< اَلْمُلُوكِ ٱلْأَوَّلُ 8 >
حِينَئِذٍ جَمَعَ سُلَيْمَانُ شُيُوخَ إِسْرَائِيلَ وَكُلَّ رُؤُوسِ ٱلْأَسْبَاطِ، رُؤَسَاءَ ٱلْآبَاءِ مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ إِلَى ٱلْمَلِكِ سُلَيْمَانَ فِي أُورُشَلِيمَ، لِإِصْعَادِ تَابُوتِ عَهْدِ ٱلرَّبِّ مِنْ مَدِينَةِ دَاوُدَ، هِيَ صِهْيَوْنُ. | ١ 1 |
तब सुलेमान ने इस्राईल के बुज़ुगों और क़बीलों के सब सरदारों को, जो बनी इस्राईल के आबाई ख़ान्दानों के रईस थे, अपने पास येरूशलेम में जमा' किया ताकि वह दाऊद के शहर से, जो सिय्यून है, ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को ले आएँ।
فَٱجْتَمَعَ إِلَى ٱلْمَلِكِ سُلَيْمَانَ جَمِيعُ رِجَالِ إِسْرَائِيلَ فِي ٱلْعِيدِ فِي شَهْرِ أَيْثَانِيمَ، هُوَ ٱلشَّهْرُ ٱلسَّابِعُ. | ٢ 2 |
इसलिए उस 'ईद में इस्राईल के सब लोग माह — ए — ऐतानीम में, जो सातवाँ महीना है, सुलेमान बादशाह के पास जमा' हुए।
وَجَاءَ جَمِيعُ شُيُوخِ إِسْرَائِيلَ، وَحَمَلَ ٱلْكَهَنَةُ ٱلتَّابُوتَ. | ٣ 3 |
और इस्राईल के सब बुज़ुर्ग आए, और काहिनों ने सन्दूक़ उठाया।
وَأَصْعَدُوا تَابُوتَ ٱلرَّبِّ وَخَيْمَةَ ٱلِٱجْتِمَاعِ مَعَ جَمِيعِ آنِيَةِ ٱلْقُدْسِ ٱلَّتِي فِي ٱلْخَيْمَةِ، فَأَصْعَدَهَا ٱلْكَهَنَةُ وَٱللَّاوِيُّونَ. | ٤ 4 |
और वह ख़ुदावन्द के सन्दूक़ को, और ख़ेमा — ए — इजितमा'अ को, और उन सब मुक़द्दस बर्तनों को जो ख़ेमे के अन्दर थे ले आए; उनको काहिन और लावी लाए थे।
وَٱلْمَلِكُ سُلَيْمَانُ وَكُلُّ جَمَاعَةِ إِسْرَائِيلَ ٱلْمُجْتَمِعِينَ إِلَيْهِ مَعَهُ أَمَامَ ٱلتَّابُوتِ، كَانُوا يَذْبَحُونَ مِنَ ٱلْغَنَمِ وَٱلْبَقَرِ مَا لَا يُحْصَى وَلَا يُعَدُّ مِنَ ٱلْكَثْرَةِ. | ٥ 5 |
और सुलेमान बादशाह ने और उसके साथ इस्राईल की सारी जमा'अत ने, जो उसके पास जमा' थी, सन्दूक़ के सामने खड़े होकर इतनी भेड़ — बकरियाँ और बैल ज़बह किए कि उनको कसरत की वजह से उनकी गिनती या हिसाब न हो सका।
وَأَدْخَلَ ٱلْكَهَنَةُ تَابُوتَ عَهْدِ ٱلرَّبِّ إِلَى مَكَانِهِ فِي مِحْرَابِ ٱلْبَيْتِ فِي قُدْسِ ٱلْأَقْدَاسِ، إِلَى تَحْتِ جَنَاحَيِ ٱلْكَرُوبَيْنِ، | ٦ 6 |
और काहिन ख़ुदावन्द के 'अहद के सन्दूक़ को उसकी जगह पर, उस घर की इल्हामगाह में, या'नी पाकतरीन मकान में 'ऐन करूबियों के बाज़ुओं के नीचे ले आए।
لِأَنَّ ٱلْكَرُوبَيْنِ بَسَطَا أَجْنِحَتَهُمَا عَلَى مَوْضِعِ ٱلتَّابُوتِ، وَظَلَّلَ ٱلْكَرُوبَانِ ٱلتَّابُوتَ وَعِصِيَّهُ مِنْ فَوْقُ. | ٧ 7 |
क्यूँकि करूबी अपने बाज़ुओं को सन्दूक़ की जगह के ऊपर फैलाए हुए थे, और वह करूबी सन्दूक़ को और उसकी चोबों को ऊपर से ढाँके हुए थे।
وَجَذَبُوا ٱلْعِصِيَّ فَتَرَاءَتْ رُؤُوسُ ٱلْعِصِيِّ مِنَ ٱلْقُدْسِ أَمَامَ ٱلْمِحْرَابِ وَلَمْ تُرَ خَارِجًا، وَهِيَ هُنَاكَ إِلَى هَذَا ٱلْيَوْمِ. | ٨ 8 |
और वह चोबें ऐसी लम्बी थीं के उन चोंबों के सिरे पाक मकान से इल्हामगाह के सामने दिखाई देते थे, लेकिन बाहर से नहीं दिखाई देते थे। और वह आज तक वहीं हैं।
لَمْ يَكُنْ فِي ٱلتَّابُوتِ إِلَّا لَوْحَا ٱلْحَجَرِ ٱللَّذَانِ وَضَعَهُمَا مُوسَى هُنَاكَ فِي حُورِيبَ حِينَ عَاهَدَ ٱلرَّبُّ بَنِي إِسْرَائِيلَ عِنْدَ خُرُوجِهِمْ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ. | ٩ 9 |
उस सन्दूक़ में कुछ न था सिवा पत्थर की उन दो लौहों के जिनको वहाँ मूसा ने होरिब में रख दिया था, जिस वक़्त के ख़ुदावन्द ने बनी इस्राईल से जब वह मुल्क — ए — मिस्र से निकल आए, 'अहद बाँधा था।
وَكَانَ لَمَّا خَرَجَ ٱلْكَهَنَةُ مِنَ ٱلْقُدْسِ أَنَّ ٱلسَّحَابَ مَلَأَ بَيْتَ ٱلرَّبِّ، | ١٠ 10 |
फिर ऐसा हुआ कि जब काहिन पाक मकान से बाहर निकल आए, तो ख़ुदावन्द का घर अब्र से भर गया:
وَلَمْ يَسْتَطِعِ ٱلْكَهَنَةُ أَنْ يَقِفُوا لِلْخِدْمَةِ بِسَبَبِ ٱلسَّحَابِ، لِأَنَّ مَجْدَ ٱلرَّبِّ مَلَأَ بَيْتَ ٱلرَّبِّ. | ١١ 11 |
इसलिए काहिन उस अब्र की वजह से ख़िदमत के लिए खड़े न हो सके, इसलिए कि ख़ुदावन्द का घर उसके जलाल से भर गया था।
حِينَئِذٍ تَكَلَّمَ سُلَيْمَانُ: «قَالَ ٱلرَّبُّ إِنَّهُ يَسْكُنُ فِي ٱلضَّبَابِ. | ١٢ 12 |
तब सुलेमान ने कहा कि “ख़ुदावन्द ने फ़रमाया था कि वह गहरी तारीकी में रहेगा।
إِنِّي قَدْ بَنَيْتُ لَكَ بَيْتَ سُكْنَى، مَكَانًا لِسُكْنَاكَ إِلَى ٱلْأَبَدِ». | ١٣ 13 |
मैंने हक़ीक़त में एक घर तेरे रहने के लिए, बल्कि तेरी हमेशा की सुकूनत के वास्ते एक जगह बनाई है।”
وَحَوَّلَ ٱلْمَلِكُ وَجْهَهُ وَبَارَكَ كُلَّ جُمْهُورِ إِسْرَائِيلَ، وَكُلُّ جُمْهُورِ إِسْرَائِيلَ وَاقِفٌ. | ١٤ 14 |
और बादशाह ने अपना मुँह फेरा और इस्राईल की सारी जमा'अत को बरकत दी, और इस्राईल की सारी जमा'अत खड़ी रही;
وَقَالَ: «مُبَارَكٌ ٱلرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ ٱلَّذِي تَكَلَّمَ بِفَمِهِ إِلَى دَاوُدَ أَبِي وَأَكْمَلَ بِيَدِهِ قَائِلًا: | ١٥ 15 |
और उसने कहा कि ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा मुबारक हो! जिसने अपने मुँह से मेरे बाप दाऊद से कलाम किया, और उसे अपने हाथ से यह कह कर पूरा किया कि।
مُنْذُ يَوْمَ أَخْرَجْتُ شَعْبِي إِسْرَائِيلَ مِنْ مِصْرَ لَمْ أَخْتَرْ مَدِينَةً مِنْ جَمِيعِ أَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ لِبِنَاءِ بَيْتٍ لِيَكُونَ ٱسْمِي هُنَاكَ، بَلِ إِنَّمَا ٱخْتَرْتُ دَاوُدَ لِيَكُونَ عَلَى شَعْبِي إِسْرَائِيلَ. | ١٦ 16 |
“जिस दिन से मैं अपनी क़ौम इस्राईल को मिस्र से निकाल लाया, मैंने इस्राईल के सब क़बीलों में से भी किसी शहर को नहीं चुना कि एक घर बनाया जाए, ताकि मेरा नाम वहाँ हो; लेकिन मैंने दाऊद को चुन लिया कि वह मेरी क़ौम इस्राईल पर हाकिम हो।
وَكَانَ فِي قَلْبِ دَاوُدَ أَبِي أَنْ يَبْنِيَ بَيْتًا لِٱسْمِ ٱلرَّبِّ إِلَهِ إِسْرَائِيلَ. | ١٧ 17 |
और मेरे बाप दाऊद के दिल में था कि ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए एक घर बनाए।
فَقَالَ ٱلرَّبُّ لِدَاوُدَ أَبِي: مِنْ أَجْلِ أَنَّهُ كَانَ فِي قَلْبِكَ أَنْ تَبْنِيَ بَيْتًا لِٱسْمِي، قَدْ أَحْسَنْتَ بِكَوْنِهِ فِي قَلْبِكَ. | ١٨ 18 |
लेकिन ख़ुदावन्द ने मेरे बाप दाऊद से कहा, 'चूँकि मेरे नाम के लिए एक घर बनाने का ख़्याल तेरे दिल में था, तब तू ने अच्छा किया कि अपने दिल में ऐसा ठाना;
إِلَّا إِنَّكَ أَنْتَ لَا تَبْنِي ٱلْبَيْتَ، بَلِ ٱبْنُكَ ٱلْخَارِجُ مِنْ صُلْبِكَ هُوَ يَبْنِي ٱلْبَيْتَ لِٱسْمِي. | ١٩ 19 |
तोभी तू उस घर को न बनाना, बल्कि तेरा बेटा जो तेरे सुल्ब से निकलेगा वह मेरे नाम के लिए घर बनाएगा।
وَأَقَامَ ٱلرَّبُّ كَلَامَهُ ٱلَّذِي تَكَلَّمَ بِهِ، وَقَدْ قُمْتُ أَنَا مَكَانَ دَاوُدَ أَبِي وَجَلَسْتُ عَلَى كُرْسِيِّ إِسْرَائِيلَ كَمَا تَكَلَّمَ ٱلرَّبُّ، وَبَنَيْتُ ٱلْبَيْتَ لِٱسْمِ ٱلرَّبِّ إِلَهِ إِسْرَائِيلَ، | ٢٠ 20 |
और ख़ुदावन्द ने अपनी बात, जो उसने कही थी, क़ाईम की है; क्यूँकि मैं अपने बाप दाऊद की जगह उठा हूँ, और जैसा ख़ुदावन्द ने वा'दा किया था, मैं इस्राईल के तख़्त पर बैठा हूँ और मैंने ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा के नाम के लिए उस घर को बनाया है।
وَجَعَلْتُ هُنَاكَ مَكَانًا لِلتَّابُوتِ ٱلَّذِي فِيهِ عَهْدُ ٱلرَّبِّ ٱلَّذِي قَطَعَهُ مَعَ آبَائِنَا عِنْدَ إِخْرَاجِهِ إِيَّاهُمْ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ». | ٢١ 21 |
और मैंने वहाँ एक जगह उस सन्दूक़ के लिए मुक़र्रर कर दी है, जिसमें ख़ुदावन्द का वह 'अहद है जो उसने हमारे बाप — दादा से, जब वह उनको मुल्क — ए — मिस्र से निकाल लाया, बाँधा था।”
وَوَقَفَ سُلَيْمَانُ أَمَامَ مَذْبَحِ ٱلرَّبِّ تُجَاهَ كُلِّ جَمَاعَةِ إِسْرَائِيلَ، وَبَسَطَ يَدَيْهِ إِلَى ٱلسَّمَاءِ | ٢٢ 22 |
और सुलेमान ने इस्राईल की सारी जमा'अत के सामने ख़ुदावन्द के मज़बह के आगे खड़े होकर अपने हाथ आसमान की तरफ़ फ़ैलाए
وَقَالَ: «أَيُّهَا ٱلرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ، لَيْسَ إِلَهٌ مِثْلَكَ فِي ٱلسَّمَاءِ مِنْ فَوْقُ، وَلَا عَلَى ٱلْأَرْضِ مِنْ أَسْفَلُ، حَافِظُ ٱلْعَهْدِ وَٱلرَّحْمَةِ لِعَبِيدِكَ ٱلسَّائِرِينَ أَمَامَكَ بِكُلِّ قُلُوبِهِمْ. | ٢٣ 23 |
और कहा, ऐ ख़ुदावन्द, इस्राईल के ख़ुदा! तेरी तरह न तो ऊपर आसमान में, न नीचे ज़मीन पर कोई ख़ुदा है; तू अपने उन बन्दों के लिए जो तेरे सामने अपने सारे दिल से चलते हैं, 'अहद और रहमत को निगाह रखता है।
ٱلَّذِي قَدْ حَفِظْتَ لِعَبْدِكَ دَاوُدَ أَبِي مَا كَلَّمْتَهُ بِهِ، فَتَكَلَّمْتَ بِفَمِكَ وَأَكْمَلْتَ بِيَدِكَ كَهَذَا ٱلْيَوْمِ. | ٢٤ 24 |
तू ने अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के हक़ में वह बात क़ाईम रख्खी, जिसका तू ने उससे वा'दा किया था; तू ने अपने मुँह से फ़रमाया और अपने हाथ से उसे पूरा किया, जैसा आज के दिन है।
وَٱلْآنَ أَيُّهَا ٱلرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ ٱحْفَظْ لِعَبْدِكَ دَاوُدَ أَبِي مَا كَلَّمْتَهُ بِهِ قَائِلًا: لَا يُعْدَمُ لَكَ أَمَامِي رَجُلٌ يَجْلِسُ عَلَى كُرْسِيِّ إِسْرَائِيلَ، إِنْ كَانَ بَنُوكَ إِنَّماَ يَحْفَظُونَ طُرُقَهُمْ حَتَّى يَسِيرُوا أَمَامِي كَمَا سِرْتَ أَنْتَ أَمَامِي. | ٢٥ 25 |
इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा! तू अपने बन्दा मेरे बाप दाऊद के साथ उस क़ौल को भी पूरा कर जो तूने उससे किया था कि 'तेरे आदमियों से मेरे सामने इस्राईल के तख़्त पर बैठने वाले की कमी न होगी; बशर्ते कि तेरी औलाद, जैसे तू मेरे सामने चलता रहा वैसे ही मेरे सामने चलने के लिए, अपने रास्ते की एहतियात रखखे।
وَٱلْآنَ يَا إِلَهَ إِسْرَائِيلَ فَلْيَتَحَقَّقْ كَلَامُكَ ٱلَّذِي كَلَّمْتَ بِهِ عَبْدَكَ دَاوُدَ أَبِي. | ٢٦ 26 |
इसलिए अब ऐ इस्राईल के खुदा, तेरा वह क़ौल सच्चा साबित किया जाए, जो तू ने अपने बन्दे मेरे बाप दाऊद से किया।
لِأَنَّهُ هَلْ يَسْكُنُ ٱللهُ حَقًّا عَلَى ٱلْأَرْضِ؟ هُوَذَا ٱلسَّمَاوَاتُ وَسَمَاءُ ٱلسَّمَاوَاتِ لَا تَسَعُكَ، فَكَمْ بِٱلْأَقَلِّ هَذَا ٱلْبَيْتُ ٱلَّذِي بَنَيْتُ؟ | ٢٧ 27 |
लेकिन क्या ख़ुदा हक़ीक़त में ज़मीन पर सुकूनत करेगा? देख, आसमान बल्कि आसमानों के आसमान में भी तू समा नहीं सकता, तो यह घर तो कुछ भी नहीं जिसे मैंने बनाया।
فَٱلْتَفِتْ إِلَى صَلَاةِ عَبْدِكَ وَإِلَى تَضَرُّعِهِ أَيُّهَا ٱلرَّبُّ إِلَهِي، وَٱسْمَعِ ٱلصُّرَاخَ وَٱلصَّلَاةَ ٱلَّتِي يُصَلِّيهَا عَبْدُكَ أَمَامَكَ ٱلْيَوْمَ. | ٢٨ 28 |
तोभी, ऐ ख़ुदावन्द मेरे ख़ुदा, अपने बन्दा की दुआ और मुनाजात का लिहाज़ करके, उस फ़रियाद और दुआ को सुन ले जो तेरा बन्दा आज के दिन तेरे सामने करता है,
لِتَكُونَ عَيْنَاكَ مَفْتُوحَتَيْنِ عَلَى هَذَا ٱلْبَيْتِ لَيْلًا وَنَهَارًا، عَلَى ٱلْمَوْضِعِ ٱلَّذِي قُلْتَ: إِنَّ ٱسْمِي يَكُونُ فِيهِ، لِتَسْمَعَ ٱلصَّلَاةَ ٱلَّتِي يُصَلِّيهَا عَبْدُكَ فِي هَذَا ٱلْمَوْضِعِ. | ٢٩ 29 |
ताकि तेरी आँखें इस घर की तरफ़, या'नी उसी जगह की तरफ़ जिसकी ज़रिए' तू ने फ़रमाया कि 'मैं अपना नाम वहाँ रखूँगा,' दिन और रात खुली रहें; ताकि तू उस दुआ को सुने जो तेरा बन्दा इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके तुझ से करेगा।
وَٱسْمَعْ تَضَرُّعَ عَبْدِكَ وَشَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ ٱلَّذِينَ يُصَلُّونَ فِي هَذَا ٱلْمَوْضِعِ، وَٱسْمَعْ أَنْتَ فِي مَوْضِعِ سُكْنَاكَ فِي ٱلسَّمَاءِ، وَإِذَا سَمِعْتَ فَٱغْفِرْ. | ٣٠ 30 |
और तू अपने बन्दा और अपनी क़ौम इस्राईल की मुनाजात को, जब वह इस जगह की तरफ रुख करके करें सुन लेना, बल्कि तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और सुनकर मु'आफ़ कर देना।
إِذَا أَخْطَأَ أَحَدٌ إِلَى صَاحِبِهِ وَوَضَعَ عَلَيْهِ حَلْفًا لِيُحَلِّفَهُ، وَجَاءَ ٱلْحَلْفُ أَمَامَ مَذْبَحِكَ فِي هَذَا ٱلْبَيْتِ، | ٣١ 31 |
“अगर कोई शख़्स अपने पड़ौसी का गुनाह करे, और उसे क़सम खिलाने के लिए उसको हल्फ़ दिया जाए, और वह आकर इस घर में तेरे मज़बह के आगे क़सम खाए:
فَٱسْمَعْ أَنْتَ فِي ٱلسَّمَاءِ وَٱعْمَلْ وَٱقْضِ بَيْنَ عَبِيدِكَ، إِذْ تَحْكُمُ عَلَى ٱلْمُذْنِبِ فَتَجْعَلُ طَرِيقَهُ عَلَى رَأْسِهِ، وَتُبَرِّرُ ٱلْبَارَّ إِذْ تُعْطِيهِ حَسَبَ بِرِّهِ. | ٣٢ 32 |
तो तू आसमान पर से सुनकर 'अमल करना और अपने बन्दों का इन्साफ़ करना, और बदकार पर फ़तवा लगाकर उसके 'आमाल को उसी के सिर डालना, और सादिक़ को सच्चा ठहराकर उसकी सदाक़त के मुताबिक उसे बदला देना।
إِذَا ٱنْكَسَرَ شَعْبُكَ إِسْرَائِيلُ أَمَامَ ٱلْعَدُوِّ لِأَنَّهُمْ أَخْطَأُوا إِلَيْكَ، ثُمَّ رَجَعُوا إِلَيْكَ وَٱعْتَرَفُوا بِٱسْمِكَ وَصَلَّوْا وَتَضَرَّعُوا إِلَيْكَ نَحْوَ هَذَا ٱلْبَيْتِ، | ٣٣ 33 |
जब तेरी क़ौम इस्राईल तेरा गुनाह करने के ज़रिए' अपने दुश्मनों से शिकस्त खाए और फिर तेरी तरफ़ रुजू' लाये और तेरे नाम का इकरार करके इस घर में तुझ से दुआ और मुनाजात करे;
فَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ وَٱغْفِرْ خَطِيَّةَ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، وَأَرْجِعْهُمْ إِلَى ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي أَعْطَيْتَهَا لِآبَائِهِمْ. | ٣٤ 34 |
तो तू आसमान पर से सुनकर अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ करना, और उनको इस मुल्क में जो तूने उनके बाप दादा को दिया फिर ले आना।
«إِذَا أُغْلِقَتِ ٱلسَّمَاءُ وَلَمْ يَكُنْ مَطَرٌ، لِأَنَّهُمْ أَخْطَأُوا إِلَيْكَ، ثُمَّ صَلَّوْا فِي هَذَا ٱلْمَوْضِعِ وَٱعْتَرَفُوا بِٱسْمِكَ، وَرَجَعُوا عَنْ خَطِيَّتِهِمْ لِأَنَّكَ ضَايَقْتَهُمْ، | ٣٥ 35 |
“जब इस वजह से कि उन्होंने तेरा गुनाह किया हो, आसमान बन्द हो जाए और बारिश न हो, और वह इस मक़ाम की तरफ़ रुख़ करके दुआ करें और तेरे नाम का इक़रार करें, और अपने गुनाह से बाज़ आएँ जब तू उनको दुख दे;
فَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ وَٱغْفِرْ خَطِيَّةَ عَبِيدِكَ وَشَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، فَتُعَلِّمَهُمُ ٱلطَّرِيقَ ٱلصَّالِحَ ٱلَّذِي يَسْلُكُونَ فِيهِ، وَأَعْطِ مَطَرًا عَلَى أَرْضِكَ ٱلَّتِي أَعْطَيْتَهَا لِشَعْبِكَ مِيرَاثًا. | ٣٦ 36 |
तो तू आसमान पर से सुन कर अपने बन्दों और अपनी क़ौम इस्राईल का गुनाह मु'आफ़ कर देना, क्यूँकि तू उनको उस अच्छी रास्ते की ता'लीम देता है जिस पर उनको चलना फ़र्ज़ है, और अपने मुल्क पर जिसे तू ने अपनी क़ौम को मीरास के लिए दिया है, पानी बरसाना।
إِذَا صَارَ فِي ٱلْأَرْضِ جُوعٌ، إِذَا صَارَ وَبَأٌ، إِذَا صَارَ لَفْحٌ أَوْ يَرَقَانٌ أَوْ جَرَادٌ جَرْدَمٌ، أَوْ إِذَا حَاصَرَهُ عَدُوُّهُ فِي أَرْضِ مُدُنِهِ، فِي كُلِّ ضَرْبَةٍ وَكُلِّ مَرَضٍ، | ٣٧ 37 |
“अगर मुल्क में काल हो, अगर वबा हो, अगर बाद — ऐ — समूम या गेरूई या टिड्डी या कमला हो, अगर उनके दुश्मन उनके शहरों के मुल्क में उनको घेर लें, ग़रज़ कैसी ही बला कैसा ही रोग हो;
فَكُلُّ صَلَاةٍ وَكُلُّ تَضَرُّعٍ تَكُونُ مِنْ أَيِّ إِنْسَانٍ كَانَ مِنْ كُلِّ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، ٱلَّذِينَ يَعْرِفُونَ كُلُّ وَاحِدٍ ضَرْبَةَ قَلْبِهِ، فَيَبْسُطُ يَدَيْهِ نَحْوَ هَذَا ٱلْبَيْتِ، | ٣٨ 38 |
तो जो दुआ और मुनाजात किसी एक शख़्स या तेरी क़ौम इस्राईल की तरफ़ से ही, जिनमें से हर शख़्स अपने दिल का दुख जानकर अपने हाथ इस घर की तरफ़ फैलाए;
فَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ مَكَانِ سُكْنَاكَ وَٱغْفِرْ، وَٱعْمَلْ وَأَعْطِ كُلَّ إِنْسَانٍ حَسَبَ كُلِّ طُرُقِهِ كَمَا تَعْرِفُ قَلْبَهُ. لِأَنَّكَ أَنْتَ وَحْدَكَ قَدْ عَرَفْتَ قُلُوبَ كُلِّ بَنِي ٱلْبَشَرِ، | ٣٩ 39 |
तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकुनतगाह है सुनकर मु'आफ़ कर देना, और ऐसा करना कि हर आदमी को, जिसके दिल को तू जानता है, उसी की सारे चाल चलन के मुताबिक़ बदला देना; क्यूँकि सिर्फ़ तू ही सब बनी — आदम के दिलों को जानता है;
لِكَيْ يَخَافُوكَ كُلَّ ٱلْأَيَّامِ ٱلَّتِي يَحْيَوْنَ فِيهَا عَلَى وَجْهِ ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي أَعْطَيْتَ لِآبَائِنَا. | ٤٠ 40 |
ताकि जितनी मुद्दत तक वह उस मुल्क में जिसे तू ने हमारे बाप — दादा को दिया ज़िन्दा रहें, तेरा ख़ौफ़ माने।
وَكَذَلِكَ ٱلْأَجْنَبِيُّ ٱلَّذِي لَيْسَ مِنْ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ هُوَ، وَجَاءَ مِنْ أَرْضٍ بَعِيدَةٍ مِنْ أَجْلِ ٱسْمِكَ، | ٤١ 41 |
'अब रहा वह परदेसी जो तेरी क़ौम इस्राईल में से नहीं है, वह जब दूर मुल्क से तेरे नाम की ख़ातिर आए,
لِأَنَّهُمْ يَسْمَعُونَ بِٱسْمِكَ ٱلْعَظِيمِ وَبِيَدِكَ ٱلْقَوِيَّةِ وَذِرَاعِكَ ٱلْمَمْدُودَةِ، فَمَتَى جَاءَ وَصَلَّى فِي هَذَا ٱلْبَيْتِ، | ٤٢ 42 |
क्यूँकि वह तेरे बुज़ुर्ग नाम और क़वी हाथ और बुलन्द बाज़ू का हाल सुनेंगे इसलिए जब वह आए और इस घर की तरफ़ रुख़ करके दुआ करे,
فَٱسْمَعْ أَنْتَ مِنَ ٱلسَّمَاءِ مَكَانِ سُكْنَاكَ، وَٱفْعَلْ حَسَبَ كُلِّ مَا يَدْعُو بِهِ إِلَيْكَ ٱلْأَجْنَبِيُّ، لِكَيْ يَعْلَمَ كُلُّ شُعُوبِ ٱلْأَرْضِ ٱسْمَكَ، فَيَخَافُوكَ كَشَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، وَلِكَيْ يَعْلَمُوا أَنَّهُ قَدْ دُعِيَ ٱسْمُكَ عَلَى هَذَا ٱلْبَيْتِ ٱلَّذِي بَنَيْتُ. | ٤٣ 43 |
तो तू आसमान पर से जो तेरी सुकूनत गाह है सुन लेना, और जिस — जिस बात के लिए वह परदेसी तुझ से फ़रयाद करे तू उसके मुताबिक़ करना, ताकि ज़मीन की सब क़ौमें बनी इस्राईल की मानिन्द तेरे नाम को पहचाने मानें, और जान लें कि यह घर जिसे मैंने बनाया है तेरे नाम का कहलाता है।
«إِذَا خَرَجَ شَعْبُكَ لِمُحَارَبَةِ عَدُوِّهِ فِي ٱلطَّرِيقِ ٱلَّذِي تُرْسِلُهُمْ فِيهِ، وَصَلَّوْا إِلَى ٱلرَّبِّ نَحْوَ ٱلْمَدِينَةِ ٱلَّتِي ٱخْتَرْتَهَا وَٱلْبَيْتِ ٱلَّذِي بَنَيْتُهُ لِٱسْمِكَ، | ٤٤ 44 |
'अगर तेरे लोग चाहे किसी रास्ते से तू उनको भेजे, अपने दुश्मनों से लड़ने को निकलें, और वह ख़ुदावन्द से उस शहर की तरफ़ जिसे तू ने चुना है, और उस घर की तरफ़ जिसे मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके दुआ करें,
فَٱسْمَعْ مِنَ ٱلسَّمَاءِ صَلَاتَهُمْ وَتَضَرُّعَهُمْ وَٱقْضِ قَضَاءَهُمْ. | ٤٥ 45 |
तो तू आसमान पर से उनकी दुआ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना।
إِذَا أَخْطَأُوا إِلَيْكَ، لِأَنَّهُ لَيْسَ إِنْسَانٌ لَا يُخْطِئُ، وَغَضِبْتَ عَلَيْهِمْ وَدَفَعْتَهُمْ أَمَامَ ٱلْعَدُوِّ وَسَبَاهُمْ، سَابُوهُمْ إِلَى أَرْضِ ٱلْعَدُوِّ، بَعِيدَةً أَوْ قَرِيبَةً، | ٤٦ 46 |
'अगर वह तेरा गुनाह करें क्यूँकि कोई ऐसा आदमी नहीं जो गुनाह न करता हो और तू उनसे नाराज़ होकर उनको दुश्मन के हवाले कर दे, ऐसा कि वह दुश्मन उनको ग़ुलाम करके अपने मुल्क में ले जाए, ख़्वाह वह दूर हो या नज़दीक,
فَإِذَا رَدُّوا إِلَى قُلُوبِهِمْ فِي ٱلْأَرْضِ ٱلَّتِي يُسْبَوْنَ إِلَيْهَا وَرَجَعُوا وَتَضَرَّعُوا إِلَيْكَ فِي أَرْضِ سَبْيِهِمْ قَائِلِينَ: قَدْ أَخْطَأْنَا وَعَوَّجْنَا وَأَذْنَبْنَا. | ٤٧ 47 |
तोभी अगर वह उस मुल्क में जहाँ वह ग़ुलाम होकर पहुँचाए गए, होश में आयें और रुजू' लायें और अपने ग़ुलाम करने वालों के मुल्क में तुझसे मुनाजात करें और कहें कि हम ने गुनाह किया, हम टेढ़ी चाल चले, और हम ने शरारत की;
وَرَجَعُوا إِلَيْكَ مِنْ كُلِّ قُلُوبِهِمْ وَمِنْ كُلِّ أَنْفُسِهِمْ فِي أَرْضِ أَعْدَائِهِمْ ٱلَّذِينَ سَبَوْهُمْ، وَصَلَّوْا إِلَيْكَ نَحْوَ أَرْضِهِمْ ٱلَّتِي أَعْطَيْتَ لِآبَائِهِمْ، نَحْوَ ٱلْمَدِينَةِ ٱلَّتِي ٱخْتَرْتَ وَٱلْبَيْتِ ٱلَّذِي بَنَيْتُ لِٱسْمِكَ، | ٤٨ 48 |
इसलिए अगर वह अपने दुश्मनों के मुल्क में जो उनको क़ैद करके ले गए, अपने सारे दिल और अपनी सारी जान से तेरी तरफ़ फिरें और अपने मुल्क की तरफ़, जो तू ने उनके बाप — दादा को दिया, और इस शहर की तरफ़, जिसे तू ने चुन लिया, और इस घर की तरफ़, जो मैंने तेरे नाम के लिए बनाया है, रुख़ करके तुझ से दुआ करें,
فَٱسْمَعْ فِي ٱلسَّمَاءِ مَكَانِ سُكْنَاكَ صَلَاتَهُمْ وَتَضَرُّعَهُمْ وَٱقْضِ قَضَاءَهُمْ، | ٤٩ 49 |
तो तू आसमान पर से, जो तेरी सुकूनत गाह है, उनकी दुआ और मुनाजात सुनकर उनकी हिमायत करना,
وَٱغْفِرْ لِشَعْبِكَ مَا أَخْطَأُوا بِهِ إِلَيْكَ، وَجَمِيعَ ذُنُوبِهِمِ ٱلَّتِي أَذْنَبُوا بِهَا إِلَيْكَ، وَأَعْطِهِمْ رَحْمَةً أَمَامَ ٱلَّذِينَ سَبَوْهُمْ فَيَرْحَمُوهُمْ، | ٥٠ 50 |
और अपनी क़ौम को, जिसने तेरा गुनाह किया, और उनकी सब ख़ताओं को, जो उनसे तेरे ख़िलाफ़ सरज़द हों, मु'आफ़ कर देना, और उनके ग़ुलाम करने वालों के आगे उन पर रहम करना ताकि वह उन पर रहम करें।
لِأَنَّهُمْ شَعْبُكَ وَمِيرَاثُكَ ٱلَّذِينَ أَخْرَجْتَ مِنْ مِصْرَ، مِنْ وَسَطِ كُورِ ٱلْحَدِيدِ. | ٥١ 51 |
क्यूँकि वह तेरी क़ौम और तेरी मीरास हैं, जिसे तू मिस्र से लोहे के भट्टे के बीच में से निकाल लाया।
لِتَكُونَ عَيْنَاكَ مَفْتُوحَتَيْنِ نَحْوَ تَضَرُّعِ عَبْدِكَ وَتَضَرُّعِ شَعْبِكَ إِسْرَائِيلَ، فَتُصْغِيَ إِلَيْهِمْ فِي كُلِّ مَا يَدْعُونَكَ، | ٥٢ 52 |
सो तेरी आँखें तेरे बन्दा की मुनाजात और तेरी क़ौम इस्राईल की मुनाजात की तरफ़ खुली रहें, ताकि जब कभी वह तुझ से फ़रियाद करें, तू उनकी सुने;
لِأَنَّكَ أَنْتَ أَفْرَزْتَهُمْ لَكَ مِيرَاثًا مِنْ جَمِيعِ شُعُوبِ ٱلْأَرْضِ، كَمَا تَكَلَّمْتَ عَنْ يَدِ مُوسَى عَبْدِكَ عِنْدَ إِخْرَاجِكَ آبَاءَنَا مِنْ مِصْرَ يَاسَيِّدِي ٱلرَّبَّ». | ٥٣ 53 |
क्यूँकि तू ने ज़मीन की सब क़ौमों में से उनको अलग किया कि वह तेरी मीरास हों, जैसा ऐ मालिक ख़ुदावन्द, तू ने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' फ़रमाया, जिस वक़्त तू हमारे बाप — दादा को मिस्र से निकाल लाया।”
وَكَانَ لَمَّا ٱنْتَهَى سُلَيْمَانُ مِنَ ٱلصَّلَاةِ إِلَى ٱلرَّبِّ بِكُلِّ هَذِهِ ٱلصَّلَاةِ وَٱلتَّضَرُّعِ، أَنَّهُ نَهَضَ مِنْ أَمَامِ مَذْبَحِ ٱلرَّبِّ، مِنَ ٱلْجُثُوِّ عَلَى رُكْبَتَيْهِ، وَيَدَاهُ مَبْسُوطَتَانِ نَحْوَ ٱلسَّمَاءِ، | ٥٤ 54 |
और ऐसा हुआ कि जब सुलेमान ख़ुदावन्द से यह सब मुनाजात कर चुका, तो वह ख़ुदावन्द के मज़बह के सामने से, जहाँ वह अपने हाथ आसमान की तरफ़ फैलाए हुए घुटने टेके था, उठा।
وَوَقَفَ وَبَارَكَ كُلَّ جَمَاعَةِ إِسْرَائِيلَ بِصَوْتٍ عَالٍ قَائِلًا: | ٥٥ 55 |
और खड़े होकर इस्राईल की सारी जमा'अत को ऊँची आवाज़ से बरकत दी और कहा,
«مُبَارَكٌ ٱلرَّبُّ ٱلَّذِي أَعْطَى رَاحَةً لِشَعْبِهِ إِسْرَائِيلَ حَسَبَ كُلِّ مَا تَكَلَّمَ بِهِ، وَلَمْ تَسْقُطْ كَلِمَةٌ وَاحِدَةٌ مِنْ كُلِّ كَلَامِهِ ٱلصَّالِحِ ٱلَّذِي تَكَلَّمَ بِهِ عَنْ يَدِ مُوسَى عَبْدِهِ. | ٥٦ 56 |
“ख़ुदावन्द, जिसने अपने सब वा'दों के मुताबिक़ अपनी क़ौम इस्राईल को आराम बख़्शा मुबारक हो; क्यूँकि जो सारा अच्छा वा'दा उसने अपने बन्दे मूसा की ज़रिए' किया, उसमें से एक बात भी ख़ाली न गई।
لِيَكُنِ ٱلرَّبُّ إِلَهُنَا مَعَنَا كَمَا كَانَ مَعَ آبَائِنَا فَلَا يَتْرُكَنَا وَلَا يَرْفُضَنَا. | ٥٧ 57 |
ख़ुदावन्द हमारा ख़ुदा हमारे साथ रहे जैसे वह हमारे बाप — दादा के साथ रहा, और न हम को तर्क करे न छोड़े।
لِيَمِيلَ بِقُلُوبِنَا إِلَيْهِ لِكَيْ نَسِيرَ فِي جَمِيعِ طُرُقِهِ وَنَحْفَظَ وَصَايَاهُ وَفَرَائِضَهُ وَأَحْكَامَهُ ٱلَّتِي أَوْصَى بِهَا آبَاءَنَا. | ٥٨ 58 |
ताकि वह हमारे दिलों को अपनी तरफ़ माइल करे कि हम उसकी सब रास्तों पर चलें, और उसके फ़रमानों और क़ानून और अहकाम को, जो उसने हमारे बाप — दादा को दिए मानें।
وَلِيَكُنْ كَلَامِي هَذَا ٱلَّذِي تَضَرَّعْتُ بِهِ أَمَامَ ٱلرَّبِّ قَرِيبًا مِنَ ٱلرَّبِّ إِلَهِنَا نَهَارًا وَلَيْلًا، لِيَقْضِيَ قَضَاءَ عَبْدِهِ وَقَضَاءَ شَعْبِهِ إِسْرَائِيلَ، أَمْرَ كُلِّ يَوْمٍ فِي يَوْمِهِ. | ٥٩ 59 |
और यह मेरी बातें जिनको मैंने ख़ुदावन्द के सामने मुनाजात में पेश किया है, दिन और रात ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के नज़दीक रहें, ताकि वह अपने बन्दा की दाद और अपनी क़ौम इस्राईल की दाद हर दिन की ज़रूरत के मुताबिक़ दे;
لِيَعْلَمَ كُلُّ شُعُوبِ ٱلْأَرْضِ أَنَّ ٱلرَّبَّ هُوَ ٱللهُ وَلَيْسَ آخَرُ. | ٦٠ 60 |
जिससे ज़मीन की सब क़ौमें जान लें कि ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है और उसके सिवा और कोई नहीं।
فَلْيَكُنْ قَلْبُكُمْ كَامِلًا لَدَى ٱلرَّبِّ إِلَهِنَا إِذْ تَسِيرُونَ فِي فَرَائِضِهِ وَتَحْفَظُونَ وَصَايَاهُ كَهَذَا ٱلْيَوْمِ». | ٦١ 61 |
इसलिए तुम्हारा दिल आज की तरह ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के साथ उसके क़ानून पर चलने, और उसके हुक्मों को मानने के लिए कामिल रहे।”
ثُمَّ إِنَّ ٱلْمَلِكَ وَجَمِيعَ إِسْرَائِيلَ مَعَهُ ذَبَحُوا ذَبَائِحَ أَمَامَ ٱلرَّبِّ، | ٦٢ 62 |
और बादशाह ने और उसके साथ सारे इस्राईल ने ख़ुदावन्द के सामने क़ुर्बानी पेश की।
وَذَبَحَ سُلَيْمَانُ ذَبَائِحَ ٱلسَّلَامَةِ ٱلَّتِي ذَبَحَهَا لِلرَّبِّ: مِنَ ٱلْبَقَرِ ٱثْنَيْنِ وَعِشْرِينَ أَلْفًا، وَمِنَ ٱلْغَنَمِ مِئَةَ أَلْفٍ وَعِشْرِينَ أَلْفًا، فَدَشَّنَ ٱلْمَلِكُ وَجَمِيعُ بَنِي إِسْرَائِيلَ بَيْتَ ٱلرَّبِّ. | ٦٣ 63 |
सुलेमान ने जो सलामती के ज़बीहों की क़ुर्बानी ख़ुदावन्द के सामने पेशकीं उसमें उसने बाईस हज़ार बैल और एक लाख बीस हज़ार भेड़ें पेश कीं। ऐसे बादशाह ने और सब बनी — इस्राईल ने ख़ुदावन्द का घर मख़्सूस किया।
فِي ذَلِكَ ٱلْيَوْمِ قَدَّسَ ٱلْمَلِكُ وَسَطَ ٱلدَّارِ ٱلَّتِي أَمَامَ بَيْتِ ٱلرَّبِّ، لِأَنَّهُ قَرَّبَ هُنَاكَ ٱلْمُحْرَقَاتِ وَٱلتَّقْدِمَاتِ وَشَحْمَ ذَبَائِحِ ٱلسَّلَامَةِ، لِأَنَّ مَذْبَحَ ٱلنُّحَاسِ ٱلَّذِي أَمَامَ ٱلرَّبِّ كَانَ صَغِيرًا عَنْ أَنْ يَسَعَ ٱلْمُحْرَقَاتِ وَٱلتَّقْدِمَاتِ وَشَحْمَ ذَبَائِحِ ٱلسَّلَامَةِ. | ٦٤ 64 |
उसी दिन बादशाह ने सहन के दर्मियानी हिस्से को जो ख़ुदावन्द के घर के सामने था मुक़द्दस किया, क्यूँकि उसने वहीं सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बीहों की चर्बी पेश की, इसलिए कि पीतल का मज़बह जो ख़ुदावन्द के सामने था, इतना छोटा था कि उस पर सोख़्तनी क़ुर्बानी और नज़र की क़ुर्बानी और सलामती के ज़बोहों की चर्बी के लिए गुन्जाइश न थी।
وَعَيَّدَ سُلَيْمَانُ ٱلْعِيدَ فِي ذَلِكَ ٱلْوَقْتِ وَجَمِيعُ إِسْرَائِيلَ مَعَهُ، جُمْهُورٌ كَبِيرٌ مِنْ مَدْخَلِ حَمَاةَ إِلَى وَادِي مِصْرَ، أَمَامَ ٱلرَّبِّ إِلَهِنَا سَبْعَةَ أَيَّامٍ وَسَبْعَةَ أَيَّامٍ، أَرْبَعَةَ عَشَرَ يَوْمًا. | ٦٥ 65 |
इसलिए सुलेमान ने और उसके साथ सारे इस्राईल, या'नी एक बड़ी जमा'अत, ने जो हमात के मदख़ल से लेकर मिस्र की नहर तक की हुदूद से आई थी, ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा के सामने सात दिन और फिर सात दिन और, या'नी चौदह दिन, 'ईद मनाई।
وَفِي ٱلْيَوْمِ ٱلثَّامِنِ صَرَفَ ٱلشَّعْبَ، فَبَارَكُوا ٱلْمَلِكَ وَذَهَبُوا إِلَى خِيَمِهِمْ فَرِحِينَ وَطَيِّبِي ٱلْقُلُوبِ، لِأَجْلِ كُلِّ ٱلْخَيْرِ ٱلَّذِي عَمِلَ ٱلرَّبُّ لِدَاوُدَ عَبْدِهِ وَلِإِسْرَائِيلَ شَعْبِهِ. | ٦٦ 66 |
और आठवें दिन उसने उन लोगों को रुख़सत कर दिया। तब उन्होंने बादशाह को मुबारकबाद दी, और उस सारी नेकी के ज़रिए' जो ख़ुदावन्द ने अपने बन्दा दाऊद और अपनी क़ौम इस्राईल से की थी, अपने डेरों को दिल में ख़ुश और ख़ुश होकर लौट गए।