ عَبْدَكَ دَاوُدَ. ١٧ 17
१७अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, जो वचन तूने अपने दास दाऊद को दिया था, वह सच्चा किया जाए।
لِأَنَّهُ هَلْ يَسْكُنُ ٱللهُ حَقًّا مَعَ ٱلْإِنْسَانِ عَلَى ٱلْأَرْضِ؟ هُوَذَا ٱلسَّمَاوَاتُ وَسَمَاءُ ٱلسَّمَاوَاتِ لَا تَسَعُكَ، فَكَمْ بِٱلْأَقَلِّ هَذَا ٱلْبَيْتُ ٱلَّذِي بَنَيْتُ! ١٨ 18
१८“परन्तु क्या परमेश्वर सचमुच मनुष्यों के संग पृथ्वी पर वास करेगा? स्वर्ग में वरन् सबसे ऊँचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में तू कैसे समाएगा?
فَٱلْتَفِتْ إِلَى صَلَاةِ عَبْدِكَ وَإِلَى تَضَرُّعِهِ أَيُّهَا ٱلرَّبُّ إِلَهِي، وَٱسْمَعِ ٱلصُّرَاخَ وَٱلصَّلَاةَ ٱلَّتِي يُصَلِّيهَا عَبْدُكَ أَمَامَكَ. ١٩ 19
१९तो भी हे मेरे परमेश्वर यहोवा, अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट की ओर ध्यान दे और मेरी पुकार और यह प्रार्थना सुन, जो मैं तेरे सामने कर रहा हूँ।
لِتَكُونَ عَيْنَاكَ مَفْتُوحَتَيْنِ عَلَى هَذَا ٱلْبَيْتِ نَهَارًا وَلَيْلًا عَلَى ٱلْمَوْضِعِ ٱلَّذِي قُلْتَ إِنَّكَ تَضَعُ ٱسْمَكَ فِيهِ، لِتَسْمَعَ ٱلصَّلَاةَ ٱلَّتِي يُصَلِّيهَا عَبْدُكَ فِي هَذَا ٱلْمَوْضِعِ. ٢٠ 20
२०वह यह है कि तेरी आँखें इस भवन की ओर, अर्थात् इसी स्थान की ओर जिसके विषय में तूने कहा है कि मैं उसमें अपना नाम रखूँगा, रात-दिन खुली रहें, और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे, उसे तू सुन ले।
وَٱسْمَعْ تَضَرُّعَاتِ عَبْدِكَ وَشَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ ٱلَّذِينَ يُصَلُّونَ فِي هَذَا ٱلْمَوْضِعِ، وَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنْ مَوْضِعِ سُكْنَاكَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ، وَإِذَا سَمِعْتَ فَٱغْفِرْ. ٢١ 21
२१और अपने दास, और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान की ओर मुँह किए हुए गिड़गिड़ाकर करें, उसे सुन लेना; स्वर्ग में से जो तेरा निवास-स्थान है, सुन लेना; और सुनकर क्षमा करना।
إِنْ أَخْطَأَ أَحَدٌ إِلَى صَاحِبِهِ وَوُضِعَ عَلَيْهِ حَلْفٌ لِيُحَلِّفَهُ، وَجَاءَ ٱلْحَلْفُ أَمَامَ مَذْبَحِكَ فِي هَذَا ٱلْبَيْتِ، ٢٢ 22
२२“जब कोई मनुष्य किसी दूसरे के विरुद्ध अपराध करे और उसको शपथ खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के सामने शपथ खाए,
فَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ وَٱعْمَلْ، وَٱقْضِ بَيْنَ عَبِيدِكَ إِذْ تُعَاقِبُ ٱلْمُذْنِبَ فَتَجْعَلُ طَرِيقَهُ عَلَى رَأْسِهِ، وَتُبَرِّرُ ٱلْبَارَّ إِذْ تُعْطِيهِ حَسَبَ بِرِّهِ. ٢٣ 23
२३तब तू स्वर्ग में से सुनना और मानना, और अपने दासों का न्याय करके दुष्ट को बदला देना, और उसकी चाल उसी के सिर लौटा देना, और निर्दोष को निर्दोष ठहराकर, उसकी धार्मिकता के अनुसार उसको फल देना।
وَإِنِ ٱنْكَسَرَ شَعْبُكَ إِسْرَائِيلُ أَمَامَ ٱلْعَدُوِّ لِكَوْنِهِمْ أَخْطَأُوا إِلَيْكَ، ثُمَّ رَجَعُوا وَٱعْتَرَفُوا بِٱسْمِكَ وَصَلَّوْا وَتَضَرَّعُوا أَمَامَكَ نَحْوَ هَذَا ٱلْبَيْتِ، ٢٤ 24
२४“फिर यदि तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करने के कारण अपने शत्रुओं से हार जाए, और तेरी ओर फिरकर तेरा नाम मानें, और इस भवन में तुझ से प्रार्थना करें और गिड़गिड़ाएँ,
فَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ وَٱغْفِرْ خَطِيَّةَ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، وَأَرْجِعْهُمْ إِلَى ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي أَعْطَيْتَهَا لَهُمْ وَلِآبَائِهِمْ. ٢٥ 25
२५तो तू स्वर्ग में से सुनना; और अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा करना, और उन्हें इस देश में लौटा ले आना जिसे तूने उनको और उनके पुरखाओं को दिया है।
«إِذَا أُغْلِقَتِ ٱلسَّمَاءُ وَلَمْ يَكُنْ مَطَرٌ لِكَوْنِهِمْ أَخْطَأُوا إِلَيْكَ، ثُمَّ صَلَّوْا فِي هَذَا ٱلْمَكَانِ وَٱعْتَرَفُوا بِٱسْمِكَ وَرَجَعُوا عَنْ خَطِيَّتِهِمْ لِأَنَّكَ ضَايَقْتَهُمْ، ٢٦ 26
२६“जब वे तेरे विरुद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश इतना बन्द हो जाए कि वर्षा न हो, ऐसे समय यदि वे इस स्थान की ओर प्रार्थना करके तेरे नाम को मानें, और तू जो उन्हें दुःख देता है, इस कारण वे अपने पाप से फिरें,
فَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ وَٱغْفِرْ خَطِيَّةَ عَبِيدِكَ وَشَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، فَتُعَلِّمَهُمُ ٱلطَّرِيقَ ٱلصَّالِحَ ٱلَّذِي يَسْلُكُونَ فِيهِ، وَأَعْطِ مَطَرًا عَلَى أَرْضِكَ ٱلَّتِي أَعْطَيْتَهَا لِشَعْبِكَ مِيرَاثًا. ٢٧ 27
२७तो तू स्वर्ग में से सुनना, और अपने दासों और अपनी प्रजा इस्राएल के पाप को क्षमा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है जिस पर उन्हें चलना चाहिये, इसलिए अपने इस देश पर जिसे तूने अपनी प्रजा का भाग करके दिया है, पानी बरसा देना।
إِذَا صَارَ فِي ٱلْأَرْضِ جُوعٌ، إِذَا صَارَ وَبَأٌ أَوْ لَفْحٌ أَوْ يَرَقَانٌ أَوْ جَرَادٌ أَوْ جَرْدَمٌ، أَوْ إِذَا حَاصَرَهُمْ أَعْدَاؤُهُمْ فِي أَرْضِ مُدُنِهِمْ، فِي كُلِّ ضَرْبَةٍ وَكُلِّ مَرَضٍ، ٢٨ 28
२८“जब इस देश में अकाल या मरी या झुलस हो या गेरुई या टिड्डियाँ या कीड़े लगें, या उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें, या कोई विपत्ति या रोग हो;
فَكُلُّ صَلَاةٍ وَكُلُّ تَضَرُّعٍ تَكُونُ مِنْ أَيِّ إِنْسَانٍ كَانَ، أَوْ مِنْ كُلِّ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ ٱلَّذِينَ يَعْرِفُونَ كُلُّ وَاحِدٍ ضَرْبَتَهُ وَوَجَعَهُ، فَيَبْسُطُ يَدَيْهِ نَحْوَ هَذَا ٱلْبَيْتِ، ٢٩ 29
२९तब यदि कोई मनुष्य या तेरी सारी प्रजा इस्राएल जो अपना-अपना दुःख और अपना-अपना खेद जानकर और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाएँ;
فَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ مَكَانِ سُكْنَاكَ، وَٱغْفِرْ وَأَعْطِ كُلَّ إِنْسَانٍ حَسَبَ كُلِّ طُرُقِهِ كَمَا تَعْرِفُ قَلْبَهُ. لِأَنَّكَ أَنْتَ وَحْدَكَ تَعْرِفُ قُلُوبَ بَنِي ٱلْبَشَرِ. ٣٠ 30
३०तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान से सुनकर क्षमा करना, और एक-एक के मन की जानकर उसकी चाल के अनुसार उसे फल देना; (तू ही तो आदमियों के मन का जाननेवाला है);
لِكَيْ يَخَافُوكَ وَيَسِيرُوا فِي طُرُقِكَ كُلَّ ٱلْأَيَّامِ ٱلَّتِي يَحْيَوْنَ فِيهَا عَلَى وَجْهِ ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي أَعْطَيْتَ لِآبَائِنَا. ٣١ 31
३१कि वे जितने दिन इस देश में रहें, जिसे तूने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते हुए तेरे मार्गों पर चलते रहें।
وَكَذَلِكَ ٱلْأَجْنَبِيُّ ٱلَّذِي لَيْسَ هُوَ مِنْ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، وَقَدْ جَاءَ مِنْ أَرْضٍ بَعِيدَةٍ مِنْ أَجْلِ ٱسْمِكَ ٱلْعَظِيمِ وَيَدِكَ ٱلْقَوِيَّةِ وَذِرَاعِكَ ٱلْمَمْدُودَةِ، فَمَتَى جَاءُوا وَصَلَّوْا فِي هَذَا ٱلْبَيْتِ، ٣٢ 32
३२“फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा के कारण दूर देश से आए, और आकर इस भवन की ओर मुँह किए हुए प्रार्थना करे,
فَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ مَكَانِ سُكْنَاكَ وَٱفْعَلْ حَسَبَ كُلِّ مَا يَدْعُوكَ بِهِ ٱلْأَجْنَبِيُّ، لِكَيْ يَعْلَمَ كُلُّ شُعُوبِ ٱلْأَرْضِ ٱسْمَكَ فَيَخَافُوكَ كَشَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، وَلِكَيْ يَعْلَمُوا أَنَّ ٱسْمَكَ قَدْ دُعِيَ عَلَى هَذَا ٱلْبَيْتِ ٱلَّذِي بَنَيْتُ. ٣٣ 33
३३तब तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से सुने, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसके अनुसार करना; जिससे पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर, तेरी प्रजा इस्राएल के समान तेरा भय मानें; और निश्चय करें, कि यह भवन जो मैंने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है।
«إِذَا خَرَجَ شَعْبُكَ لِمُحَارَبَةِ أَعْدَائِهِ فِي ٱلطَّرِيقِ ٱلَّذِي تُرْسِلُهُمْ فِيهِ وَصَلَّوْا إِلَيْكَ نَحْوَ هَذِهِ ٱلْمَدِينَةِ ٱلَّتِي ٱخْتَرْتَهَا، وَٱلْبَيْتِ ٱلَّذِي بَنَيْتُ لِٱسْمِكَ، ٣٤ 34
३४“जब तेरी प्रजा के लोग जहाँ कहीं तू उन्हें भेजे वहाँ अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएँ, और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम का बनाया है, मुँह किए हुए तुझ से प्रार्थना करें,
فَٱسْمَعْ مِنَ ٱلسَّمَاءِ صَلَاتَهُمْ وَتَضَرُّعَهُمْ وَٱقْضِ قَضَاءَهُمْ. ٣٥ 35
३५तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना।
إِذَا أَخْطَأُوا إِلَيْكَ، لِأَنَّهُ لَيْسَ إِنْسَانٌ لَا يُخْطِئُ، وَغَضِبْتَ عَلَيْهِمْ وَدَفَعْتَهُمْ أَمَامَ ٱلْعَدُوِّ، وَسَبَاهُمْ سَابُوهُمْ إِلَى أَرْضٍ بَعِيدَةٍ أَوْ قَرِيبَةٍ، ٣٦ 36
३६“निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है यदि वे भी तेरे विरुद्ध पाप करें और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रुओं के हाथ कर दे, और वे उन्हें बन्दी बनाकर किसी देश को, चाहे वह दूर हो, चाहे निकट, ले जाएँ,
فَإِذَا رَدُّوا إِلَى قُلُوبِهِمْ فِي ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي يُسْبَوْنَ إِلَيْهَا، وَرَجَعُوا وَتَضَرَّعُوا إِلَيْكَ فِي أَرْضِ سَبْيِهِمْ قَائِلِينَ: قَدْ أَخْطَأْنَا وَعَوَّجْنَا وَأَذْنَبْنَا، ٣٧ 37
३७तो यदि वे बँधुआई के देश में सोच विचार करें, और फिरकर अपने बन्दी बनानेवालों के देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें, ‘हमने पाप किया, और कुटिलता और दुष्टता की है,’
وَرَجَعُوا إِلَيْكَ مِنْ كُلِّ قُلُوبِهِمْ وَمِنْ كُلِّ أَنْفُسِهِمْ فِي أَرْضِ سَبْيِهِمِ ٱلَّتِي سَبَوْهُمْ إِلَيْهَا، وَصَلَّوْا نَحْوَ أَرْضِهِمِ ٱلَّتِي أَعْطَيْتَهَا لِآبَائِهِمْ، وَٱلْمَدِينَةِ ٱلَّتِي ٱخْتَرْتَ، وَٱلْبَيْتِ ٱلَّذِي بَنَيْتُ لِٱسْمِكَ، ٣٨ 38
३८इसलिए यदि वे अपनी बँधुआई के देश में जहाँ वे उन्हें बन्दी बनाकर ले गए हों अपने पूरे मन और सारे जीव से तेरी ओर फिरें, और अपने इस देश की ओर जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था, और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम का बनाया है, मुँह किए हुए तुझ से प्रार्थना करें,
فَٱسْمَعْ مِنَ ٱلسَّمَاءِ مِنْ مَكَانِ سُكْنَاكَ صَلَاتَهُمْ وَتَضَرُّعَاتِهِمْ، وَٱقْضِ قَضَاءَهُمْ، وَٱغْفِرْ لِشَعْبِكَ مَا أَخْطَأُوا بِهِ إِلَيْكَ. ٣٩ 39
३९तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरुद्ध करें, उन्हें क्षमा करना।
ٱلْآنَ يَاإِلَهِي لِتَكُنْ عَيْنَاكَ مَفْتُوحَتَيْنِ، وَأُذُنَاكَ مُصْغِيَتَيْنِ لِصَلَاةِ هَذَا ٱلْمَكَانِ. ٤٠ 40
४०और हे मेरे परमेश्वर! जो प्रार्थना इस स्थान में की जाए उसकी ओर अपनी आँखें खोले रह और अपने कान लगाए रख।
وَٱلْآنَ قُمْ أَيُّهَا ٱلرَّبُّ ٱلْإِلَهُ إِلَى رَاحَتِكَ أَنْتَ وَتَابُوتُ عِزِّكَ. كَهَنَتُكَ أَيُّهَا ٱلرَّبُّ ٱلْإِلَهُ يَلْبِسُونَ ٱلْخَلَاصَ، وَأَتْقِيَاؤُكَ يَبْتَهِجُونَ بِٱلْخَيْرِ. ٤١ 41
४१“अब हे यहोवा परमेश्वर, उठकर अपने सामर्थ्य के सन्दूक समेत अपने विश्रामस्थान में आ, हे यहोवा परमेश्वर तेरे याजक उद्धाररूपी वस्त्र पहने रहें, और तेरे भक्त लोग भलाई के कारण आनन्द करते रहें।
أَيُّهَا ٱلرَّبُّ ٱلْإِلَهُ، لَا تَرُدَّ وَجْهَ مَسِيحِكَ. ٱذْكُرْ مَرَاحِمَ دَاوُدَ عَبْدِكَ». ٤٢ 42
४२हे यहोवा परमेश्वर, अपने अभिषिक्त की प्रार्थना को अनसुनी न कर, तू अपने दास दाऊद पर की गई करुणा के काम स्मरण रख।”

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