< ١ بطرس 3 >

كَذَلِكُنَّ أَيَّتُهَا ٱلنِّسَاءُ، كُنَّ خَاضِعَاتٍ لِرِجَالِكُنَّ، حَتَّى وَإِنْ كَانَ ٱلْبَعْضُ لَا يُطِيعُونَ ٱلْكَلِمَةَ، يُرْبَحُونَ بِسِيرَةِ ٱلنِّسَاءِ بِدُونِ كَلِمَةٍ، ١ 1
ऐ बीवियों! तुम भी अपने शौहर के ताबे' रहो,
مُلَاحِظِينَ سِيرَتَكُنَّ ٱلطَّاهِرَةَ بِخَوْفٍ. ٢ 2
इसलिए कि अगर कुछ उनमें से कलाम को न मानते हों, तोभी तुम्हारे पाकीज़ा चाल — चलन और ख़ौफ़ को देख कर बग़ैर कलाम के अपनी अपनी बीवी के चाल — चलन से ख़ुदा की तरफ़ खिंच जाएँ।
وَلَا تَكُنْ زِينَتُكُنَّ ٱلزِّينَةَ ٱلْخَارِجِيَّةَ، مِنْ ضَفْرِ ٱلشَّعْرِ وَٱلتَّحَلِّي بِٱلذَّهَبِ وَلِبْسِ ٱلثِّيَابِ، ٣ 3
और तुम्हारा सिंगार ज़ाहिरी न हो, या'नी सर गूँधना और सोने के ज़ेवर और तरह तरह के कपड़े पहनना,
بَلْ إِنْسَانَ ٱلْقَلْبِ ٱلْخَفِيَّ فِي ٱلْعَدِيمَةِ ٱلْفَسَادِ، زِينَةَ ٱلرُّوحِ ٱلْوَدِيعِ ٱلْهَادِئ، ٱلَّذِي هُوَ قُدَّامَ ٱللهِ كَثِيرُ ٱلثَّمَنِ. ٤ 4
बल्कि तुम्हारी बातिनी और पोशीदा इंसान ियत, हलीम और नर्म मिज़ाज की ग़ुरबत की ग़ैरफ़ानी आराइश से आरास्ता रहे, क्यूँकि ख़ुदा के नज़दीक इसकी बड़ी क़द्र है।
فَإِنَّهُ هَكَذَا كَانَتْ قَدِيمًا ٱلنِّسَاءُ ٱلْقِدِّيسَاتُ أَيْضًا ٱلْمُتَوَكِّلَاتُ عَلَى ٱللهِ، يُزَيِّنَّ أَنْفُسَهُنَّ خَاضِعَاتٍ لِرِجَالِهِنَّ، ٥ 5
और अगले ज़माने में भी ख़ुदा पर उम्मीद रखनेवाली मुक़द्दस 'औरतें, अपने आप को इसी तरह संवारती और अपने अपने शौहर के ताबे' रहती थीं।
كَمَا كَانَتْ سَارَةُ تُطِيعُ إِبْرَاهِيمَ دَاعِيَةً إِيَّاهُ «سَيِّدَهَا». ٱلَّتِي صِرْتُنَّ أَوْلَادَهَا، صَانِعَاتٍ خَيْرًا، وَغَيْرَ خَائِفَاتٍ خَوْفًا ٱلْبَتَّةَ. ٦ 6
चुनाँचे सारह अब्रहाम के हुक्म में रहती और उसे ख़ुदावन्द कहती थी। तुम भी अगर नेकी करो और किसी के डराने से न डरो, तो उसकी बेटियाँ हुईं।
كَذَلِكُمْ أَيُّهَا ٱلرِّجَالُ، كُونُوا سَاكِنِينَ بِحَسَبِ ٱلْفِطْنَةِ مَعَ ٱلْإِنَاءِ ٱلنِّسَائِيِّ كَٱلْأَضْعَفِ، مُعْطِينَ إِيَّاهُنَّ كَرَامَةً، كَٱلْوَارِثَاتِ أَيْضًا مَعَكُمْ نِعْمَةَ ٱلْحَيَاةِ، لِكَيْ لَا تُعَاقَ صَلَوَاتُكُمْ. ٧ 7
ऐ शौहरों! तुम भी बीवियों के साथ 'अक़्लमन्दी से बसर करो, और 'औरत को नाज़ुक़ ज़र्फ़ जान कर उसकी 'इज़्ज़त करो, और यूँ समझो कि हम दोनों ज़िन्दगी की ने'मत के वारिस हैं, ताकि तुम्हारी दु'आएँ रुक न जाएँ।
وَٱلنِّهَايَةُ، كُونُوا جَمِيعًا مُتَّحِدِي ٱلرَّأْيِ بِحِسٍّ وَاحِدٍ، ذَوِي مَحَبَّةٍ أَخَوِيَّةٍ، مُشْفِقِينَ، لُطَفَاءَ، ٨ 8
ग़रज़ सब के सब एक दिल और हमदर्द रहो, बिरादराना मुहब्बत रख्खो, नर्म दिल और फ़रोतन बनो।
غَيْرَ مُجَازِينَ عَنْ شَرٍّ بِشَرٍّ أَوْ عَنْ شَتِيمَةٍ بِشَتِيمَةٍ، بَلْ بِٱلْعَكْسِ مُبَارِكِينَ، عَالِمِينَ أَنَّكُمْ لِهَذَا دُعِيتُمْ لِكَيْ تَرِثُوا بَرَكَةً. ٩ 9
बदी के 'बदले बदी न करो और गाली के बदले गाली न दो, बल्कि इसके बर'अक्स बर्क़त चाहो, क्यूँकि तुम बर्क़त के वारिस होने के लिए बुलाए गए हो।
لِأَنَّ: «مَنْ أَرَادَ أَنْ يُحِبَّ ٱلْحَيَاةَ، وَيَرَى أَيَّامًا صَالِحَةً، فَلْيَكْفُفْ لِسَانَهُ عَنِ ٱلشَّرِّ، وَشَفَتَيْهِ أَنْ تَتَكَلَّمَا بِٱلْمَكْرِ، ١٠ 10
चुनाँचे “जो कोई ज़िन्दगी से ख़ुश होना और अच्छे दिन देखना चाहे, वो ज़बान को बदी से और होंटों को मक्र की बात कहने से बाज़ रख्खे।
لِيُعْرِضْ عَنِ ٱلشَّرِّ، وَيَصْنَعِ ٱلْخَيْرَ، لِيَطْلُبِ ٱلسَّلَامَ، وَيَجِدَّ فِي أَثَرِهِ. ١١ 11
बदी से किनारा करे और नेकी को 'अमल में लाए, सुलह का तालिब हो, और उसकी कोशिश में रहे।
لِأَنَّ عَيْنَيِ ٱلرَّبِّ عَلَى ٱلْأَبْرَارِ، وَأُذْنَيْهِ إِلَى طَلِبَتِهِمْ، وَلَكِنَّ وَجْهَ ٱلرَّبِّ ضِدُّ فَاعِلِي ٱلشَّرِّ». ١٢ 12
क्यूँकि ख़ुदावन्द की नज़र रास्तबाज़ों की तरफ़ है, और उसके कान उनकी दुआ पर लगे हैं, मगर बदकार ख़ुदावन्द की निगाह में हैं।”
فَمَنْ يُؤْذِيكُمْ إِنْ كُنْتُمْ مُتَمَثِّلِينَ بِٱلْخَيْرِ؟ ١٣ 13
अगर तुम नेकी करने में सरगर्म हो, तो तुम से बदी करनेवाला कौन है?
وَلَكِنْ وَإِنْ تَأَلَّمْتُمْ مِنْ أَجْلِ ٱلْبِرِّ، فَطُوبَاكُمْ. وَأَمَّا خَوْفَهُمْ فَلَا تَخَافُوهُ وَلَا تَضْطَرِبُوا، ١٤ 14
और अगर रास्तबाज़ी की ख़ातिर दुःख सहो भी तो तुम मुबारिक़ हो, न उनके डराने से डरो और न घबराओ;
بَلْ قَدِّسُوا ٱلرَّبَّ ٱلْإِلَهَ فِي قُلُوبِكُمْ، مُسْتَعِدِّينَ دَائِمًا لِمُجَاوَبَةِ كُلِّ مَنْ يَسْأَلُكُمْ عَنْ سَبَبِ ٱلرَّجَاءِ ٱلَّذِي فِيكُمْ، بِوَدَاعَةٍ وَخَوْفٍ، ١٥ 15
बल्कि मसीह को ख़ुदावन्द जानकर अपने दिलों में मुक़द्दस समझो; और जो कोई तुम से तुम्हारी उम्मीद की वजह पूछे, उसको जवाब देने के लिए हर वक़्त मुस्त'ईद रहो, मगर हलीमी और ख़ौफ़ के साथ।
وَلَكُمْ ضَمِيرٌ صَالِحٌ، لِكَيْ يَكُونَ ٱلَّذِينَ يَشْتِمُونَ سِيرَتَكُمُ ٱلصَّالِحَةَ فِي ٱلْمَسِيحِ، يُخْزَوْنَ فِي مَا يَفْتَرُونَ عَلَيْكُمْ كَفَاعِلِي شَرٍّ. ١٦ 16
और नियत भी नेक रख्खो ताकि जिन बातों में तुम्हारी बदगोई होती है, उन्हीं में वो लोग शर्मिन्दा हों जो तुम्हारे मसीही नेक चाल — चलन पर ला'न ता'न करते हैं।
لِأَنَّ تَأَلُّمَكُمْ إِنْ شَاءَتْ مَشِيئَةُ ٱللهِ، وَأَنْتُمْ صَانِعُونَ خَيْرًا، أَفْضَلُ مِنْهُ وَأَنْتُمْ صَانِعُونَ شَرًّا. ١٧ 17
क्यूँकि अगर ख़ुदा की यही मर्ज़ी हो कि तुम नेकी करने की वजह से दुःख उठाओ, तो ये बदी करने की वजह से दुःख उठाने से बेहतर है।
فَإِنَّ ٱلْمَسِيحَ أَيْضًا تَأَلَّمَ مَرَّةً وَاحِدَةً مِنْ أَجْلِ ٱلْخَطَايَا، ٱلْبَارُّ مِنْ أَجْلِ ٱلْأَثَمَةِ، لِكَيْ يُقَرِّبَنَا إِلَى ٱللهِ، مُمَاتًا فِي ٱلْجَسَدِ وَلَكِنْ مُحْيىً فِي ٱلرُّوحِ، ١٨ 18
इसलिए कि मसीह ने भी या'नी रास्तबाज़ ने नारास्तों के लिए, गुनाहों के बा'इस एक बार दुःख उठाया ताकि हम को ख़ुदा के पास पहुँचाए; वो जिस्म के ऐ'तबार से मारा गया, लेकिन रूह के ऐ'तबार से तो ज़िन्दा किया गया।
ٱلَّذِي فِيهِ أَيْضًا ذَهَبَ فَكَرَزَ لِلْأَرْوَاحِ ٱلَّتِي فِي ٱلسِّجْنِ، ١٩ 19
इसी में से उसने जा कर उन क़ैदी रूहों में मनादी की,
إِذْ عَصَتْ قَدِيمًا، حِينَ كَانَتْ أَنَاةُ ٱللهِ تَنْتَظِرُ مَرَّةً فِي أَيَّامِ نُوحٍ، إِذْ كَانَ ٱلْفُلْكُ يُبْنَى، ٱلَّذِي فِيهِ خَلَصَ قَلِيلُونَ، أَيْ ثَمَانِي أَنْفُسٍ بِٱلْمَاءِ. ٢٠ 20
जो उस अगले ज़माने में नाफ़रमान थीं जब ख़ुदा नूह के वक़्त में तहम्मील करके ठहरा रहा था और वो नाव तैयार हो रही थी, जिस पर सवार होकर थोड़े से आदमी या'नी आठ जानें पानी के वसीले से बचीं।
ٱلَّذِي مِثَالُهُ يُخَلِّصُنَا نَحْنُ ٱلْآنَ، أَيِ ٱلْمَعْمُودِيَّةُ. لَا إِزَالَةُ وَسَخِ ٱلْجَسَدِ، بَلْ سُؤَالُ ضَمِيرٍ صَالِحٍ عَنِ ٱللهِ، بِقِيَامَةِ يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ، ٢١ 21
और उसी पानी का मुशाबह भी या'नी बपतिस्मा, ईसा मसीह के जी उठने के वसीले से अब तुम्हें बचाता है, उससे जिस्म की नजासत का दूर करना मुराद नहीं बल्कि ख़ालिस नियत से ख़ुदा का तालिब होना मुराद है।
ٱلَّذِي هُوَ فِي يَمِينِ ٱللهِ، إِذْ قَدْ مَضَى إِلَى ٱلسَّمَاءِ، وَمَلَائِكَةٌ وَسَلَاطِينُ وَقُوَّاتٌ مُخْضَعَةٌ لَهُ. ٢٢ 22
वो आसमान पर जाकर ख़ुदा की दहनी तरफ़ बैठा है, और फ़रिश्ते और इख़्तियारात और कुदरतें उसके ताबे' की गई हैं।

< ١ بطرس 3 >

A Dove is Sent Forth from the Ark
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