< ١ كورنثوس 8 >

وَأَمَّا مِنْ جِهَةِ مَا ذُبِحَ لِلْأَوْثَانِ: فَنَعْلَمُ أَنَّ لِجَمِيعِنَا عِلْمًا. ٱلْعِلْمُ يَنْفُخُ، وَلَكِنَّ ٱلْمَحَبَّةَ تَبْنِي. ١ 1
अब बुतों की कुर्बानियों के बारे में ये है हम जानते हैं कि हम सब इल्म रखते हैं इल्म ग़ुरूर पैदा करता है लेकिन मुहब्बत तरक़्क़ी का ज़रिया है।
فَإِنْ كَانَ أَحَدٌ يَظُنُّ أَنَّهُ يَعْرِفُ شَيْئًا، فَإِنَّهُ لَمْ يَعْرِفْ شَيْئًا بَعْدُ كَمَا يَجِبُ أَنْ يَعْرِفَ! ٢ 2
अगर कोई गुमान करे कि मैं कुछ जानता हूँ तो जैसा जानना चाहिए वैसा अब तक नहीं जानता।
وَلَكِنْ إِنْ كَانَ أَحَدٌ يُحِبُّ ٱللهَ، فَهَذَا مَعْرُوفٌ عِنْدَهُ. ٣ 3
लेकिन जो कोई ख़ुदा से मुहब्बत रखता है उस को ख़ुदा पहचानता है।
فَمِنْ جِهَةِ أَكْلِ مَا ذُبِحَ لِلْأَوْثَانِ: نَعْلَمُ أَنْ لَيْسَ وَثَنٌ فِي ٱلْعَالَمِ، وَأَنْ لَيْسَ إِلَهٌ آخَرُ إِلَّا وَاحِدًا. ٤ 4
पस बुतों की कुर्बानियों के गोश्त खाने के ज़रिए हम जानते हैं कि बुत दुनिया में कोई चीज़ नहीं और सिवा एक के और कोई ख़ुदा नहीं।
لِأَنَّهُ وَإِنْ وُجِدَ مَا يُسَمَّى آلِهَةً، سِوَاءٌ كَانَ فِي ٱلسَّمَاءِ أَوْ عَلَى ٱلْأَرْضِ، كَمَا يُوجَدُ آلِهَةٌ كَثِيرُونَ وَأَرْبَابٌ كَثِيرُونَ. ٥ 5
अगरचे आसमान — ओ — ज़मीन में बहुत से ख़ुदा कहलाते हैं चुनाँचे बहुत से ख़ुदा और बहुत से ख़ुदावन्द हैं।
لَكِنْ لَنَا إِلَهٌ وَاحِدٌ: ٱلْآبُ ٱلَّذِي مِنْهُ جَمِيعُ ٱلْأَشْيَاءِ، وَنَحْنُ لَهُ. وَرَبٌّ وَاحِدٌ: يَسُوعُ ٱلْمَسِيحُ، ٱلَّذِي بِهِ جَمِيعُ ٱلْأَشْيَاءِ، وَنَحْنُ بِهِ. ٦ 6
लेकिन हमारे नज़दीक तो एक ही ख़ुदा है या'नी बाप जिसकी तरफ़ से सब चीज़ें हैं और हम उसी के लिए हैं और एक ही ख़ुदावन्द है या'नी 'ईसा मसीह जिसके वसीले से सब चीज़ें मौजूद हुईं और हम भी उसी के वसीले से हैं।
وَلَكِنْ لَيْسَ ٱلْعِلْمُ فِي ٱلْجَمِيعِ. بَلْ أُنَاسٌ بِٱلضَّمِيرِ نَحْوَ ٱلْوَثَنِ إِلَى ٱلْآنَ يَأْكُلُونَ كَأَنَّهُ مِمَّا ذُبِحَ لِوَثَنٍ، فَضَمِيرُهُمْ إِذْ هُوَ ضَعِيفٌ يَتَنَجَّسُ. ٧ 7
लेकिन सब को ये इल्म नहीं बल्कि कुछ को अब तक बुतपरस्ती की आदत है इसलिए उस गोश्त को बुत की क़ुर्बानी जान कर खाते हैं और उसका दिल, चुँकि कमज़ोर है, गन्दा हो जाता है।
وَلَكِنَّ ٱلطَّعَامَ لَا يُقَدِّمُنَا إِلَى ٱللهِ، لِأَنَّنَا إِنْ أَكَلْنَا لَا نَزِيدُ وَإِنْ لَمْ نَأْكُلْ لَا نَنْقُصُ. ٨ 8
खाना हमें ख़ुदा से नहीं मिलाएगा; अगर न खाएँ तो हमारा कुछ नुक़्सान नहीं और अगर खाएँ तो कुछ फ़ाइदा नहीं।
وَلَكِنِ ٱنْظُرُوا لِئَلَّا يَصِيرَ سُلْطَانُكُمْ هَذَا مَعْثَرَةً لِلضُّعَفَاءِ. ٩ 9
लेकिन होशियार रहो ऐसा न हो कि तुम्हारी आज़ादी कमज़ोरों के लिए ठोकर का ज़रिया हो जाए।
لِأَنَّهُ إِنْ رَآكَ أَحَدٌ يَا مَنْ لَهُ عِلْمٌ، مُتَّكِئًا فِي هَيْكَلِ وَثَنٍ، أَفَلَا يَتَقَوَّى ضَمِيرُهُ، إِذْ هُوَ ضَعِيفٌ، حَتَّى يَأْكُلَ مَا ذُبِحَ لِلْأَوْثَانِ؟! ١٠ 10
क्यूँकि अगर कोई तुझ साहिब'ऐ इल्म को बुत खाने में खाना खाते देखे और वो कमज़ोर शख़्स हो तो क्या उस का दिल बुतों की क़ुर्बानी खाने पर मज़बूत न हो जाएगा?
فَيَهْلِكَ بِسَبَبِ عِلْمِكَ ٱلْأَخُ ٱلضَّعِيفُ ٱلَّذِي مَاتَ ٱلْمَسِيحُ مِنْ أَجْلِهِ. ١١ 11
ग़रज़ तेरे इल्म की वजह से वो कमज़ोर शख़्स या'नी वो भाई जिसकी ख़ातिर मसीह मरा, हलाक हो जाएगा।
وَهَكَذَا إِذْ تُخْطِئُونَ إِلَى ٱلْإِخْوَةِ وَتَجْرَحُونَ ضَمِيرَهُمُ ٱلضَّعِيفَ، تُخْطِئُونَ إِلَى ٱلْمَسِيحِ. ١٢ 12
और तुम इस तरह भाइयों के गुनाहगार होकर और उनके कमज़ोर दिल को घायल करके मसीह के गुनाहगार ठहरते हो।
لِذَلِكَ إِنْ كَانَ طَعَامٌ يُعْثِرُ أَخِي فَلَنْ آكُلَ لَحْمًا إِلَى ٱلْأَبَدِ، لِئَلَّا أُعْثِرَ أَخِي. (aiōn g165) ١٣ 13
इस वजह से अगर खाना मेरे भाई को ठोकर खिलाए तो मैं कभी हरगिज़ गोश्त न खाऊँगा, ताकि अपने भाई के लिए ठोकर की वजह न बनूँ। (aiōn g165)

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