< ١ يوحنَّا 3 >
اُنْظُرُوا أَيَّةَ مَحَبَّةٍ أَعْطَانَا ٱلْآبُ حَتَّى نُدْعَى أَوْلَادَ ٱللهِ! مِنْ أَجْلِ هَذَا لَا يَعْرِفُنَا ٱلْعَالَمُ، لِأَنَّهُ لَا يَعْرِفُهُ. | ١ 1 |
देखो, बाप ने हम से कैसी मुहब्बत की है कि हम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द कहलाए, और हम है भी। दुनिया हमें इसलिए नहीं जानती कि उसने उसे भी नहीं जाना।
أَيُّهَا ٱلْأَحِبَّاءُ، ٱلْآنَ نَحْنُ أَوْلَادُ ٱللهِ، وَلَمْ يُظْهَرْ بَعْدُ مَاذَا سَنَكُونُ. وَلَكِنْ نَعْلَمُ أَنَّهُ إِذَا أُظْهِرَ نَكُونُ مِثْلَهُ، لِأَنَّنَا سَنَرَاهُ كَمَا هُوَ. | ٢ 2 |
'अज़ीज़ो! हम इस वक़्त ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं, और अभी तक ये ज़ाहिर नहीं हुआ कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं कि जब वो ज़ाहिर होगा तो हम भी उसकी तरह होंगे, क्यूँकि उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वो है।
وَكُلُّ مَنْ عِنْدَهُ هَذَا ٱلرَّجَاءُ بِهِ، يُطَهِّرُ نَفْسَهُ كَمَا هُوَ طَاهِرٌ. | ٣ 3 |
और जो कोई उससे ये उम्मीद रखता है, अपने आपको वैसा ही पाक करता है जैसा वो पाक है।
كُلُّ مَنْ يَفْعَلُ ٱلْخَطِيَّةَ يَفْعَلُ ٱلتَّعَدِّيَ أَيْضًا. وَٱلْخَطِيَّةُ هِيَ ٱلتَّعَدِّي. | ٤ 4 |
जो कोई गुनाह करता है, वो शरी'अत की मुख़ालिफ़त करता है; और गुनाह शरी'अत' की मुख़ालिफ़त ही है।
وَتَعْلَمُونَ أَنَّ ذَاكَ أُظْهِرَ لِكَيْ يَرْفَعَ خَطَايَانَا، وَلَيْسَ فِيهِ خَطِيَّةٌ. | ٥ 5 |
और तुम जानते हो कि वो इसलिए ज़ाहिर हुआ था कि गुनाहों को उठा ले जाए, और उसकी ज़ात में गुनाह नहीं।
كُلُّ مَنْ يَثْبُتُ فِيهِ لَا يُخْطِئُ. كُلُّ مَنْ يُخْطِئُ لَمْ يُبْصِرْهُ وَلَا عَرَفَهُ. | ٦ 6 |
जो कोई उसमें क़ाईम रहता है वो गुनाह नहीं करता; जो कोई गुनाह करता है, न उसने उसे देखा है और न जाना है।
أَيُّهَا ٱلْأَوْلَادُ، لَا يُضِلَّكُمْ أَحَدٌ: مَنْ يَفْعَلُ ٱلْبِرَّ فَهُوَ بَارٌّ، كَمَا أَنَّ ذَاكَ بَارٌّ. | ٧ 7 |
ऐ बच्चो! किसी के धोखे में न आना। जो रास्तबाज़ी के काम करता है, वही उसकी तरह रास्तबाज़ है।
مَنْ يَفْعَلُ ٱلْخَطِيَّةَ فَهُوَ مِنْ إِبْلِيسَ، لِأَنَّ إِبْلِيسَ مِنَ ٱلْبَدْءِ يُخْطِئُ. لِأَجْلِ هَذَا أُظْهِرَ ٱبْنُ ٱللهِ لِكَيْ يَنْقُضَ أَعْمَالَ إِبْلِيسَ. | ٨ 8 |
जो शख़्स गुनाह करता है वो शैतान से है, क्यूँकि शैतान शुरू' ही से गुनाह करता रहा है। ख़ुदा का बेटा इसलिए ज़ाहिर हुआ था कि शैतान के कामों को मिटाए।
كُلُّ مَنْ هُوَ مَوْلُودٌ مِنَ ٱللهِ لَا يَفْعَلُ خَطِيَّةً، لِأَنَّ زَرْعَهُ يَثْبُتُ فِيهِ، وَلَا يَسْتَطِيعُ أَنْ يُخْطِئَ لِأَنَّهُ مَوْلُودٌ مِنَ ٱللهِ. | ٩ 9 |
जो कोई ख़ुदा से पैदा हुआ है वो गुनाह नहीं करता, क्यूँकि उसका बीज उसमें बना रहता है; बल्कि वो गुनाह कर ही नहीं सकता क्यूँकि ख़ुदा से पैदा हुआ है।
بِهَذَا أَوْلَادُ ٱللهِ ظَاهِرُونَ وَأَوْلَادُ إِبْلِيسَ: كُلُّ مَنْ لَا يَفْعَلُ ٱلْبِرَّ فَلَيْسَ مِنَ ٱللهِ، وَكَذَا مَنْ لَا يُحِبُّ أَخَاهُ. | ١٠ 10 |
इसी से ख़ुदा के फ़र्ज़न्द और शैतान के फ़र्ज़न्द ज़ाहिर होते है। जो कोई रास्तबाज़ी के काम नहीं करता वो ख़ुदा से नहीं, और वो भी नहीं जो अपने भाई से मुहब्बत नहीं रखता।
لِأَنَّ هَذَا هُوَ ٱلْخَبَرُ ٱلَّذِي سَمِعْتُمُوهُ مِنَ ٱلْبَدْءِ: أَنْ يُحِبَّ بَعْضُنَا بَعْضًا. | ١١ 11 |
क्यूँकि जो पैग़ाम तुम ने शुरू' से सुना वो ये है कि हम एक दूसरे से मुहब्बत रख्खें।
لَيْسَ كَمَا كَانَ قَايِينُ مِنَ ٱلشِّرِّيرِ وَذَبَحَ أَخَاهُ. وَلِمَاذَا ذَبَحَهُ؟ لِأَنَّ أَعْمَالَهُ كَانَتْ شِرِّيرَةً، وَأَعْمَالَ أَخِيهِ بَارَّةٌ. | ١٢ 12 |
और क़ाइन की तरह न बनें जो उस शरीर से था, और जिसने अपने भाई को क़त्ल किया; और उसने किस वास्ते उसे क़त्ल किया? इस वास्ते कि उसके काम बुरे थे, और उसके भाई के काम रास्ती के थे।
لَا تَتَعَجَّبُوا يَا إِخْوَتِي إِنْ كَانَ ٱلْعَالَمُ يُبْغِضُكُمْ. | ١٣ 13 |
ऐ भाइयों! अगर दुनिया तुम से 'दुश्मनी रखती है तो ताअ'ज्जुब न करो।
نَحْنُ نَعْلَمُ أَنَّنَا قَدِ ٱنْتَقَلْنَا مِنَ ٱلْمَوْتِ إِلَى ٱلْحَيَاةِ، لِأَنَّنَا نُحِبُّ ٱلْإِخْوَةَ. مَنْ لَا يُحِبَّ أَخَاهُ يَبْقَ فِي ٱلْمَوْتِ. | ١٤ 14 |
हम तो जानते हैं कि मौत से निकलकर ज़िन्दगी में दाख़िल हो गए, क्यूँकि हम भाइयों से मुहब्बत रखते हैं। जो मुहब्बत नहीं रखता वो मौत की हालत में रहता है।
كُلُّ مَنْ يُبْغِضُ أَخَاهُ فَهُوَ قَاتِلُ نَفْسٍ، وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ أَنَّ كُلَّ قَاتِلِ نَفْسٍ لَيْسَ لَهُ حَيَاةٌ أَبَدِيَّةٌ ثَابِتَةٌ فِيهِ. (aiōnios ) | ١٥ 15 |
जो कोई अपने भाई से 'दुश्मनी रखता है, वो ख़ूनी है और तुम जानते हो कि किसी ख़ूनी में हमेशा की ज़िन्दगी मौजूद नहीं रहती। (aiōnios )
بِهَذَا قَدْ عَرَفْنَا ٱلْمَحَبَّةَ: أَنَّ ذَاكَ وَضَعَ نَفْسَهُ لِأَجْلِنَا، فَنَحْنُ يَنْبَغِي لَنَا أَنْ نَضَعَ نُفُوسَنَا لِأَجْلِ ٱلْإِخْوَةِ. | ١٦ 16 |
हम ने मुहब्बत को इसी से जाना है कि उसने हमारे वास्ते अपनी जान दे दी, और हम पर भी भाइयों के वास्ते जान देना फ़र्ज़ है।
وَأَمَّا مَنْ كَانَ لَهُ مَعِيشَةُ ٱلْعَالَمِ، وَنَظَرَ أَخَاهُ مُحْتَاجًا، وَأَغْلَقَ أَحْشَاءَهُ عَنْهُ، فَكَيْفَ تَثْبُتُ مَحَبَّةُ ٱللهِ فِيهِ؟ | ١٧ 17 |
जिस किसी के पास दुनिया का माल हो और वो अपने भाई को मोहताज देखकर रहम करने में देर करे, तो उसमें ख़ुदा की मुहब्बत क्यूँकर क़ाईम रह सकती है?
يَا أَوْلَادِي، لَا نُحِبَّ بِٱلْكَلَامِ وَلَا بِٱللِّسَانِ، بَلْ بِٱلْعَمَلِ وَٱلْحَقِّ! | ١٨ 18 |
ऐ बच्चो! हम कलाम और ज़बान ही से नहीं, बल्कि काम और सच्चाई के ज़रिए से भी मुहब्बत करें।
وَبِهَذَا نَعْرِفُ أَنَّنَا مِنَ ٱلْحَقِّ وَنُسَكِّنُ قُلُوبَنَا قُدَّامَهُ. | ١٩ 19 |
इससे हम जानेगे कि हक़ के हैं, और जिस बात में हमारा दिल हमें इल्ज़ाम देगा, उसके बारे में हम उसके हुज़ूर अपनी दिलजम'ई करेंगे;
لِأَنَّهُ إِنْ لَامَتْنَا قُلُوبُنَا فَٱللهُ أَعْظَمُ مِنْ قُلُوبِنَا، وَيَعْلَمُ كُلَّ شَيْءٍ. | ٢٠ 20 |
क्यूँकि ख़ुदा हमारे दिल से बड़ा है और सब कुछ जानता है।
أَيُّهَا ٱلْأَحِبَّاءُ، إِنْ لَمْ تَلُمْنَا قُلُوبُنَا، فَلَنَا ثِقَةٌ مِنْ نَحْوِ ٱللهِ. | ٢١ 21 |
ऐ 'अज़ीज़ो! जब हमारा दिल हमें इल्ज़ाम नहीं देता, तो हमें ख़ुदा के सामने दिलेरी हो जाती है;
وَمَهْمَا سَأَلْنَا نَنَالُ مِنْهُ، لِأَنَّنَا نَحْفَظُ وَصَايَاهُ، وَنَعْمَلُ ٱلْأَعْمَالَ ٱلْمَرْضِيَّةَ أَمَامَهُ. | ٢٢ 22 |
और जो कुछ हम माँगते हैं वो हमें उसकी तरफ़ से मिलता है, क्यूँकि हम उसके हुक्मों पर अमल करते हैं और जो कुछ वो पसन्द करता है उसे बजा लाते हैं।
وَهَذِهِ هِيَ وَصِيَّتُهُ: أَنْ نُؤْمِنَ بِٱسْمِ ٱبْنِهِ يَسُوعَ ٱلْمَسِيحِ، وَنُحِبَّ بَعْضُنَا بَعْضًا كَمَا أَعْطَانَا وَصِيَّةً. | ٢٣ 23 |
और उसका हुक्म ये है कि हम उसके बेटे ईसा मसीह के नाम पर ईमान लाएँ, जैसा उसने हमें हुक्म दिया उसके मुवाफ़िक़ आपस में मुहब्बत रख्खें।
وَمَنْ يَحْفَظْ وَصَايَاهُ يَثْبُتْ فِيهِ وَهُوَ فِيهِ. وَبِهَذَا نَعْرِفُ أَنَّهُ يَثْبُتُ فِينَا: مِنَ ٱلرُّوحِ ٱلَّذِي أَعْطَانَا. | ٢٤ 24 |
और जो उसके हुक्मों पर 'अमल करता है, वो इस में और ये उसमें क़ाईम रहता है; और इसी से या'नी उस पाक रूह से जो उसने हमें दिया है, हम जानते हैं कि वो हम में क़ाईम रहता है।